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जिसने दो ठंडे समय की नमाज़ें पढ़ीं, वह जन्नत में प्रवेश करेगा।
जिसने दो ठंडे समय की नमाज़ें पढ़ीं, वह जन्नत में प्रवेश करेगा।
अबू मूसा अशअरी- रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जिसने दो ठंडे समय की नमाज़ें पढ़ीं, वह जन्नत में प्रवेश करेगा।
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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इस हदीस का अर्थ यह है कि इन दो नमाज़ों की पाबंदी जन्नत में प्रवेश दिलाने वाली चीज़ों में से एक है। इन दो नमाज़ों से मुराद फ़ज्र तथा अस्र की नमाज़ है। इसका प्रमाण जरीर -रज़ियल्लाहु अनहु- की हदीस में अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के यह शब्द हैं : "सूरज निकलने तथा सूरज डूबने से पहले की नमाज़।" जबकि सहीह मुस्लिम की एक रिवायत में यह वृद्धि है कि आपकी मुराद अस्र तथा मग़रिब की नमाज़ है। फिर जरीर -रज़ियल्लाहु अनहु- ने यह आयत पढ़ी : "तथा पवित्रता का वर्णन करें अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ, सूर्य के निकलने से पहले तथा डूबने से पहले।" इन दो नमाज़ों को "ठंडे समयों की नमाज़ें" इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह दोनों नमाज़ें दिन के दोनों किनारों में पढ़ी जाती हैं, जब सुखद हवाएँ चलती हैं और गर्मी की तपिश मौजूद नहीं होती। इन दो नमाज़ों की महत्ता को बहुत-सी हदीसों में बयान किया गया है। इस प्रकार की एक हदीस उमारा बिन रुऐबा ने अपने पिता से और उन्होंने अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से रिवायत की है कि आपने फ़रमाया : "वह व्यक्ति जहन्नम नहीं जाएगा, जिसने सूरज निकलने और सूरज डूबने से पहले नमाज़ पढ़ी।" इसे इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है। (हदीस संख्या : 634) इन दो नमाज़ों की विशेष रूप से यह फ़ज़ीलत इसलिए बयान की गई है, क्योंकि फ़ज्र की नमाज़ नींद तथा उसके आनंद के समय पढ़ी जाती है, जबकि अस्र की नमाज़ दिन के कामों एवं व्यपार आदि में असल व्यस्तता के समय पढ़ी जाती है। अतः इसके बावजूद इन दो नमाज़ों की पाबंदी करना इनसान के सुस्ती से मुक्त एवं इबादत प्रेमी होने का प्रमाण है, जिससे यह लाज़िम आता है कि वह अन्य नमाज़ें भी पढ़ता होगा। बल्कि जब इनकी पाबंदी करता है, तो अन्य नमाज़ों की कहीं अधिक पाबंदी करेगा। इस तरह, इन दो नमाज़ों का ज़िक्र इन्हीं बातों को सामने रखकर किया गया है। इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि जिसने इन दो नमाज़ों की पाबंदी की और शेष नमाज़ों को अदा नहीं किया, उसे जन्नत में प्रवेश का सौभाग्य प्राप्त होगा। क्योंकि यह बात क़ुरआन एवं हदीस के विपरीत है। प्यारे नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के शब्द : "जिसने दो ठंडे समयों की नमाज़ें पढ़ीं" से मुराद उन्हें वांछित तरीक़े से पढ़ना है। जैसे उन्हें निर्धारित समय पर पढ़ना और यदि इनसान जमात के साथ नमाज़ पढ़ने वाले लोगों में से है, जैसे पुरुष है, तो जमात के साथ पढ़ना। क्योंकि जमात के साथ नमाज़ पढ़ना वाजिब है और सामर्थ्य होते हुए किसी व्यक्ति के लिए मस्जिद जाकर जमात के साथ नमाज़ पढ़ने गुरेज़ करना जायज़ नहीं है।التصنيفات
नमाज़ की फ़ज़ीलत