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1- आदमी उस समय नमाज़ न पढ़े, जब खाना हाज़िर हो। और उस समय भी नहीं, जब तेज़ पेशाब व पाखाना लगा हुआ हो।
2- जो व्यक्ति किसी नमाज़ को भूल जाए, तो वह उसे उस समय पढ़ ले, जब याद आ जाए। इसके सिवा उसका कोई कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) नहीं है
3- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कोख पर हाथ रखकर नमाज़ पढ़ने से मना किया है।
4- तुममें से कोई जब नमाज़ में खड़ा होता है, तो वह अपने रब से व्यक्तिगत रूप से बात कर रहा होता है या उसका रब उसके और क़िबले के बीच होता है। इसलिए, तुममें से कोई (नमाज़ की हालत में) क़िबले की ओर न थूके। बल्कि बाएँ तरफ़ या अपने क़दमों के नीचे थूके।
5- "लोगों को क्या हो गया है कि वे नमाज़ में अपनी नज़रें आकाश की ओर उठाते हैं?" आपने इसके बारे में बड़ी सख़्त बात कही, यहाँ तक कि फ़रमाया : "वे इससे ज़रूर रुक जाएँ, वरना उनकी आँखों की रोशनी छीन ली जाएगी।"
6- सबसे बुरा चोर वह है, जो अपनी नमाज़ में चोरी करता है।" किसी सहाबी ने पूछा कि नमाज़ में चोरी करने का क्या मतलब है? आपने उत्तर दिया : "रुकू एवं सजदा संपूर्ण रूप से न किया जाए।
7- आइशा (रज़ियल्लाहु अन्ह) से वर्णित है कि वह इस बात को नापसंद करती थीं कि कोई (नमाज़ पढ़ते समय) अपने हाथ को कोख पर रखे तथा कहा करती थीं कि यहूदी ऐसा करते हैं।
8- मैंने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से पूछा : नमाज़ में इधर उधर देखना कैसा है? तो आपने उत्तर दिया : "यह एक प्रकार की चोरी है, जो शैतान बंदे की नमाज़ में करता है।"
9- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नमाज़ तकबीर से और क़िरात {अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन) से आरंभ करते थे। जब आप रुकू करते, तो न अपना सिर बहुत झुकाते और न सीधा रखते, बल्कि इन दोनों के बीच रखते।
10- एक रात में दो वित्र नहीं हैं।
11- यह जो नमाज़ है, इसमें लोगों की आम बात-चीत सही नहीं है। इसमें तो बस तसबीह, तकबीर और क़ुरआन की तिलावत होती है।
12- जब तुममें से कोई नमाज़ के लिए खड़ा होता है, तो अल्लाह की रहमत उसकी ओर मुतवज्जेह होती है। अतः, वह कंकड़ न छूए।