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नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ शुरू करते और जब रुकू के लिए "अल्लाहु अकबर" कहते, तो अपने दोनों हाथों को अपने…
नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ शुरू करते और जब रुकू के लिए "अल्लाहु अकबर" कहते, तो अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधो के बरारब उठाते। रूकू से सिर उठाते समय भी इसी तरह दोनों हाथों को उठाते।
अब्दुल्लाह बिन उमर- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- का वर्णन है कि नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ शुरू करते और जब रुकू के लिए "अल्लाहु अकबर" कहते, तो अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधो के बरारब उठाते। रूकू से सिर उठाते समय भी इसी तरह दोनों हाथों को उठाते और कहतेः "سَمِعَ الله لمن حَمِدَهُ رَبَّنَا ولك الحمد" (अल्लाह ने उसकी सुन ली अथवा अल्लाह उस की सुन ले, जिसने उसकी प्रशंसा की। ऐ हमारे पालनहार, (हम तेरे अज्ञाकारी हैं और तेरी ही प्रशंसा है।) लेकिन सजदे में दोनों हाथों को उठाते नहीं थे।
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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नमाज़ एक बहुत बड़ी इबादत है। शरीर के प्रत्येक अंग के लिए उसमें कोई न कोई विशेष इबादत है। मिसाल के तौर पर दोनों हाथों को ले लें। उनके कुछ विशेष कार्य हैं। जैसे एहराम की तकबीर के समय उन्हें उठाया जाता है। दरअसल हाथों को उठाना नमाज़ की शोभा और अल्लाह की महानता का इक़रार है। हाथों को कंधों के बराबर उठाया जाएगा। तमाम रकातों में रुकू में जाते समय और रुकू से सिर उठाते समय भी हाथों को उठाया जाएगा। इस हदीस के वर्णनकर्ता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आप सजदे में ऐसा नहीं करते थे।التصنيفات
नमाज़ का तरीक़ा