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1- मोमिनों का रक्त समान है तथा वह अपने शत्रुओं के विरुद्ध एक हाथ के समान हैं। उनके दिए गए सुरक्षा-वचन का पालन सबको करना पड़ेगा। सुन लो, किसी मोमिन को किसी काफ़िर के बदले में क़त्ल नहीं किया जाएगा और न किसी संधि के तहत रह रहे व्यक्ति को संधि काल के भीतर क़त्ल किया जाएगा। जिसने कोई अपराध किया उसका गुनाह उसी के ऊपर है। जिसने कोई अपराध किया या किसी अपराधी को पनाह दी, उसके ऊपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की तथा तमाम लोगों की लानत है।
2- अकसर ऐसा होता कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) किसी युद्ध में निकलने का इरादा करते, तो किसी और दिशा में निकलने का संकेत देते। परन्तु तबूक युद्ध में ऐसा नहीं किया।
3- तुम वापस जाओ, मैं किसी मुश्रिक की मदद हरिगज़ नहीं लूँगा।
4- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दो मुसलमानों को एक मुश्रिक के बदले में छुड़ाया।
5- मैंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को देखा कि सफ़र के आरंभ में दुश्मन पर धावा बोलने वालों को,उनके भाग के अतिरिक्त (ख़ुम्स निकालने के बाद ग़नीमत के धन का) एक चौथाई भाग दिया और सफ़र से लौटते समय धावा बोलने वालों को उनके भाग के अतिरिक्त एक तिहाई दिया।
6- हम अपनी लड़ाइयों में शहद और अंगूर प्राप्त करते, तो उसे खा लेते और तक़सीम के लिए अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास भेजते नहीं थे।
7- जो अल्लाह तथा आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो, वह मुसलमानों के फ़य (मुश्रिकों से बिना युद्ध किए प्राप्त होने वाला धन) के जानवर पर इस तरह सवार न हो कि जब उसे कमज़ोर कर दे, तो उसे फ़य में लौटा दे और जो अल्लाह तथा आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो, वह मुसलमानों के फ़य के किसी कपड़े को इस तरह न पहने कि जब उसे पुराना कर दे, तो वापस कर दे।
8- हम अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ ख़ैबर युद्ध में शरीक हुए, जहाँ हमें बकरियाँ मिलीं, तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उसका कुछ भाग हमारे बीच बाँट दिया और शेष को माल-ए-ग़नीमत में जमा कर दिया।
9- अगर नमाज़ी के सामने से गुज़रने वाला जान ले कि उसपर कितना गुनाह है, तो नमाज़ी के सामने से गुज़रने की तुलना में, चालीस तक ठहरे रहना उसके लिए उत्तम हो।
10- जब तुम में से कोई सुतरा सामने रखकर नमाज़ पढ़े और कोई उसके सामने से गुज़रना चाहे, तो उसे रोके। अगर वह न रुके, तो उससे लड़ाई करे, इसलिए कि वह शैतान है।
11- सूरज और चाँद अल्लाह की निशानियाँ हैं। अल्लाह उनके द्वारा अपने बंदों को डराता है। उन्हें किसी के जीने या मरने से ग्रहण नहीं लगता। अतः जब इस तरह का कुछ देखो, तो नमाज़ पढ़ो और दुआ करो, यहाँ तक कि ग्रहण खत्म हो जाए।
12- आदमी को जमात के साथ नमाज़ पढ़ने से घर तथा बाज़ार में नमाज़ पढ़ने की तुलना में पच्चीस गुना अधिक सवाब मिलता है।
13- तुम्हें बहुत से क्षेत्रों में विजय प्राप्त होगी और अल्लाह तुम्हारे लिए काफ़ी होगा। अतः तुममें से कोई तीरों से खेलने से ग़ाफ़िल न हो
14- मेरी उम्मत का भ्रमण (सर्वशक्तिमान एवं प्रभुत्वशाली) अल्लाह के मार्ग में जिहाद है।
15- तेरे लिए इसके बदले में क़यामत के दिन सात सौ नकेल लगी हुई ऊँटनियाँ हैं।
16- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नमाज़ तकबीर से और क़िरात "अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" से आरंभ करते थे। जब रुकू करते, तो न अपने सर को उठाए रखते और न बहुत ज़्यादा झुकाते, बल्कि इन दोनों के बीच रखते।
17- यहूदियों तथा ईसाइयों पर अल्लाह की धिक्कार हो। उन लोगों ने नबियों की क़ब्रों को मस्जिद बना लिया।
18- जिस ने इस प्रकार वज़ू किया, उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं
19- जो सुब्ह की नमाज़ पढ़ता है, वह अल्लाह की सुरक्षा में रहता है
20- तुममें से कोई एक कपड़े में इस तरह नमाज़ न पढ़े कि उसके दोनों कंधों पर कपड़े का कोई भाग न हो।
21- रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहते, तो अपने दोनों हाथों को कानों के बराबर उठाते और जब रुकू करते, तो अपने दोनों हाथों को कानों तक उठाते।