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1- यदि नमाज़ी के सामने से गुज़रने वाला जान ले कि उसपर कितना गुनाह है, तो नमाज़ी के सामने से गुज़रने की तुलना में, चालीस तक ठहरे रहना उसके लिए उत्तम होगा। अबू नज़्र कहते हैं : मुझे नहीं पता कि आपने चालीस दिन फ़रमाया है अथवा महीना अथवा साल।
2- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हमें आदेश दिया कि हम दोनों ईदों में कुँवारी तथा परदानशीं स्त्रियों को ले जाएँ। तथा मासिक धर्म वाली स्त्रियों को आदेश दिया कि वे मुसलमानों की ईदगाह से अलग रहें।
3- ऐ अल्लाह! मैंने जो पहले किया और जो बाद में किया, जो छिपाकर किया तथा जो दिखाकर किया और जिसमें मैंने अति की और जिसको तू मुझसे भी बेहतर जानने वाला है, उन सभी गुनाहों को माफ़ कर दे। तू ही आदेशपालन का सामर्थ्य देकर आगे करता है और तू ही अवज्ञा के कारण पीछे करता है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है।
4- मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ एक रात तहज्जुद की नमाज़ पढ़ी। आप खड़े हुए और सूरा बक़रा पढ़ी। जब रहमत की आयत से गुज़रते, तो रुककर (अल्लाह से उसकी दया) माँगते और जब अज़ाब की आयत से गुज़रते, तो रुककर (उससे अल्लाह की) शरण माँगते।
5- ऐ अल्लाह! मैंने अपने आपको तेरे हवाले कर दिया, तुझपर ईमान लाया, तुझपर भरोसा किया, तेरी मदद से अपने शत्रुओं से झगड़ा किया और निर्णय को तेरे हवाले कर दिया। अतः, मेरे उन सारे गुनाहों को क्षमा कर दे, जो मैंने पहले किए और जो मैं करने वाला हूँ और जो मैंने छिपाकर किए और जो दिखाकर किए और जिन्हें तू मुझसे अधिक जानता है। तेरे सिवा कोई सत्य पुज्य नहीं है।
6- ऐ अल्लाह, ऐ जिबराईल, मीकाईल तथा इसराफ़ील के रब! आकाश तथा धरती को बनाने वाले और हाज़िर और ग़ायब की ख़बर रखने वाले! तू ही अपने बंदों के मतभेदों का निर्णय करने वाला है, मुझे अपनी अनुमति से जिसके प्रति मतभेद हो गया है, उसमें सत्य की राह दिखा। निश्चय तू जिसे चाहता है उसे सही रास्ता दिखाता है।
7- अनस (रज़ियल्लाहु अनहु) का वर्णन है, वह कहते हैं कि जब हम किसी जगह पर उतरते तो पालान उतारने से पहले नफ़्ल नमाज़ नहीं पढ़ते थे
8- मस्जिदें पाख़ाना- पेशाब के लिए नहीं होती हैं, बल्कि अल्लाह के स्मरण तथा क़ुरआन के पठन- पाठन के लिए होती हैं
9- एक व्यक्ति ने मस्जिद में कुछ ढूँढते हुए कहा: कौन लाल ऊँट को पहचानता है। इसपर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: तुम्हें न मिले, क्योंकि मस्जिदें केवल उन कामों के लिए होती हैं जिनके लिए वह बनाई गई हैं।
10- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जुमा के दिन जबकि इमाम जुमे का प्रवचन दे रहा हो, दोनों टांगें खड़ी करके चूतड़ के बल बैठने से मना फ़रमाया है
11- जब नमाज़ के लिए अज़ान कही जाती है, तो शैतान हवा निकालता हुआ पीठ फेरकर भाग खड़ा होता है; ताकि अज़ान की आवाज़ न सुन सके
12- क़यामत के दिन अज़ान देने वालों की गर्दनें सबसे ऊँची होंगी
13- जब सूरज का किनारा दिखाई दे, तो नमाज़ पढ़ना बंद कर दो, यहाँ तक कि वह पूरे तौर पर ज़ाहिर हो जाए और जब सूरज का किनारा ग़ायब हो जाए, तो नमाज़ पढ़ना बंद कर दो, यहाँ तक कि वह पूरे तौर पर डूब जाए तथा सूरज डूबने एवं निकलने का समय देखकर ही नमाज़ न पढ़ो; क्योंकि सूरज शैतान के दो सींगों के बीच में निकलता है
14- ज़ुहर का समय, सूरज ढलने से आदमी का साया उसके क़द के बराबर होने यानी अस्र का समय प्रवेश करने तक रहता है, अस्र का समय सूरज में पीलापन आने तक रहता है, मग़रिब की नमाज़ का समय क्षितिज से लालिमा के दूर होने तक रहता है, इशा की नमाज़ का समय आधी रात तक रहता है और सुबह की नमाज़ का समय फ़ज्र से सूरज निकलने तक रहता है
15- हम अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ मगरिब की नमाज़ पढ़ते थे और जब हममें से कोई वापस जाता (और तीर फैंकता) तो वह तीर के गिरने की जगहों को देख लेता
16- जिसने सूरज निकलने से पहले सुबह की एक रकात पाई, उसने सुबह की नमाज़ पा ली और जिसने सूरज डूबने से पहले अस्र की एक रकत पाई, उसने अस्र की नमाज़ पा ली
17- किसी को रात या दिन के जिस भाग में चाहे, इस घर का तवाफ़ (परिक्रमा) करने या इसमें नमाज़ पढ़ने से न रोको
18- फ़ज्रें दो हैं: जहाँ तक उस फ़ज्र की बात है, जो भेड़िए की दुम की तरह प्रकट होती है, तो न उसमें (फ़ज्र की) नमाज़ पढ़ना हलाल है और न उससे सहरी करना हराम होता है, रही बात उस फ़ज्र की, जो क्षितिज में फैल जाती है, तो उसमें फ़ज्र की नमाज़ पढ़ना हलाल है और उससे सहरी करना हराम हो जाता है
19- तुममें से जो लोग उपस्थित हैं, वे अनुपस्थित लोगों को यह बात पहुँचा दें कि फ़ज्र के बाद दो रकातों के सिवा कोई नमाज़ न पढ़ो
20- यह, अल्लाह ने चाहा तो, एक सच्चा स्वप्न है, अतः तुम बिलाल के साथ खड़े हो जाओ और जो कुछ देखा है, उसे बताओ, वह उन शब्दों द्वारा अज़ान दे, क्योंकि उसकी आवाज़ तुमसे ऊँची है
21- सुन्नत यह है कि अज़ान देने वाला फ़ज्र की अज़ान में 'हय्या अलल-फ़लाह' के बाद 'अस-सलातु ख़ैरुम-मिनन-नौम' (नमाज़ नींद से बेहतर है) कहे
22- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मग़रिब तथा इशा की नमाज़ को जमा करते हुए मग़रिब की तीन रकात और इशा की दो रकात एक ही अज़ान से पढ़ी
23- तुम उनके इमाम हो, उनके सबसे कमज़ोर को ध्यान में रखते हुए नमाज़ पढ़ाओ और ऐसा मुअज़्ज़िन नियुक्त करो, जो अज़ान देने का मेहनताना न लेता हो
24- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का मुअज़्ज़िन देर करता और इक़ामत नहीं कहता, यहाँ तक कि जब देख लेता कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) निकल आए हैं, तो इक़ामत कहता
25- हम लोग नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ एक यात्रा में थे। रात अंधेरी थी और हमें पता न चल सका कि क़िबला किधर है। अतः, हममें से हर व्यक्ति ने अपने विवेक के अनुसार क़िबला का चयन कर नमाज़ पढ़ ली। सुबह जब हमने इसका ज़िक्र नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से किया, तो आपपर यह आयत उतरी: {فأينما تولوا فثم وجه الله} [सूरा अल-बक़राः 115] (तुम जिस ओर भी रुख़ करोगे, उधर ही अल्लाह का मुख है।)
26- पूरब और पश्चिम के बीच जो फ़ासला है, वह क़िबला है।
27- जब तुममें से कोई मस्जिद आए, तो ठीक से देख ले। यदि जूतों में गंदगी या नापाकी दिखाई दे, तो उसे रगड़कर साफ कर ले और उन्हें पहनकर नमाज़ पढ़ ले।
28- मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को नमाज़ पढ़ते समय देखा कि आपके सीने से रोने के कारण चक्की के चलने की तरह आवाज़ निकल रही है। आपपर अल्लाह की कृपा हो और शांति की धारा बरसे।
29- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नमाज़ पढ़ने कि लिए क़ुबा की ओर निकले।
30- मैंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को देखा कि आप लोगों को नमाज़ पढ़ा रहे थे और उमामा बिंत अबुल आस, जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुपुत्री ज़ैनब की बेटी थीं, आपके कंधे पर थीं। जब आप रुकू करते, तो उनको उतार देते और जब सजदे से उठते, तो उनको दोबारा कंधे पर उठा लेते।
31- दो काली वस्तुओं को नमाज़ की अवस्था में भी मार दो : साँप तथा बिच्छू।
32- हम लोग नमाज़ पढ़ते और हमारे आगे से पशु गुजरते रहते। हमने इसका उल्लेख अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से किया, तो आपने फरमयाः "कजावे के पिछले भाग की लकड़ी के समान कोई वस्तु अपने सामने रख लो, तो सामने से गुज़रने वाली कोई चीज़ तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचाएगी।
33- जब तुममें से कोई नमाज़ पढ़े, तो अपनी नमाज़ के लिए कोई ओ़ट बना ले, चाहे वह एक तीर ही क्यों न हो।
34- जब तुममें से कोई नमाज़ के लिए खड़ा हो और उसके सामने कजावे के पिछले भाग की लकड़ी के समान कोई वस्तु हो, तो वह उसके लिए ओट हो जाती है। किंतु, यदि उसके सामने कजावे के पिछले भाग की लकड़ी के समान कोई वस्तु न हो, तो उसकी नमाज़ को गधा, महिला तथा काला कुत्ता भंग कर देते हैं।
35- आइशा (रज़ियल्लाहु अन्ह) से वर्णित है कि वह इस बात को नापसंद करती थीं कि कोई (नमाज़ पढ़ते समय) अपने हाथ को कोख पर रखे तथा कहा करती थीं कि यहूदी ऐसा करते हैं।
36- जब खाना सामने रख दिया जाए, तो मग़रिब की नमाज़ से पहले खाना खा लो और खाना छोड़कर नमाज़ के लिए जाने की जल्दी न करो।
37- मैंने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से पूछा : नमाज़ में इधर उधर देखना कैसा है? तो आपने उत्तर दिया : "यह एक प्रकार की चोरी है, जो शैतान बंदे की नमाज़ में करता है।"
38- मेरी यह चादर अबू जह्म को दे दो और अबू जह्म से उसकी अंबजानी चादर (बिना धारियों वाली मोटी चादर) ले आओ। क्योंकि इसने अभी नमाज़ से मेरा ध्यान भटकाने का काम किया है।
39- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने महल्लों में मस्जिदें बनाने तथा उन्हें पवित्र एवं स्वच्छ और सुगंधित रखने का आदेश दिया है।
40- मैं आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ, क्या आपने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कहते हुए सुना है कि : "ऐ हस्सान! मेरी ओर से उत्तर दो! ऐ अल्लाह! पवित्र आत्मा (जिबरील) के द्वारा तू इसकी सहायता कर।?" तो उन्होंने उत्तर दिया : मैं अल्लाह को गवाह बनाकर कहता हूँ कि हाँ, आपने ऐसा कहा था।
41- जो किसी व्यक्ति को मस्जिद में खोए हुए सामान को खोजने का ऐलान करते हुए सुने, तो कहे : अल्लाह उसको तुम्हें वापस न लौटाए। क्योंकि मस्जिदें इसके लिए नहीं बनी हैं।
42- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : जब किसी व्यक्ति को मस्जिद में क्रय-विक्रय करते हुए देखो, तो कहो : अल्लाह तुम्हारे व्यापार में लाभ न दे। और जब किसी को मस्जिद में खोए हुए सामान को खोजने का ऐलान करते देखो, तो कहो : अल्लाह उसे तुम्हें वापस न करे।
43- "जाने भी दो अबू बक्र! ये ईद के दिन हैं।" मालूम रहे कि वे मिना के दिन थे।
44- क़यामत उस समय तक नहीं आएगी, जब तक कि लोग मस्जिदों के बारे में गर्व न करने लगें।
45- अच्छे ढंग से नमाज़ न पढ़ने वाले की हदीस, रिफ़ाआ (रज़ियल्लाहु अंहु) के वर्णन अनुसार।
46- अबू हुमैद साइदी (रज़ियल्लाहु अंहु) का अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के दस सहाबा की उपस्थिति में, जिनमें अबू क़तादा भी शामिल थे, यह कहना कि मैं तुम लोगों में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नमाज़ को सबसे अधिक जानता हूँ।
47- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब रात में उठते, तो तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहते, फिर यह दुआ पढ़ते : "سبحانك اللهم وبحمدك وتبارك اسمك، وتعالى جدك، ولا إله غيرك" (ऐ अल्लाह, तू पवित्र है अपनी प्रशंसा समेत, तेरा नाम बड़ी बरकत वाला है, तेरी शान बड़ी बुलंद है और तेरे सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं।)
48- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नमाज़ तकबीर से और क़िरात {अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन) से आरंभ करते थे। जब आप रुकू करते, तो न अपना सिर बहुत झुकाते और न सीधा रखते, बल्कि इन दोनों के बीच रखते।
49- मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ नमाज़ पढ़ी, तो (देखा कि) आपने अपने दाहिने हाथ को अपने बाएँ हाथ पर, सीने के ऊपर रखा।
50- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा अबू बक्र एवं उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) नमाज़ का आरंभ "अल-ह़म्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" से करते थे।
51- जहाँ तक इस आदमी की बात है, तो इसने अपना हाथ भलाई से भर लिया है।
52- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ज़ुहर की पहली दो रकातों में सूरा फ़ातिहा और दो सूरतें पढ़ते थे और बाद की दो रकातों में सिर्फ़ सूरा फ़ातिहा पढ़ते थे और कभी कभी कोई आयत हमें सुना भी देते थे।
53- हम लोग ज़ुहर और अस्र में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के क़याम (खड़े होने) का अनुमान लगाते थे। हमने अनुमान लगाया कि आप ज़ुहर की पहली दो रकातों में {الم تنزيل السجدة} (अलिफ लाम मीम तंज़ीन अस-सजदा) के बराबर खड़े होते थे, तथा हमने अंदाज़ा लगाया कि उसकी बाद की दो रकातों में उसके आधा खड़े होते थे।
54- मैंने अमुक व्यक्ति के मुकाबले में किसी के भी पीछे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से अधिक मिलती-जुलती नमाज़ नहीं पढ़ी। चुनांचे हमने उस व्यक्ति के पीछे नमाज़ पढ़ी और पाया कि वह ज़ुहर की प्रथम दो रकातों को लंबा करते थे तथा अंतिम दो रकातों को हल्का करते थे।
55- मैंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मग़रिब की नमाज़ में सूरा अत-तूर पढ़ते सुना। जब आप इस आयत पर पहुँचे : (أم خُلِقُوا من غير شيء أم هم الخالقون، أم خَلَقُوا السموات والأرض بل لا يوقنون، أم عندهم خزائن ربك أم هم المسيطرون) (क्या वे बिना किसी के पैदा किए ही पैदा हो गए हैं या वे स्वयं पैदा करने वाले हैं? या उन्होंने ही उत्पत्ति की है आकाशों तथा धरती की? वास्तव में वे विश्वास ही नहीं रखते। या उनके पास आपके पालनहार के कोषागार हैं या वही उसके अधिकारी हैं?) तो ऐसा लग रहा था कि मेरा दिल उड़ जाएगा।
56- ऐ लोगों, नबूवत के शुभ संदेशों में से अब केवल अच्छे स्वप्न ही रह गए हैं, जिस को मुस्लिम देखता है, या उस के लिए देखा जाता है, सचेत रहो मुझे रुकू तथा सज्दा में क़ुरआन पढ़ने से मना किया गया है।
57- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की नमाज़, और आप का रुकू, तथा जब आप रुकू से सिर उठाते (उस के बाद का समय), और आप का सज्दे तथा दो सज्दों के मध्य बैठने का समय, सभी लग-भग बराबर होते।
58- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ में रुकू करते तो अपनी ऊंगलियों को फैला कर रखते तथा जब सज्दा करते तो अपनी ऊंगलियों को मिला लेते थे।
59- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ की एकल रकअतों में होते तो उस वक़्त तक खड़े न होते जब तक सीधे बैठ न जाते।
60- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने एक मास तक रुकू के बाद क़ुनूत (नाज़िला) पढ़ा, (इस में) आप बनू सुलैम के कुछ क़बीलों- पर बद्दुआ करते थे।
61- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- क़ुनूत उसी समय पढ़ा करते थे जब आप किसी के लिए दुआ करते या किसी पर बद्दुआ करते।
62- हे मेरे पिता, आप ने रसूलुल्लाह- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, तथा अबू बकर, उमर, उस्मान एवं यहां कूफा में अली- रज़ियल्लाहु अन्हुम- के पीछे नमाज़ पढ़ी है, क्या वो लोग फज्र में (दुआ -ए-) क़ुनूत पढ़ते थे? उन्होंने उत्तर देते हुए कहा किः यह बिदअत है।
63- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब बैठते थे तो दुआ किया करते थे, अपने दाहिने हाथ को अपने दाहिने जांघ पर रखा करते थे तथा बाएं हाथ को बाएं जांघ पर रखा करते थे, और तर्जनी (शहादत वाली ) उंगली से इशारा करते रहते थे, तथा अपने उंगूठे को मध्यमा (बीच वाली उंगली) पर रखते थे, और अपने बाएं हाथ का गोला बनाकर उस से घुटने को पकड़ते।
64- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हमें तशह्हुद सिखाते थे, जिस प्रकार हमें क़ुरआन की सूरा सिखाते थे।
65- अगर सामर्थ्य हो तो भूमी पर बैठ कर नमाज़ पढ़ो अथवा इशारा कर के पढ़ो और अपने सज्दा को रुकू के मुकाबले में थोड़ा अधिक झुका कर करो।
66- एक रात नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने सारी रात एक आयत को ही निरंतर पढ़ते हुए क़्याम किया।
67- हमें मुग़ीरा बिन शोबा ने नमाज़ पढ़ाई और दो रकात के बाद खड़े हो गए। हमने 'सुबहानल्लाह' कहा, तो उन्होंने भी 'सुबहानल्लाह' कहा और नमाज़ जारी रखी। जब नमाज़ पूरी करके सलाम फेर चुके तो, त्रुटि के दो सजदे कर लिए। जब नमाज़ से बाहर आ गए, तो फ़रमायाः मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को ऐसा ही करते देखा है, जैसा मैंने किया है।
68- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उन्हें नमाज़ पढ़ाते समय सूरा «إذا السماء انْشَقَّتْ» पढ़ी और तिलावत का सजदा किया। जब नमाज़ पढ़ चुके, तो उन्होंने बताया कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने भी इस सूरा में सजदा किया है।
69- मैंने नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सामने सूरा 'नज्म' तिलावत की, तो आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उसमें सजदा नहीं किया।
70- मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से पूछा कि क्या सूरा 'हज्ज' में दो सजदे हैं? तो फ़रमायाः "हाँ, तथा जो दोनों सजदे न करना चाहे, वह उन दोनों आयतों को न पढ़े।"
71- जब आपके पास कोई ख़ुशी की बात आती या आप को कोई खुशखबरी दी जाती, तो अल्लाह के शुक्राने के तौर पर सजदे में चल जाते।
72- मग़रिब से पहले दो रकात पढ़ो।
73- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- मिंबर पर थे कि एक आदमी ने आपसे पूछा कि रात की नमाज़ के बारे में आपका क्या आदेश है? तो आपने फरमायाः "दो-दो रकात है। फिर जब सुबह हो जाने का भय हो, तो एक रकात पढ़ ले। यह एक रकात उसकी पढ़ी हुई नमाज़ को वित्र (बेजोड़) बना देगी।"
74- वित्र हक़ है।अब, जो चाहे सात रकात के साथ वित्र बनाये, जो चाहे पाँच रकात रकात के साथ वित्र बनाये, जो चाहे तीन रकात के साथ वित्र बनाये और जो चाहे एक रकात के साथ वित्र बनाये।
75- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हमें रमज़ान में आठ रकात तथा वित्र पढ़ाई। फिर अगली रात हम मस्जिद में जमा हुए और उम्मीद की कि आप हमारी ओर निकल कर आएँगे। इसी आशा में हम मस्जिद ही में रुके रहे, यहाँ तक कि सुबह हो गई।
76- ऐ अब्दुल्लाह ! फलाँ आदमी की तरह न हो जाना कि वह रात को उठा करता था, फिर उसने रात में क़याम करना छोड़ दिया ।
77- ऐ क़ुरआन वालो ! वित्र पढ़ा करो, निश्चित ही अल्लाह वित्र (विषम) है तथा वित्र को पसंद करता है।
78- एक रात में दो वित्र नहीं हैं।
79- जो सोया रह जाए और वित्र न पढ़ सके, अथवा भूल जाए, तो उसे चाहिए कि जब याद आए तब पढ़ ले।
80- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कोई अमल पसंद होता, इसके बावजूद उसे इस डर से छोड़ देते कि कहीं लोग उसपर अमल करने लगें और उनपर फ़र्ज़ कर दिया जाए।
81- अव्वाबीन (नेक लोगों) की नमाज़ उस समय होती है जब ऊँट के बच्चों के पाँव जलने लगें।
82- ऐसा न करो, जब तुम में से कोई अपने घर में (फ़र्ज़) नमाज़ पढ़ चुका हो, फिर वह इमाम को नमाज़ पढ़ाते हुए पाए , तो उसे चाहिए कि इमाम के साथ नमाज़ पढ़ ले, यह नमाज़ उसके लिए नफ़्ल हो जाएगी।
83- एक दफा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम घोड़े पर सवार हुए तो उससे गिर गए, जिस के कारण आपका दायां पहलू जख़्मी हो गया।
84- आगे बढ़ो तथा मेरा अनुसरण करो, तथा तुम्हारा अनुसरण तुम्हारे पीछे वाले करें, (याद रखो) लोग बराबर पीछे हटते रहते हैं यहां तक कि अल्लाह भी उन्हें पीछे कर देता है।
85- ऐ लोगो ! तुम नफ़रत फैला रहे हो, जो लोगों को नमाज़ पढ़ाए उसे चाहिए कि हल्की नमाज़ पढ़ाए, उन में रोगी भी होते हैं, कमज़ोर भी तथा ज़रूरत मंद भी।
86- फ़लाँ नमाज़ को फ़लाँ समय में पढ़ो और फ़लाँ नमाज़ को फ़लाँ समय में पढ़ो,जब नमाज़ का समय हो जाए तो तुम में से एक व्यक्ति अज़ान दे तथा तुम में से जो क़ुरआन का सबसे ज़्यादा याद रखता हो वह इमामत करे।
87- जो क़ुरआन को सर्वाधिक याद रखता हो वह लोगों की इमामत करे।
88- "ऐ अल्लाह! मेरे दिल में नूर रख दे, मेरी आँख में नूर रख दे, मेरे कान में नूर रख दे, मेरे दाएँ नूर रख दे, मेरे बाएँ नूर रख दे, मेरे ऊपर नूर रख दे, मेरे नीचे नूर रख दे, मेरे सामने नूर रख दे, मेरे पीछे नूर रख दे और मेरे लिए नूर बना दे।"
89- मैंने और यतीम ने, नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पीछे अपने घर में नमाज़ पढ़ी और मेरी माँ उम्मे सुलैम हमारे पीछे थीं।
90- अल्लाह तआला तुम्हारे शौक़ (चाह, अभिरुचि) में वृद्धि करे, लेकिन पुनः ऐसा न करना।
91- उम्मे वरक़ा बिन्ते अब्दुल्लाह बिन हारिस अंसारी से वर्णित है कि उन्होंने क़ुरआन हिफ़्ज़ (कंठस्थ) किया था, (और) नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उन्हें आदेश दिया था कि वह अपने घर वालों की इमामत करें (उन्हें नमाज़ पढ़ाएं)।
92- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इब्ने उम्मे मकतूम को अपना ख़लीफा (उत्तराधिकारी) बनाया था जो लोगों की इमामत करते थे, जबकि वह अंधे आदमी थे।
93- हर दो अज़ानों के बीच में नमाज़ है। हर दो अज़ानों के बीच में नमाज़ है।" फिर तीसरी बार फ़रमाया : "उसके लिए, जो पढ़ना चाहे।
94- अपने परिवार ओर वापस जाओ, उनके बीच रहो, उन्हें शिक्षा प्रदान करो, आदेश दो और अमुक नमाज़ अमुक समय में तथा अमुक नमाज़ अमुक समय में पढ़ो। जब नमाज़ का समय आ जाए, तो तुममें से एक व्यक्ति तुम्हारे लिए अज़ान दे और तुममें सबसे अधिक आयु वाला व्यक्ति तुम्हारी इमामत करे।
95- निश्चय यह निशानियाँ, जिन्हें अल्लाह भेजता है, किसी के मरने या जीने से सामने नहीं आतीं। बल्कि उन्हें वह अपने बंदों को डराने के लिए भेजता है। अतः जब उनमें से कोई चीज़ देखो, तो अल्लाह के ज़िक्र, दुआ और क्षमा याचना की ओर भागो।
96- ऐ अल्लाह के रसूल, ऐसा लग रहा था कि मैं अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ा सकूँगा, यहाँ तक सूरज डूबने लगा, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः अल्लाह की क़समः मैंने तो अभी तक अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी है। वर्णनकर्ता कहते हैं कि फिर हम लोग बुतहान की ओर निकले, आपने नमाज़ के वज़ू किया, हमने भी वज़ू किया, फिर सूरज डूबने के बाद अस्र की नमाज़ पढ़ी और उसके बाद मग़रिब की नमाज़ पढ़ी।
97- मैंने अपनी खाला मैमूना के पास रात बिताई। अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रात की नमाज़ के लिए खड़े हुए तो मैं आपकी बाएँ ओर खड़ा हो गया। ऐसे में, आपने मेरा सिर पकड़ा और अपनी दाहिनी ओर खड़ा कर दिया।
98- अल्लाह उनकी क़ब्रों तथा घरों को आग से भर दे, उन्होंने हमें अस्र की नमाज़ से व्यस्त रखा , यहाँ तक कि सूरज डूब गया।
99- सजदा सह्व के बारे में ज़ुल यदैन की हदीस।
100- ज़ातुर-रिक़ा युद्ध में पढ़ी गई भय की नमाज़ की तरीक़ा