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1- मुझे सात हडि्डयों पर सज्दा करने का हुक्म दिया गया है । पेशानी पर, और आपने अपने हाथ से अपनी नाक की ओर इशारा किया, दोनों हाथों और दोनों घुटनों और दोनों पावों की उंग्लियों पर और यह भी हुक्म दिया गया कि हम कपड़ों और बालों को न समेटें ।
2- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- दो सज्दों के मध्य यह दुआ पढ़ते थेः अल्लाहुम्मग़फिरली, वरहमनी,व आफिनी, वहदिनी, वरज़ुक़नी (ऐ अल्लाह तू मुझे माफ कर दे, मेरे ऊपर रह़म कर, मुझे आफियत (स्वास्थ्य इत्यादि) दे, तथा मुझे रिज़्क़ (आजीविका) दे।
3- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ शुरू करते और जब रुकू के लिए "अल्लाहु अकबर" कहते, तो अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधो के बरारब उठाते। रूकू से सिर उठाते समय भी इसी तरह दोनों हाथों को उठाते।
4- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मुझे उसी तरह तशह्हुद सिखाया, जैसे क़ुरआन की सूरह सिखाया करते थे। मेरी हथेली आपकी दोनों हथेलियों के बीच में थी।
5- सज्दे में संतुलित रहो और तुम में से कोई अपने बाज़ुओं को कुत्ते की तरह न बिछाए।
6- जब इमाम आमीन कहे, तो तुम आमीन कहो। क्योंकि जिसका आमीन कहना फ़रिश्तों के आमीन के साथ होगा, उसके पिछले सारे पाप क्षमा कर दिए जाएँगे।
7- जब सज्दा करो तो अपनी हथेलियों को नीचे रखो, तथा कोहनियों को उठा के रखो।
8- जब तुम में का कोई सज्दा करे तो उस प्रकार से न बैठे जैसे ऊँट बैठता है और धुटने से पुर्व अपने हाथों को रखे।
9- इब्ने उमर- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- अपने हाथों को घुटनों से पहले रखते थे, और फरमाया किः नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- भी ऐसा ही करते थे।
10- मैंने नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के संग नमाज़ पढ़ी तो आप दाहिनी ओर (यह कहते हुए) सलाम फेरते थेः अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु (आप पर सलामती हो तथा अल्लाह की रहमत और बरकत हो), और बाएं ओर (यह कहते हुए सलाम फेरते थे) अस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह (आप पर सलामती हो तथा अल्लाह की रहमत हो)।
11- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़ज्र की दो रकातों में "قل يا أيها الكافرون" और "قل هو الله أحد" पढ़ी।
12- लोगो! मैंने ऐसा इसलिए किया, ताकि तुम मेरा अनुसरण कर सको और मेरी नमाज़ सीख सको।
13- जब तुम नमाज़ पढ़ो तो अपनी सफ़ें सठीक कर लो। फिर तुममें से एक व्यक्ति तुम्हारी इमामत करे। फिर जब वह तकबीर कहे, तो तुम तकबीर कहो
14- उस हस्ती की क़सम, जिसके हाथ में मेरी जान है, मैं तुम्हारे बीच अल्लाह के रसूल से सबसे ज़्यादा मिलती-जुलती नमाज़ पढ़ने वाला व्यक्ति हूँ। दुनिया छोड़ने तक आप इसी तरह नमाज़ पढ़ते रहे।
15- सबसे बुरा चोर वह है, जो अपनी नमाज़ में चोरी करता है।" किसी सहाबी ने पूछा कि नमाज़ में चोरी करने का क्या मतलब है? आपने उत्तर दिया : "रुकू एवं सजदा संपूर्ण रूप से न किया जाए।
16- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब रुकू से पीठ उठाते, तो यह दुआ पढ़ते : "سَمِعَ اللهُ لِمَنْ حَمِدَهُ، اللَّهُمَّ رَبَّنَا لَكَ الْحَمْدُ، مِلْءَ السَّمَاوَاتِ وَمِلْءَ الْأَرْضِ وَمِلْءَ مَا شِئْتَ مِنْ شَيْءٍ بَعْدُ" (अल्लाह ने उसकी सुन ली, जिसने उसकी प्रशंसा की
17- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ा करते थे : "رَبِّ اغْفِرْ لِي، رَبِّ اغْفِرْ لِي" (ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे। ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे।
18- यह एक शैतान है, जिसे ख़िंज़िब कहा जाता है। जब तुम्हें उसके व्यवधान डालने का आभास हो, तो उससे अल्लाह की शरण माँगो और तीन बार अपने बाएँ ओर थुत्कारो
19- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ का इरादा करते, तो खड़े होते समय "अल्लाहु अकबर" कहते, फिर रुकू में जाते समय "अल्लाहु अकबर" कहते, फिर रुकू से उठते समय कहते "समिअल्लाहु लि-मन हमिदह"।
20- मैंने मुहम्मद- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की नमाज़ को ध्यान से देखा, तो पाया कि आपका क़याम, रुकू, रुकू के बाद सीधे खड़ा होना, सजदा, दो सजदों के बीच बैठना, उसके बाद का सजदा और सलाम एवं नमाज़ के स्थान से निकलने के बीच का अंतराल, यह सब लगभग बराबर होते थे।
21- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- मस्जिद में दाखिल हुए। इसी बीच एक आदमी ने मस्जिद में प्रवेश किया, नमाज़ पढ़ी और नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आकर सलाम किया, तो आपने फ़रमायाः "वापस जाकर फिर से नमाज़ पढ़ो, क्योंकि तुमने नमाज़ पढ़ी ही नहीं।"
22- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उमामा बिंत ज़ैनब (अपनी नातिन) को उठाए हुए नमाज़ पढ़ लेते थे।
23- मैंने अबू बक्र, उमर तथा उसमान के साथ नमाज़ पढ़ी, लेकिन उनमें से किसी को "بسم الله الرحمن الرحيم" पढ़ते नहीं सुना।
24- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने एक व्यक्ति को एक सैन्यदल का अमीर बनाकर भेजा। वह अपने साथियों को नमाज़ पढ़ाते समय कुरआन पढ़ता, तो अंत में "قل هو الله أحد" पढ़ता।
25- मैं और इमरान बिन हुसैन ने अली बिन अबू तालिब (रज़ियल्लाहु अंहुम) के पीछे नमाज़ पढ़ी। जब वह सजदे में जाते, तो तकबीर कहते, जब सर उठाते, तो तकबीर कहते और जब दूसरी रकात के बाद खड़े होते, तो तकबीर कहते।
26- मैंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मग़रिब की नमाज़ में सूरा-ए-तूर पढ़ते सुना।
27- मैं तुम्हें नमाज़ पढाऊँगा। हालाँकि मेरा नमाज़ पढ़ने का इरादा नहीं था। मैं दरअसल, नमाज़ पढ़के दिखाना चाहता हूँ कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कैसे नमाज़ पढ़ते देखा है।
28- ऐ अल्लाह! मैंने जो पहले किया और जो बाद में किया, जो छिपाकर किया तथा जो दिखाकर किया और जिसमें मैंने अति की और जिसको तू मुझसे भी बेहतर जानने वाला है, उन सभी गुनाहों को माफ़ कर दे। तू ही आदेशपालन का सामर्थ्य देकर आगे करता है और तू ही अवज्ञा के कारण पीछे करता है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है।
29- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नमाज़ पढ़ने कि लिए क़ुबा की ओर निकले।
30- मैंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को देखा कि आप लोगों को नमाज़ पढ़ा रहे थे और उमामा बिंत अबुल आस, जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुपुत्री ज़ैनब की बेटी थीं, आपके कंधे पर थीं। जब आप रुकू करते, तो उनको उतार देते और जब सजदे से उठते, तो उनको दोबारा कंधे पर उठा लेते।
31- दो काली वस्तुओं को नमाज़ की अवस्था में भी मार दो : साँप तथा बिच्छू।
32- अच्छे ढंग से नमाज़ न पढ़ने वाले की हदीस, रिफ़ाआ (रज़ियल्लाहु अंहु) के वर्णन अनुसार।
33- अबू हुमैद साइदी (रज़ियल्लाहु अंहु) का अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के दस सहाबा की उपस्थिति में, जिनमें अबू क़तादा भी शामिल थे, यह कहना कि मैं तुम लोगों में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नमाज़ को सबसे अधिक जानता हूँ।
34- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नमाज़ तकबीर से और क़िरात {अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन) से आरंभ करते थे। जब आप रुकू करते, तो न अपना सिर बहुत झुकाते और न सीधा रखते, बल्कि इन दोनों के बीच रखते।
35- मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ नमाज़ पढ़ी, तो (देखा कि) आपने अपने दाहिने हाथ को अपने बाएँ हाथ पर, सीने के ऊपर रखा।
36- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा अबू बक्र एवं उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) नमाज़ का आरंभ "अल-ह़म्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" से करते थे।
37- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ज़ुहर की पहली दो रकातों में सूरा फ़ातिहा और दो सूरतें पढ़ते थे और बाद की दो रकातों में सिर्फ़ सूरा फ़ातिहा पढ़ते थे और कभी कभी कोई आयत हमें सुना भी देते थे।
38- हम लोग ज़ुहर और अस्र में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के क़याम (खड़े होने) का अनुमान लगाते थे। हमने अनुमान लगाया कि आप ज़ुहर की पहली दो रकातों में {الم تنزيل السجدة} (अलिफ लाम मीम तंज़ीन अस-सजदा) के बराबर खड़े होते थे, तथा हमने अंदाज़ा लगाया कि उसकी बाद की दो रकातों में उसके आधा खड़े होते थे।
39- मैंने अमुक व्यक्ति के मुकाबले में किसी के भी पीछे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से अधिक मिलती-जुलती नमाज़ नहीं पढ़ी। चुनांचे हमने उस व्यक्ति के पीछे नमाज़ पढ़ी और पाया कि वह ज़ुहर की प्रथम दो रकातों को लंबा करते थे तथा अंतिम दो रकातों को हल्का करते थे।
40- मैंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मग़रिब की नमाज़ में सूरा अत-तूर पढ़ते सुना। जब आप इस आयत पर पहुँचे : (أم خُلِقُوا من غير شيء أم هم الخالقون، أم خَلَقُوا السموات والأرض بل لا يوقنون، أم عندهم خزائن ربك أم هم المسيطرون) (क्या वे बिना किसी के पैदा किए ही पैदा हो गए हैं या वे स्वयं पैदा करने वाले हैं? या उन्होंने ही उत्पत्ति की है आकाशों तथा धरती की? वास्तव में वे विश्वास ही नहीं रखते। या उनके पास आपके पालनहार के कोषागार हैं या वही उसके अधिकारी हैं?) तो ऐसा लग रहा था कि मेरा दिल उड़ जाएगा।
41- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की नमाज़, और आप का रुकू, तथा जब आप रुकू से सिर उठाते (उस के बाद का समय), और आप का सज्दे तथा दो सज्दों के मध्य बैठने का समय, सभी लग-भग बराबर होते।
42- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ में रुकू करते तो अपनी ऊंगलियों को फैला कर रखते तथा जब सज्दा करते तो अपनी ऊंगलियों को मिला लेते थे।
43- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ की एकल रकअतों में होते तो उस वक़्त तक खड़े न होते जब तक सीधे बैठ न जाते।
44- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने एक मास तक रुकू के बाद क़ुनूत (नाज़िला) पढ़ा, (इस में) आप बनू सुलैम के कुछ क़बीलों- पर बद्दुआ करते थे।
45- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- क़ुनूत उसी समय पढ़ा करते थे जब आप किसी के लिए दुआ करते या किसी पर बद्दुआ करते।
46- हे मेरे पिता, आप ने रसूलुल्लाह- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, तथा अबू बकर, उमर, उस्मान एवं यहां कूफा में अली- रज़ियल्लाहु अन्हुम- के पीछे नमाज़ पढ़ी है, क्या वो लोग फज्र में (दुआ -ए-) क़ुनूत पढ़ते थे? उन्होंने उत्तर देते हुए कहा किः यह बिदअत है।
47- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब बैठते थे तो दुआ किया करते थे, अपने दाहिने हाथ को अपने दाहिने जांघ पर रखा करते थे तथा बाएं हाथ को बाएं जांघ पर रखा करते थे, और तर्जनी (शहादत वाली ) उंगली से इशारा करते रहते थे, तथा अपने उंगूठे को मध्यमा (बीच वाली उंगली) पर रखते थे, और अपने बाएं हाथ का गोला बनाकर उस से घुटने को पकड़ते।
48- कूफ़ा वालों ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के यहाँ साद बिन अबू वक़्क़ास (रज़ियल्लाहु अन्हु) की शिकायत की, तो उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने उनको हटाकर अम्मार बिन यासिर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) को उनका हाकिम बना दिया।
49- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) फ़ज्र की अंतिम रकात में, रुकू से सिर उठाने और 'سَمِعَ الله لمن حَمِدَه رَبَّنا ولك الحَمْدُ' कहने के बाद कहतेः ऐ अल्लाह, अमुक, अमुक और अमुक पर लानत कर। इसी पर अल्लाह तआला ने यह आयत उतारीः (لَيْسَ لَكَ مِنَ الأَمْرِ شَيْءٌ) (ऐ रसूल! आपका इसमें कुछ बस नहीं)।
50- ऐ अल्लाह! अय्याश बिन अबू रबीआ, सलमा बिन हिशाम, वलीद बिन वलीद और दुर्बल मोमिनों को मुक्ति दिला दे। ऐ अल्लाह! मुज़र पर अपनी पकड़ सख्त कर। ऐ अल्लाह! उन्हें यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) के युग में होने वाले सूखे जैसे सूखे से ग्रस्त कर।
51- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नमाज़ तकबीर से और क़िरात "अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" से आरंभ करते थे। जब रुकू करते, तो न अपने सर को उठाए रखते और न बहुत ज़्यादा झुकाते, बल्कि इन दोनों के बीच रखते।
52- रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहते, तो अपने दोनों हाथों को कानों के बराबर उठाते और जब रुकू करते, तो अपने दोनों हाथों को कानों तक उठाते।