إعدادات العرض
1- जब आदम की संतान सजदे वाली आयत पढ़ती है और सजदा करती है, तो शैतान रोता हुआ दूर हट जाता है, वह कहता है: हाय मेरी बरबादी! आदम की संतान को सजदे का आदेश दिया गया और उसने सजदा किया, तो उसके लिए जन्नत है, जबकि मुझे सजदे का आदेश दिया गया, तो मैंने इनकार कर दिया, अतः मेरे लिए जहन्नम है
2- जब तुममें से किसी को नमाज़ में संदेह हो जाए और याद न रहे कि कितनी रकात पढ़ी है, तीन अथवा चार? तो संदेह को परे डाल दे और जिस पर यक़ीन हो, उसे आधार बनाए। फिर सलाम फेरने से पहले दो सजदे कर ले। ऐसे में, अगर उसने पाँच रकातें पढ़ ली हैं, तो दो सजदे उसकी नमाज़ को सम संख्या वाली नमाज़ बना देंगे और अगर उसने पूरी चार रकात पढ़ी है, तो दोनों सजदे शैतान के अपमान का सामान बन जाएँगे।
3- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उन्हें ज़ुहर की नमाज़ पढ़ाते समय दो रकअतों के बाद बैठने के बजाय खड़े हो गए, तो लोग भी आपके साथ खड़े हो गए, यहाँ तक कि जब नमाज़ पूरी कर ली और लोग आपके सलाम फेरने की प्रतीक्षा करने लगे, तो बैठकर ही "अल्लाहु अकबर" कहा और सलाम फेरने से पहले दो सजदे किए, फिर सलाम फेरा।
4- हमें मुग़ीरा बिन शोबा ने नमाज़ पढ़ाई और दो रकात के बाद खड़े हो गए। हमने 'सुबहानल्लाह' कहा, तो उन्होंने भी 'सुबहानल्लाह' कहा और नमाज़ जारी रखी। जब नमाज़ पूरी करके सलाम फेर चुके तो, त्रुटि के दो सजदे कर लिए। जब नमाज़ से बाहर आ गए, तो फ़रमायाः मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को ऐसा ही करते देखा है, जैसा मैंने किया है।
5- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उन्हें नमाज़ पढ़ाते समय सूरा «إذا السماء انْشَقَّتْ» पढ़ी और तिलावत का सजदा किया। जब नमाज़ पढ़ चुके, तो उन्होंने बताया कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने भी इस सूरा में सजदा किया है।
6- मैंने नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सामने सूरा 'नज्म' तिलावत की, तो आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उसमें सजदा नहीं किया।
7- मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से पूछा कि क्या सूरा 'हज्ज' में दो सजदे हैं? तो फ़रमायाः "हाँ, तथा जो दोनों सजदे न करना चाहे, वह उन दोनों आयतों को न पढ़े।"
8- जब आपके पास कोई ख़ुशी की बात आती या आप को कोई खुशखबरी दी जाती, तो अल्लाह के शुक्राने के तौर पर सजदे में चल जाते।
9- सजदा सह्व के बारे में ज़ुल यदैन की हदीस।
10- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने ज़ुहर अथवा अस्र की नमाज़ -मुहम्मद बिन सीरीन कहते हैं कि मुझे यही लगता है कि वह अस्र की नमाज़ थी- दो रकात पढ़ी और सलाम फेर दिया। उसके बाद मस्जिद के अगले भाग में गड़ी हुई एक लकड़ी के पास गए और उस पर अपना हाथ रखा।
11- अगर नमाज़ के बारे में कोई नया आदेश आया होता, तो मैं तुम्हें ज़रूर बता देता। लेकिन मैं भी तुम्हारी तरह एक इनसान हूँ, जिस तरह तुम भूलते हो, मैं भी भूलता हूँ। इसलिए जब मैं भूल जाऊँ, तो मुझे याद दिला दिया करो। और तुममें से जिसे अपनी नमाज़ में शक हो, वह सोचकर यह जानने का प्रयास करे कि सही मायने में कितनी रकात पढ़ी है, फिर उसी के अनुसार अपनी नमाज़ पूरी करे। फिर सलाम फेरे और दो सजदे कर ले।
12- हर त्रुटि के लिए सलाम फेरने के बाद दो सजदे हैं।
13- सूरा “साद” का सजदा उन सजदों में नहीं है जो अनिवार्य हैं। अलबत्ता मैंने नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को इसमें सजदा करते देखा है।
14- उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने जुमे के दिन ख़ुतबे में सूरा 'अन-नह़्ल' पढ़ी। जब सजदे की आयत में आए, तो नीचे उतरे और सजदा किया। लोगों ने भी आपके साथ सजदा किया।
15- दरअसल, मेरे पास जिबरील -अलैहिस्सलाम- आए थे और मुझे एक सुसमाचार सुनाते हुए कहा था कि सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह कहता हैः जो आप पर दरूद भेजेगा, मैं उस पर दया करूँगा और जो आप पर सलाम भेजेगा, मैं उस पर शांति उतारूँगा। अतः मैंने शुक्राने के तौर पर -सर्वशक्तिमान एवं महान- अल्लाह के सामने सजदा किया।
16- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने ख़ालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को यमन की ओर भेजा कि यमन वालों को इसलाम का निमंत्रण दें। लेकिन यमन वालों ने उनकी बात नहीं मानी, तो आपने अली बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अन्हु- को भेजा।