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1- किसी मुसलमान के लिए उचित नहीं है कि उसके पास कोई वस्तु हो, जिसकी वह वसीयत करना चाहता हो और वह वसीयतनामा लिखे बिना दो रात भी गुज़ारे।
2- यदि तुम पीछे रहकर भी अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अच्छे कर्म करोगे, तो तुम्हारे दर्जे ऊँचे होंगे। यह भी संभव है कि तुम अभी जीवित रहो और बहुत-से लोगों को तुमसे लाभ हो और बहुत-से लोगों को हानि।
3- बेशक अल्लाह ने हर हक़ वाले को उसका हक़ दे दिया है और वारिस के लिए कोई वसीयत नहीं है। बिस्तर वाले के लिए बच्चा है और व्यभिचारी के लिए पत्थर है। जो पिता को छोड़कर दूसरे से अपने को मंसूब करता है अथवा मुक्त करने वाले को छोड़कर दूसरे की ओर निस्बत करता है, उसपर अल्लाह की लानत है। अल्लाह उसकी न फ़र्ज़ इबादत ग्रहण करेगा, न नफ़ल इबादत।
4- ऐ अबा ह़िज़यम, तुम्हें कौन सी बात यहाँ खींच लाई है?