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1- "मुझे तुम्हारे बारे में जिस वस्तु का भय सबसे अधिक है, वह है, छोटा शिर्का।" आपसे उसके बारे में पूछा गया, तो फ़रमायाः "दिखावे के लिए काम करना।"
2- क्या मैं तुम्हें दज्जाल के बारे में वह बात न बताऊँ, जो किसी नबी ने अपनी जाति को नहीं बताई? वह काना होगा और वह अपने साथ जन्नत और जहन्नम से मिलती-जुलती चीज़ें लाएगा और जिसे जन्नत कहेगा, वास्तव में वह जहन्नम होगी
3- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इशा की नमाज़ में लेट किया तो उमर निकल कर आए और कहने लगेः ऐ अल्लाह के रसूल! महीलाऐँ एवं बच्चे सो गऐ हैँ।अतः आप घर से नकले, इस हाल में कि आप के सिर से पानी टपक रहा था और फ़रमायाः यदि मेरी उम्मत पर कठिन नही होत तो मैं इसी समय इस नमाज़ का आदेश देता।
4- मेरा और तुम्हार उदाहरण उस व्यक्ति की तरह है, जिसने आग जलाई, तो टिड्डे तथा पतिंगे उसमें गिरने लगे और वह उन्हें उससे रोकने लगे। (बिलकुल उसी तरह) मैं तुम्हारी कमर पकड़कर तुम्हें जहन्नम की आग से रोक रहा हूँ और तुम मेरे हाथों से फिसले जा रहे हो।
5- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उमामा बिंत ज़ैनब (अपनी नातिन) को उठाए हुए नमाज़ पढ़ लेते थे।
6- बेशक अल्लाह ही के लिए है, जो उसने ले लिया और उसी का है, जो उसने दिया। उसके समीप प्रत्येक वस्तु का समय निश्चित है। अतः अब तू सब्र कर तथा अल्लाह से प्रतिफल की उम्मीद रख।
7- अल्लाह ने मेरे लिए धरती को समेट दिया, तो मैंने उसके सूर्योदय के स्थानों और सूर्यास्त के स्थानों को देखा। निश्चय ही मुसलमानों का राज्य वहाँ तक पहुँचेगा, जहाँ तक मेरे आगे समेट कर लाया गया है। मुझे लाल तथा सफ़ेद दो ख़ज़ाने दिए गए हैं।
8- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कोई काम पसंद होता, इसके बावजूद उसे इस डर से छोड़ देते कि लोग उसपर अमल करने लगें और उनपर फ़र्ज़ कर दिया जाए।
9- मैं लंबी नमाज़ पढ़ने के इरादे से खड़ा होता हूँ, लेकिन किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर इस डर से अपनी नमाज़ हल्की कर देता हूँ कि कहीं उसकी माँ को तकलीफ़ में न डाल दूँ।
10- बच्चों को बोसा देना और उनसे स्नेह और दया करना।
11- जो दया नहीं करता, उसपर दया नहीं की जाती।
12- ऐ जिबरील, मुहम्मद के पास जाओ और बता दो कि हम आपको आपकी उम्मत के बारे में प्रसन्न कर देंगे और आपको नाराज़ नहीं होने देंगे।
13- एक यहूदी लड़का अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सेवा किया करता था।
14- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपना हाथ मेरे मुख पर फेरा तथा मेरे लिए दुआ की, तो वह एक सौ बीस साल तक जीवित रहे और उन के सिर में केवल कुछ ही बाल सफेद थे।
15- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कोई अमल पसंद होता, इसके बावजूद उसे इस डर से छोड़ देते कि कहीं लोग उसपर अमल करने लगें और उनपर फ़र्ज़ कर दिया जाए।
16- उसकी क़सम, जिसके हाथ में मेरी जान है, जब भी शैतान तुम्हें (ऐ उमर!) किसी रास्ते पर चलता हुआ देखता है, तो तुम्हारा रास्ता छोड़ कर कोई और रास्ता अपना लेता है
17- क्या अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आपके लिए क्षमायाचना की है? उन्होंने कहा : हाँ, और तुम्हारे लिए भी! फिर यह आयत पढ़ी : {अपने गुनाहों की क्षमायाचना कीजिए तथा मोमिन मर्दों और मोमिन स्त्रियों के लिए भी।}