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किसी मुसलमान औरत के लिए जायज़ नहीं कि एक दिन एवं एक रात की यात्रा किसी महरम के बिना करे।
किसी मुसलमान औरत के लिए जायज़ नहीं कि एक दिन एवं एक रात की यात्रा किसी महरम के बिना करे।
अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : "किसी मुसलमान औरत के लिए जायज़ नहीं कि एक दिन एवं एक रात की यात्रा किसी महरम के बिना करे।"
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अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बताया है कि किसी मुसलमान स्त्री के लिए किसी महरम व्यक्ति को साथ लिए बिना एक रात की दूरी का सफ़र करना हराम है।فوائد الحديث
इब्न-ए-हजर कहते हैं : स्त्री के लिए किसी महरम को साथ लिए बिना यात्रा करना जायज़ नहीं है, इस बात पर पूरी उम्मत एकमत है। अलबत्ता हज, उमरा के लिए और शिर्क वाले क्षेत्र से निकलने के लिए की जाने वाली यात्रा के बारे में एकमत नहीं है। कुछ लोग महरम के साथ को भी हज की शर्त क़रार देते हैं।
इस्लाम एक संपूर्ण शरीयत है और महिला सुरक्षा का पक्षधर है।
अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान का तक़ाज़ा है कि शरीयत के प्रति समर्पण और उसकी सीमाओं का पालन हो।
स्त्री का महरम उसका पति या ऐसा व्यक्ति है, जिससे खून के रिश्ते या दूध के रिश्ते या ससुराली रिश्ते के कारण दायमी तौर पर निकाह हराम हो तथा वह मुस्लिम, वयस्क, समझदार और भरोसे के लायक़ हो। क्योंकि महरम का काम स्त्री की रक्षा और उसकी देख-भाल करना है।
एक महिला जो किसी महरम के साथ के बिना यात्रा नहीं कर सकती है, उसकी मुद्दत के बारे में आई हुई हदीसों के विषय में बैहक़ी कहते हैं : "सारांश यह कि जिस मसाफ़त को भी सफ़र कहा जाए, स्त्री के लिए उसे पति या महरम के बिना तय करना मना होगा। मसाफ़त चाहे तीन दिन की हो, दो दिन की हो, एक दिन की हो या एक बरीद (डाक केंद्रों के बीच की दूरी) आदि की। इसका प्रमाण अब्दुल्लाह बिन अब्बास की वह सामान्य रिवायत है, जो सहीह मुस्लिम की गुज़री हुई रिवायतों में से सबसे अंतिम रिवायत है और जिसके शब्द इस प्रकार हैं : "कोई स्त्री किसी महरम के बिना यात्रा न करे।" इसमें हर उस दूरी को तय करना शामिल है, जिसे सफ़र कहा जाए।" अभी हमारे सामने जो हदीस है, वह दरअसल पूछने वाले तथा उसकी परिस्थितियों के अनुसार आई हुई है।
