إعدادات العرض
“किसी आदमी ने अपने पेट से बुरा बर्तन कोई नहीं भरा। आदम की संतान के लिए खाने के कुछेक लुक़मे काफ़ी हैं, जो उसकी पीठ…
“किसी आदमी ने अपने पेट से बुरा बर्तन कोई नहीं भरा। आदम की संतान के लिए खाने के कुछेक लुक़मे काफ़ी हैं, जो उसकी पीठ खड़ी रखें। अगर अधिक खाना ज़रूरी हो तो पेट का एक तिहाई भाग खाने के लिए, एक तिहाई भाग पीने के लिए और एक तिहाई भाग सांस लेने के लिए हो।”
मिक़दाम बिन मादीकरिब -रज़ियल्लाहु अनहु- कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है : “किसी आदमी ने अपने पेट से बुरा बर्तन कोई नहीं भरा। आदम की संतान के लिए खाने के कुछेक लुक़मे काफ़ी हैं, जो उसकी पीठ खड़ी रखें। अगर अधिक खाना ज़रूरी हो तो पेट का एक तिहाई भाग खाने के लिए, एक तिहाई भाग पीने के लिए और एक तिहाई भाग सांस लेने के लिए हो।”
الترجمة
العربية বাংলা Bosanski English Español Français Bahasa Indonesia Русский Tagalog Türkçe اردو 中文 ئۇيغۇرچە Hausa Kurdî Português دری অসমীয়া پښتو Tiếng Việt Македонски O‘zbek Kiswahili ភាសាខ្មែរ ਪੰਜਾਬੀ తెలుగు ไทย Azərbaycan Moore አማርኛ Magyar ქართული ಕನ್ನಡ ગુજરાતી Українська Shqip Кыргызча Kinyarwanda Српски тоҷикӣ Wolof Čeština தமிழ் नेपाली മലയാളം kmr فارسی ms Lietuvių Deutschالشرح
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हमारा मार्गदर्शन चिकित्सा से संबंधित एक महत्वपूर्ण सिद्धांत यानी परहेज़ की ओर कर रहे हैं, जिसके द्वारा इन्सान अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकता है। इससे मुराद अधिक भोजन करने से बचने बल्कि केवल उतना ही खाने की सलाह है, जो हमारी भूख को मिटा सके और आवश्यक कार्यों के लिए हमें ताकत दे सके। और सबसे खराब बरतन जिसे भरा गया हो पेट है, क्योंकि तृप्ति के कारण, देर-सवेर, आंतरिक या बाह्य रूप से, अनगिनत घातक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। फिर रसूलुल्लाह -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : यदि किसी व्यक्ति को भरपेट खाना ही है, तो उसे चाहिए कि पेट का एक तिहाई हिस्सा खाने के लिए, एक तिहाई पीने के लिए और एक तिहाई सांस लेने के लिए छोड़ दे, ताकि उसे किसी भी तरह की तकलीफ़ एवं हानि न हो, या धर्म और दुनिया के अनिवार्य कार्यों की अदायगी में सुस्ती न हो।فوائد الحديث
अधिक खाने पीने से बचना चाहिए। यह चिकित्सा के सभी मूल सिद्धांतों का एक समग्र आधार है, क्योंकि भरपेट खाने से विभिन्न रोग और बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
भोजन का उद्देश्य स्वास्थ्य और शक्ति को बनाए रखना है, जो कि जीवन के आधार हैं।
भरपेट खाने के बहुत-से शारीरिक और धार्मिक नुकसान हैं। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने कहा है : "भरपेट खाने से बचो, क्योंकि यह शरीर को ख़राब करता है और नमाज़ के प्रति सुस्त बना देता है।"
शरई अहकाम के दृष्टिकोण से खाने के कई प्रकार हुआ करते हैं; इतना खाना वाजिब है, जिससे जान बची रहे और जिसे छोड़ना हानिकारक हो। अनिवार्य परिमाण से अधिक इतना खाना जायज़ है कि नुक़सान का अंदेशा न हो। इतना खाना मकरूह है कि उससे हानि होने का भय हो। इतना खाना हराम है कि उससे नुक़सान हो जाने का यक़ीन हो। इतना खाना मुसतहब है कि उससे अल्लाह की इबादत और नेकी के कामों में सहयोग मिले। उल्लिखित हदीस में इन तमाम बातों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बयान कर दिया गया है : 1-पेट भरकर खाना खाना। 2- इतना खाना खाना कि पीठ खड़ी रह सके। 3- तीसरी श्रेणी को इन शब्दों में बयान किया गया है : "पेट का एक तिहाई भाग खाने के लिए, एक तिहाई भाग पीने के लिए और एक तिहाई भाग सांस लेने के लिए हो।" लेकिन यह सारी बातें उस समय हैं, जब भोजन हलाल हो।
यह हदीस चिकित्सा का एक बुनियादी सिद्धांत है। क्योंकि चिकित्सा के तीन बुनियादी सिद्धांत हैं : शक्ति की रक्षा, सावधानी बरतना और इलाज करना। जबकि इस हदीस में पहले दो सिद्धांत शामिल हैं। इसी प्रकार उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है : "खाओ, पियो और फ़िज़ूलखर्ची न करो। बेशक अल्लाह फ़िज़ूलखर्ची करने वाले को पसंद नहीं करता है।" [सूरा आराफ़ : 31]
इस्लामी शरियत एक संपूर्ण शरीयत है, जिसमें इन्सान के सांसारिक एवं धार्मिक दोनों तरह के हितों का ख़्याल रखा गया है।
चिकित्सा विज्ञान से संंबंधित मूल बातें शरई ज्ञान-विज्ञान का ही एक हिस्सा हैं। यही कारण है कि शहद एवं कलौंजी के बारे में कई बातें कही गई हैं।
शरई आदेशों एवं निर्देशों के अंदर बड़ी हिकमतें मौजूद हैं।तथा सभी शरई आदेश एवं निर्देश नुक़सान रोकने एवं लाभ प्राप्त करने पर आधारित हैं।
التصنيفات
लालसा तथा शहवतों की मज़म्मत