إعدادات العرض
यहूदी तथा इसाई को पहले सलाम न करो और जब रास्ते में उनसे भेंट हो जाए, तो उन्हें तंग रास्ता अख़्तियार करने पर विवश कर…
यहूदी तथा इसाई को पहले सलाम न करो और जब रास्ते में उनसे भेंट हो जाए, तो उन्हें तंग रास्ता अख़्तियार करने पर विवश कर दो।
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "यहूदी तथा इसाई को पहले सलाम न करो और जब रास्ते में उनसे भेंट हो जाए, तो उन्हें तंग रास्ता अख़्तियार करने पर विवश कर दो।"
[सह़ीह़] [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
الترجمة
العربية Bosanski English Español فارسی Français Bahasa Indonesia Русский Türkçe اردو 中文 Hausa Kurdî Português සිංහල Nederlands অসমীয়া Tiếng Việt Kiswahili ગુજરાતી پښتو አማርኛ Oromoo ไทย Română മലയാളം Deutsch नेपाली Shqip Кыргызча ქართული Moore Magyar తెలుగుالشرح
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अह्ल-ए-किताब को सलाम करने में पहले करने से मना किया है। क्योंकि हमारी ओर से उनको सलाम किया जाना एक प्रकार से उनका सम्मान करना है, जबकि काफ़िर सम्मान का हक़दार नहीं है। हाँ, यदी ज़रूरत हो तो आप कैसे हैं, सुबह कैसी ग़ुज़री तथा शाम कैसी गुज़री आदि पूछने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि मनाही सलाम करने की है। इसी तरह आपने हमें आदेश दिया है कि हम उन्हें फैला हुआ रास्ता न दिया करें। अतः जब जब रास्ते में किसी मुसलमान का सामना किसी अह्ल-ए-किताब से हो, तो मुसलमान उसे रास्ते के तंग भाग की ओर जाने पर मजबूर करे और बीच वाले तथा चौड़े भाग पर वह खुद चले। लेकिन याद रहे कि यह उस समय की बात है, जब रास्ता तंग हो और इससे अह्ल-ए-किताब को कोई कष्ट न होता हो। सारांश यह कि जो बातें भलाई करने, उत्तम व्यवहार दिखाने और उपकार के बदले में उपकार करने से संबंध रखती हैं, हम उनका इन लोगों के प्रति इज़हार करेंगे, ताकि उनके दिल को इस्लाम से निकट किया जा सके और मुसलमानों का हाथ ऊपर रहे, लेकिन जो बातें आत्म सम्मान से संबंध रखती हैं, तो उनके अंदर उन्हें शामिल नहीं किया जाएगा। यही कारण है कि उन्हें सलाम करने में पहल करने और सम्मान के तौर पर बीच रास्ते से चलने का अवसर देने से मना किया गया है।