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जब दो मुसलमान आपस में मिलते हैं और मुसाफ़हा करते हैं, तो उनके अलग होने से पहले-पहले उनको क्षमा कर दिया जाता है।
जब दो मुसलमान आपस में मिलते हैं और मुसाफ़हा करते हैं, तो उनके अलग होने से पहले-पहले उनको क्षमा कर दिया जाता है।
बरा बिन आज़िब -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : "जब दो मुसलमान आपस में मिलते हैं और मुसाफ़हा करते हैं, तो उनके अलग होने से पहले-पहले उनको क्षमा कर दिया जाता है।"
[صحيح بمجموع طرقه] [رواه أبو داود والترمذي وابن ماجه وأحمد]
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया कि जब दो मुसलमान किसी रास्ते आदि में मिलते हैं और एक-दूसरे को सलाम तथा मुसाफ़हा करते हैं, तो दोनों के अलग होने से पहले उनके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं। याद रहे कि यहाँ अलग होने से मुराद शारीरिक रूप से अलग होना भी हो सकता है और मुसाफ़हा सम्पन्न करना भी।فوائد الحديث
मुलाक़ात के समय मुसाफ़हा करना मुसतहब है और इसकी प्रेरणा दी गई है।
मुनावी कहते हैं : सुन्नत यह है कि अगर कोई मजबूरी न हो तो दाएँ हाथ को दाएँ पर रखा जाए।
सलाम को आम करने की प्रेरणा और एक मुसलमान के दूसरे मुसलमान भाई से मुसाफ़हा करने के बड़े प्रतिफल का बयान।
इस हदीस के दायरे में हराम मुसाफ़हा बाहर है। जैसे किसी अजनबी महिला से मुसाफ़हा करना।
