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जिसने सूरा-ए-फ़ातिहा नहीं पढ़ी, उसकी नमाज़ ही नहीं।
जिसने सूरा-ए-फ़ातिहा नहीं पढ़ी, उसकी नमाज़ ही नहीं।
उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "जिसने सूरा-ए-फ़ातिहा नहीं पढ़ी, उसकी नमाज़ ही नहीं।"
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया कि सूरा फ़ातिहा पढ़े बिना नमाज़ सही नहीं होती। हर रकात में सूरा फ़ातिहा पढ़ना नमाज़ का एक स्तंभ है।فوائد الحديث
सूरा फ़ातिहा पढ़ने की शक्ति हो, तो कोई दूसरी चीज़ उसका स्थान नहीं ले सकती।
जान-बूझ कर, अज्ञानता के कारण या भूलवश किसी रकात में सूरा फ़ातिहा न पढ़ी जाए, तो वह रकात बातिल हो जाती है। क्योंकि सूरा फ़ातिहा पढ़ना नमाज़ का एक स्तंभ है और नमाज़ के स्तंभ किसी भी स्थिति में छोड़े नहीं जा सकते।
मुक़तदी इमाम को रुकू की अवस्था में पाए, तो उसे सूरा फ़ातिहा पढ़ने की ज़रूरत नहीं रहती।
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नमाज़ के अर्कान