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1- तुममें से किसी की दुआ उस समय तक क़बूल होती है, जब तक वह जल्दबाजी न करे। अर्थात ऐसा न कहे कि मैंने अपने रब को पुकारा, परन्तु, मेरी दुआ क़बूल नहीं हुई।
2- धरती पर उपस्थित जो भी मुसलमन अल्लाह से कोई दुआ माँगता है, अल्लाह या तो उसे वही चीज़ देता है या उससे उसके बराबर कोई बुराई दूर कर देता है, जब तक गुनाह या रिश्ते-नाते को तोड़ने की दुआ न करे।"
3- तेरा रब (पालनहार) बड़ा ही हया वाला तथा दाता है। जब कोई बंदा उसके आगे हाथ फैलाता है, तो उसे उनको खाली लौटाने में शर्म आती है।
4- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अर्थपूर्ण दुआओं को पसंद करते थे और शेष दुआओं को छोड़ देते थे।
5- तुममें से कोई यह न कहे कि 'ऐ अल्लाह! अगर चाहे तो मुझे क्षमा कर दे', 'ऐ अल्लाह! यदि चाहे तो मुझपर दया कर।' बल्कि पूरे विश्वास के साथ दुआ करे, क्योंकि अल्लाह पर कोई दबाव डालने वाला नहीं है।
6- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का एक नित्यकार्य यह था कि जब एक तिहाई रात गुज़र जाती तो खड़े होते और कहतेः ऐ लोगो! अल्लाह को याद करो।
7- तुम्हारे यहाँ रोज़ेदार इफ़तार किया करें, तुम्हारा खाना नेक लोग खाएँ और फ़रिश्ते तुम्हारे लिए दुआ करें