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1- कूफ़ा वालों ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के यहाँ साद बिन अबू वक़्क़ास (रज़ियल्लाहु अन्हु) की शिकायत की, तो उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने उनको हटाकर अम्मार बिन यासिर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) को उनका हाकिम बना दिया।
2- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) फ़ज्र की अंतिम रकात में, रुकू से सिर उठाने और 'سَمِعَ الله لمن حَمِدَه رَبَّنا ولك الحَمْدُ' कहने के बाद कहतेः ऐ अल्लाह, अमुक, अमुक और अमुक पर लानत कर। इसी पर अल्लाह तआला ने यह आयत उतारीः (لَيْسَ لَكَ مِنَ الأَمْرِ شَيْءٌ) (ऐ रसूल! आपका इसमें कुछ बस नहीं)।
3- भय की नमाज़ का तरीक़ा, जैसा कि जाबिर (रज़ियल्लाहु अंहु) से वर्णित है।
4- मैं अपने पिता के साथ अबू बरज़ा असलमी के पास गया। मेरे पिता ने उनसे पूछा कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- फ़र्ज़ नमाज़ कैसे पढ़ते थे?
5- अम्र बिन अबसा के इस्लाम लाने की घटना और नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का उन्हें नमाज़ और वज़ू सिखाने का वर्णन।
6- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हमें किसी जंग में भय की नमाज़ पढ़ाई। एक जमात आपके साथ खड़ी हो गई और एक जमात शत्रु के सामने खड़ी रही। जो लोग आपके साथ थे, उन्हें आपने एक रकात पढ़ाई। फिर वह लोग चले गए और दूसरे लोग आए। आपने उन्हें भी एक रकात पढ़ाई। फिर दोनों गिरोहों ने बाद में एक-एक रकात पढ़ ली।
7- ऐ अल्लाह! अय्याश बिन अबू रबीआ, सलमा बिन हिशाम, वलीद बिन वलीद और दुर्बल मोमिनों को मुक्ति दिला दे। ऐ अल्लाह! मुज़र पर अपनी पकड़ सख्त कर। ऐ अल्लाह! उन्हें यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) के युग में होने वाले सूखे जैसे सूखे से ग्रस्त कर।
8- जिबरील (अलैहिससलाम) उतरे और मेरी इमामत की, तो मैंने उनके पीछे नमाज़ पढ़ी, फिर उनके पीछे नमाज़ पढ़ी, फिर उनके पीछे नमाज़ पढ़ी, फिर उनके पीछे नमाज़ पढ़ी और फिर उनके पीछे नमाज़ पढ़ी
9- यही इस नमाज़ का उत्तम समय है, यदि मैं अपनी उम्मत को कठिनाई में न डाल रहा होता तो
10- सुबह की नमाज़ सुबह होने के बाद ही पढ़ो; क्योंकि इससे तुम्हें अधिक नेकी मिलती है, या कहा कि इससे नेकी अधिक मिलती है
11- मैंने बिलाल (रज़ियल्लाहु अनहु) को देखा कि अबतह की ओर निकले और अज़ान दी। जब 'हय्या अलस-सलाह', 'हय्या अलल-फ़लाह' तक पहुँचे, तो अपनी गर्दन को दाएँ और बाएँ मोड़ा तथा अपने शरीर को नहीं घुमाया
12- मुअज़्जिन, अज़ान का अधिक हक़दार है और इमाम, इक़ामत का अधिक हक़दार है
13- कपड़ा यदि चौड़ा हो, तो (उसे पूरे शरीर पर लपेटने के बाद) दाएँ किनारे को बाएँ कंधे पर और बाएँ किनारे को दाएँ कंधे पर डाल लो, किंतु यदि तंग हो, तो उसे अपनी कमर पर बाँध लो।
14- यह जो नमाज़ है, इसमें लोगों की आम बात-चीत सही नहीं है। इसमें तो बस तसबीह, तकबीर और क़ुरआन की तिलावत होती है।
15- बिलाल (रज़ियल्लाहु अंहु) ने फ़ज्र होने से पहले ही अज़ान दे दी, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन्हें आदेश दिया कि जाकर यह ऐलान करें : "लोग सुनो, बंदा सो गया था। लोगो सुनो, बंदा सो गया था।"
16- जब तुममें से कोई नमाज़ के लिए खड़ा होता है, तो अल्लाह की रहमत उसकी ओर मुतवज्जेह होती है। अतः, वह कंकड़ न छूए।
17- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने नज्द की ओर कुछ सवार भेजे, जो बनू हनीफ़ा के एक आदमी को पकड़ लाए। उस आदमी का नाम सुमामा बिन उसाल था। लोगों ने उसे मस्जिद के एक खंबे से बाँध दिया।
18- मस्जिदों में न तो हद लागू की जाएगी और उनके अंदर क़िसास लिया जाएगा।
19- ख़ंदक़ के दिन साद (रज़ियल्लाहु अंहु) जख़्मी हो गए थे। उनको क़ुरैश की बनू मईस बिन आमिर बिन लुऐ शाखा के हिब्बान बिन क़ैस नामी एक व्यक्ति ने, जिसे हिब्बान बिन अरिक़ा कहा जाता था, उनके बाज़ू की रग में तीर मार दिया था। चुनांचे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनके लिए मस्जिद में एक ख़ेम लगा दिया था, ताकि निकट से उनकी देखभाल कर सकें।
20- आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) कहती हैं : वह मेरे पास आकर बातें किया करती थी और जब भी मेरे पास आती, यह शेर ज़रूर पढ़ती। कमरबंद का दिन अल्लाह की अजीब क़ुदरतों में से है। उसने मुझे कुफ़्र के देश से मुक्ति प्रदान की।
21- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने ज़ुहर अथवा अस्र की नमाज़ -मुहम्मद बिन सीरीन कहते हैं कि मुझे यही लगता है कि वह अस्र की नमाज़ थी- दो रकात पढ़ी और सलाम फेर दिया। उसके बाद मस्जिद के अगले भाग में गड़ी हुई एक लकड़ी के पास गए और उस पर अपना हाथ रखा।
22- अगर नमाज़ के बारे में कोई नया आदेश आया होता, तो मैं तुम्हें ज़रूर बता देता। लेकिन मैं भी तुम्हारी तरह एक इनसान हूँ, जिस तरह तुम भूलते हो, मैं भी भूलता हूँ। इसलिए जब मैं भूल जाऊँ, तो मुझे याद दिला दिया करो। और तुममें से जिसे अपनी नमाज़ में शक हो, वह सोचकर यह जानने का प्रयास करे कि सही मायने में कितनी रकात पढ़ी है, फिर उसी के अनुसार अपनी नमाज़ पूरी करे। फिर सलाम फेरे और दो सजदे कर ले।
23- हर त्रुटि के लिए सलाम फेरने के बाद दो सजदे हैं।
24- सूरा “साद” का सजदा उन सजदों में नहीं है जो अनिवार्य हैं। अलबत्ता मैंने नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को इसमें सजदा करते देखा है।
25- उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने जुमे के दिन ख़ुतबे में सूरा 'अन-नह़्ल' पढ़ी। जब सजदे की आयत में आए, तो नीचे उतरे और सजदा किया। लोगों ने भी आपके साथ सजदा किया।
26- दरअसल, मेरे पास जिबरील -अलैहिस्सलाम- आए थे और मुझे एक सुसमाचार सुनाते हुए कहा था कि सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह कहता हैः जो आप पर दरूद भेजेगा, मैं उस पर दया करूँगा और जो आप पर सलाम भेजेगा, मैं उस पर शांति उतारूँगा। अतः मैंने शुक्राने के तौर पर -सर्वशक्तिमान एवं महान- अल्लाह के सामने सजदा किया।
27- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने ख़ालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को यमन की ओर भेजा कि यमन वालों को इसलाम का निमंत्रण दें। लेकिन यमन वालों ने उनकी बात नहीं मानी, तो आपने अली बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अन्हु- को भेजा।
28- जब मुअज़्ज़िन फ़ज्र की नमाज़ की अज़ान देकर ख़ामोश हो जाता, तो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- खड़े होते और फ़ज्र की नमाज़ से पहले हल्की-हल्की दो रकातें पढ़ते। यह फ़ज्र का समय हो जाने के बाद की बात है। फिर बाईं करवट पर लेट जाते, यहाँ तक मुअज़्ज़िन इक़ामत के लिए आता।
29- जब तुम में से कोई सुबह (फ़ज्र) से पहले दो रकातें पढ़े, तो दाईं करवट पर लेट जाए।
30- वित्र फ़र्ज़ नमाज़ों की तरह अनिवार्य नहीं है। लेकिन, यह सुन्नत है। इसे अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने सुन्नत क़रार दिया है।
31- सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह ने तुम्हें एक अतिरिक्त नमाज़ प्रदान की है। उसे तुम इशा नमाज़ और फ़ज्र की नमाज़ के बीच में पढ़ो। वह नमाज़ वित्र है। वह नमाज़ वित्र है।
32- जिसने सुबह होने से पहले वित्र नहीं पढ़ी तथा सुबह हो गई, तो उसके लिए वित्र नहीं।
33- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- चाश्त की नमाज़ चार रकअत पढ़ा करते थे, और जितना अल्लाह चाहता उतना उसमें ज्यादा करते।
34- क्या नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- चाश्त की नमाज़ पढ़ा करते थे? उन्होंने कहा : नहीं, सिवाय तब जब आप किसी यात्रा से लौट कर आते।
35- अगर नमाज़ी के सामने से गुज़रने वाला जान ले कि उसपर कितना गुनाह है, तो नमाज़ी के सामने से गुज़रने की तुलना में, चालीस तक ठहरे रहना उसके लिए उत्तम हो।
36- जब तुम में से कोई सुतरा सामने रखकर नमाज़ पढ़े और कोई उसके सामने से गुज़रना चाहे, तो उसे रोके। अगर वह न रुके, तो उससे लड़ाई करे, इसलिए कि वह शैतान है।
37- सूरज और चाँद अल्लाह की निशानियाँ हैं। अल्लाह उनके द्वारा अपने बंदों को डराता है। उन्हें किसी के जीने या मरने से ग्रहण नहीं लगता। अतः जब इस तरह का कुछ देखो, तो नमाज़ पढ़ो और दुआ करो, यहाँ तक कि ग्रहण खत्म हो जाए।
38- आदमी को जमात के साथ नमाज़ पढ़ने से घर तथा बाज़ार में नमाज़ पढ़ने की तुलना में पच्चीस गुना अधिक सवाब मिलता है।
39- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नमाज़ तकबीर से और क़िरात "अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" से आरंभ करते थे। जब रुकू करते, तो न अपने सर को उठाए रखते और न बहुत ज़्यादा झुकाते, बल्कि इन दोनों के बीच रखते।
40- जो सुब्ह की नमाज़ पढ़ता है, वह अल्लाह की सुरक्षा में रहता है
41- तुममें से कोई एक कपड़े में इस तरह नमाज़ न पढ़े कि उसके दोनों कंधों पर कपड़े का कोई भाग न हो।
42- रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहते, तो अपने दोनों हाथों को कानों के बराबर उठाते और जब रुकू करते, तो अपने दोनों हाथों को कानों तक उठाते।