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जो किसी समुदाय से अनुरूपता ग्रहण करे, वह उसी में से है।
जो किसी समुदाय से अनुरूपता ग्रहण करे, वह उसी में से है।
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है, उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "जो किसी समुदाय से अनुरूपता ग्रहण करे, वह उसी में से है।"
[ह़सन]
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि जो किसी अविश्वासी, अवज्ञाकारी अथवा सत्कर्मी समुदाय की समरूपता धारण करेगा, यानी अक़ायद (आस्थाओं), इबादतों या रीति-रिवाजों से संबंधित उनकी किसी विशिष्टता को अपनाएगा, उसकी गिन्ती उसी में होगी। क्योंकि प्रत्यक्ष समरूपता आंतरिक समरूपता का कारण बनती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी समुदाय की समरूपता धारण करना उस समुदाय के मानसिक प्रभाव का नतीजा हुआ करता है और यह चीज़ उनसे प्रेम, उनके सम्मान और उनकी ओर झुकाव का कारण भी बन सकती है। चुनांचे इसके नतीजे में कभी-कभी आंतरिक और इबादत तक में उनकी समरूपता तक बात बहुँच जाती है।فوائد الحديث
इस हदीस में अविश्वासियों तथा अवज्ञाकारियों से अनुरूपता ग्रहण करने से सावधान किया गया है।
नेक लोगों की अनुरूपता ग्रहण करने और उनका अनुसरण करने की प्रेरणा।
ज़ाहिरी (प्रत्यक्ष) अनुरूपता आंतरिक प्रेम का कारण बनती है।
इन्सान समरूपता तथा उसके प्रकार के अनुसार इस चेतावनी का हक़दार बनेगा।
विशिष्ट आदतों तथा धर्म के मामले में अविश्वासियों की समरूपता धारण करने की मनाही। अन्य चीज़ों जैसे हुनर सीखने आदि में उनकी समरूपता धारण करना इस चेतावनी के दायरे में नहीं आता।
التصنيفات
वर्जित समरूपता