إعدادات العرض
मुझे कोई ऐसा कर्म बताएँ कि उसे करूँ, तो जन्नत में दाखिल हो जाऊँ। फ़रमाया : "अल्लाह की इबादत करो, किसी को उसका साझी न…
मुझे कोई ऐसा कर्म बताएँ कि उसे करूँ, तो जन्नत में दाखिल हो जाऊँ। फ़रमाया : "अल्लाह की इबादत करो, किसी को उसका साझी न बनाओ, फ़र्ज़ नमाज़ कायम करो, फ़र्ज़ ज़कात अदा करो और रमज़ान के रोज़े रखो।
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है : एक देहाती अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहा : मुझे कोई ऐसा कर्म बताएँ कि उसे करूँ, तो जन्नत में दाखिल हो जाऊँ। फ़रमाया : "अल्लाह की इबादत करो, किसी को उसका साझी न बनाओ, फ़र्ज़ नमाज़ कायम करो, फ़र्ज़ ज़कात अदा करो और रमज़ान के रोज़े रखो।" उसने कहा : उसकी क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, मैं इससे ज़्यादा कुछ नहीं करूँगा। जब वह वापस हुआ, तो अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "जो किसी जन्नती व्यक्ति को देखना चाहे, वह इसे देख ले।"
الترجمة
العربية বাংলা Bosanski English Español فارسی Français Bahasa Indonesia Русский Tagalog Türkçe اردو 中文 Kurdî Kiswahili Português සිංහල Svenska ગુજરાતી አማርኛ Yorùbá ئۇيغۇرچە Tiếng Việt Hausa پښتو অসমীয়া دری Кыргызча or Malagasy नेपाली Čeština Oromoo Română Nederlands Soomaali తెలుగు മലയാളം ไทย Српски Kinyarwanda ಕನ್ನಡ Lietuvių Shqip Wolof Українська Moore ქართული Magyarالشرح
देहात का रहने वाला एक व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया, ताकि आप उसे जन्नत में दाख़िल करने वाला कोई अमल बता दें। अतः आपने उसे बताया कि जन्नत में प्रवेश और जहन्नम से मुक्ति इस्लाम के स्तंभों के अनुपालन पर निर्भर है, जो इस प्रकार हैं : एक अल्लाह की इबादत करना और किसी को उसका साझी न बनाना। पाँच वक़्त की नमाज़ क़ायम करना, जिन्हें अल्लाह ने रात और दिन में अपने बंदों पर फ़र्ज़ किया है। धन की ज़कात, जो अनिवार्य है, निकाल कर हक़दारों को देना। रमज़ान महीने के रोज़े समय पर पाबंदी से रखना। इतना सुनने के बाद उस व्यक्ति ने कहा : उस हस्ती की क़सम, जिसके हाथ में मेरी जान है, मैं आपसे सुने हुए अनिवार्य कार्यों से न ज़्यादा करूँगा, न कम। अतः जब वह व्यक्ति जाने लगा, तो अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : जिसे कोई जन्नती इन्सान देखना हो, वह इस देहाती व्यक्ति को देख ले।فوائد الحديث
अल्लाह की ओर बुलाने के काम का आरंभ एक अल्लाह की इबादत से होना चाहिए।
नए-नए मुसलमान होने वाले इन्सान को पहले केवल अनिवार्य चीज़ें सिखानी चाहिए।
यह ज़रूरी है कि अल्लाह की ओर बुलाने का कार्य क्रमिक किया जाए।
इन्सान को अपने दीन की बात सीखने का उत्सुक होना चाहिए।
केवल अनिवार्य कार्यों के पालन से भी मुस्लिम व्यक्ति सफल हो जाएगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इन्सान नफ़ल इबादतों की अदायगी में सुस्ती से काम ले। क्योंकि नफ़ल इबादतों द्वारा फ़र्ज़ इबादतों में रह जाने वाली कमियाँ दूर होती हैं।
कुछ इबादतों का ही केवल उल्लेख उनका महत्व एवं अनिवार्यता बताता है। इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरी इबादतें अनिवार्य नहीं हैं।
التصنيفات
विद्यावान तथा विद्यार्थी के आदाब