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1- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) घर में क्या करते थे? उन्होंने कहा कि आप अपने घर वालों की सेवा में लगे रहते और जब नमाज़ का समय आता, तो नमाज़ के लिए चले जाते
2- मैंने किसी मोटे और महीन रेशम को नहीं छुआ है, जो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हाथ से अधिक मुलायम हो
3- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने कभी किसी को अपने हाथ से नहीं मारा। इसी तरह किसी महिला तथा दास पर भी हाथ नहीं उठाया। यह और बात है कि अल्लाह के रास्ते में जिहाद कर रहे हों।
4- क्या आपपर कोई ऐसा दिन बीता है, जो उहद के दिन से अधिक कठोर रहा हो? तो आपने उत्तर दिया : तुम्हारी क़ौम की ओर से मुझे इससे भी कठोर दिन का सामना करना पड़ा है। वैसे, उनकी ओर से मुझे जो सबसे कठोर दिन झेलना पड़ा, वह अक़बा का दिन था।
5- मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की आवाज़ दुर्बल सुनी है, जिससे महसूस हो रहा है कि आप भूखे हैं। क्या तुम्हारे पास कुछ है?
6- यहूदियों का मामला यह था कि जब उनके बीच किसी स्त्री को माहवारी आती, तो न उसके साथ खाते- पीते और न घरों में साथ रहते थे
7- ज़माना घूमकर आज फिर उसी हालत पर आ गया है, जो हालत उस दिन थी, जिस दिन अल्लाह ने आसमान व ज़मीन को पैदा किया था। साल के बारह महीने हैं, जिनमें चार महीने हराम हैं: तीन लगातार हैं, यानी ज़ुल- क़ादा, ज़ुल- हिज्जा, मुहर्रम और मुज़र क़बीले का रजब।
8- बद्र के दिन अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम) ने मुश्रिकों की ओर देखा, जिनकी संख्या एक हज़ार थी, जबकि आपके साथी केवल तीन सौ उन्नीस
9- हम अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास रहकर चर्मपत्रों से क़ुरआन एकत्र कर रहे थे, इसी बीच आपने कहा: शाम की धरती धन्य है!
10- मैं ईद के दिन अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ नमाज़ में शरीक रहा, आपने ख़ुतबे (प्रवचन) से पहले बिना अज़ान तथा इक़ामत के नमाज़ पढ़ी। फिर बिलाल (रज़ियल्लाहु अनहु) का सहारा लेकर खड़े हुए और तक़वा का आदेश दिया, अल्लाह के अनुसरण की प्रेरणा दी, लोगों को उपदेश दिए और स्मरण कराया
11- मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को नमाज़ पढ़ते समय देखा कि आपके सीने से रोने के कारण चक्की के चलने की तरह आवाज़ निकल रही है। आपपर अल्लाह की कृपा हो और शांति की धारा बरसे।
12- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बच्चों के साथ खेल रहे थे कि आपके पास जिबरील (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आए और आपको पकड़कर चित लिटा दिया तथा आपके सीने को चीरकर हृदय निकाला, फिर उसमें से जमे हुए रक्त का एक लोथड़ा निकाला और फरमायाः यह आपके शरीर में शैतान का भाग था।
13- "जाने भी दो अबू बक्र! ये ईद के दिन हैं।" मालूम रहे कि वे मिना के दिन थे।
14- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अम्र बिन मुआज़ के पाँव पर, उसके काटे जाने के समय ,थूका, तो वह ठीक हो गए।
15- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपना हाथ मेरे मुख पर फेरा तथा मेरे लिए दुआ की, तो वह एक सौ बीस साल तक जीवित रहे और उन के सिर में केवल कुछ ही बाल सफेद थे।
16- यज़ीद बिन असवद ने नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के संग सुबह (फज्र) की नमाज़ पढ़ी, फिर लोग शीघ्रता से आगे बढ़े तथा आप के हाथ को पकड़ कर अपने मुख पर फेरने लगे, वह कहते हैंः मैंने भी आप के हाथ को पकड़ कर अपने मुख पर फेरा, तो मैंने आप के हाथ को बर्फ से ठंडा तथा मुश्क से अधिक सुगंधित पाया।
17- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हमारे पास आए तथा दोपहर के समय हमारे यहाँ ही सो गए और आप के शरीर से पसीना निकलने लगा तो मेरी माता शीशी लेकर आईं तथा उस पसीने को शीशी मे जमा करने लगीं।
18- ऐ अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ! मेरा भान्जा बीमार है, तो आपने मेरे सिर पर हाथ फेरा और मेरे लिए बरकत की दुआ फरमायी । फिर आपने वुज़ू फरमाया और मैंने आपके वुज़ू का बचा हुआ पानी पी लिया । फिर मैं आपकी पीठ के पीछे खड़ा हुआ और नबूवत की मोहर को देखा जो आपके दोनों कंधों के बीच फ़ाख्ता के अंडे की तरह थी।
19- अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मुझ से कहा कि मेरे समीप आओ तो मैं आप के समीप गया।
20- क्या अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने आप के लिए क्षमा की प्रार्थना की, फ़रमायाः हाँ,और मैं तुम्हारे लिए भी। फिर यह आयत पढ़ीः وَاسْتَغْفِرْ لِذَنْبِكَ وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ ( अपने लिए तथा मोमिन मर्दों और मोमिन महीलाऔं के पापों के लिये क्षमा की प्रार्थना करो)।
21- मुझे अल्लाह की राह में ऐसा डराया गया कि ऐसा किसी को नहीं डराया गया और मुझे ऐसी कष्ट दी गई जैसी तकलीफ किसी को नहीं दी गई, मेरे ऊपर निरंतर तीस दिन व रात गुज़र जाते तथा मेरे व बिलाल के पास खाने को कुछ नहीं होता जिसे एक जानदार (सजीव) खाता है सिवाय उस तनिक वस्तु के जिसे बिलाल- रज़ियल्लाहु अन्हु- अपने बगल में छुपा कर लाते थे।
22- एक महिला ,जो बोद्धिक रूप से थोड़ी कमज़ोर थी,ने कहाः हे अल्लाह के रसूल, मुझे आप से कुछ काम है, तो आप ने फरमायाः हे उम्मे फलां (अमूक व्यक्ति की माता) तू बता किस गली में मिलना चाहती है, ताकि मैं तेरी आवश्यकता की पूर्ति कर सकूँ।
23- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपनी हज यात्रा एक पुराने ज़ीन तथा मामूली चादर पर (आरंभ) की जिसका मुल्य चार दिरहम के बराबर था या उस से भी कम था, फिर आप ने कहाः ऐ अल्लाह, ऐसा हज विशुद्ध रूप से केवल तेरे लिए है जिस में ढ़ोंग व पाखंड का कोई अंश नहीं है।
24- आप न तो अपशब्द बोलने वाले थे न ही अश्लील बातें करने वाले और न ही बाजारों में जा कर हल्ला करने वाले, आप बुराई का बदला बुराई से नहीं देते थे, बल्कि आप माफ कर देते तथा नजरअंदाज कर देते।
25- मैं किसी की आसान मृत्यु पर रश्क नहीं करती थी जब से मैंने अल्लाह के रसूल - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- पर मृत्यु की सख़्ती देखी।
26- जब नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की मृत्यु हुई, तो सहाबा ने कहाः आपको कहाँ दफ़न किया जाए? तब अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अंहु- ने कहाः उसी स्थान में जहाँ आपकी मृत्यु हुई है।
27- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की मृत्यु के पश्चात अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अंहु- आपके पास आए, आपकी दोनों आँखों के बीच बोसा दिया, आपकी दोनों कंपटियों पर दोनों हाथ रखे और फ़रमायाः हाय मेरे नबी! हाय मेरे परम मित्र! हाय मेरे ख़ालिस दोस्त!
28- जिस दिन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मदीने में क़दम रखा, तो उसकी हर चीज़ चमक उठी और जिस दिन आपकी मृत्यु हुई, उसकी हर चीज़ पर अंधेरा छा गया।
29- मेरे वारिस न दीनार तक़सीम करेंगे, न दिरहम। जो कुछ मैं अपनी पत्नियों के ख़र्च और अपने लिये काम करने वाले (ख़लीफ़ा आदि ) के ख़र्च के बाद छोड़ूँ, वह सदक़ा है।
30- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने न दीनार छोड़े, न दिरहम, न बकरी, न ऊँट और न किसी चीज़ की वसीयत की।
31- किसी भी नबी को जब उठाया गया, तो उसे जन्नत में उसका ठिकाना दिखा दिया गया और फिर उसे अख़्तियार दिया गया (कि चाहे तो दुनिया में रहे या जन्नत में अपना स्थान ग्रहण कर ले)।" फिर जब आपकी मृत्यु का समय आया, तो आप बेहोश हो गए। उस समय आपका सर मेरी जाँघ पर था। होश आया, तो घर की छत की ओर नज़र उठाई और फ़रमायाः "ऐ अल्लाह, सबसे ऊँचा मित्र!"
32- मैंने अब्दुल्लाह बिन अम्र -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से पूछा कि मुश्रिकों का अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ कठोरतम व्यवहार क्या था? तो उन्होंने कहाः मैंने देखा कि जिस समय रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ पढ़ रहे थे उस समय उक़बा बिन अबी मुईत अआप के पास आया तथा उसने अपनी चादर आपकी गरदन में डाली और ज़ोर से आपका गला घोंटने लगा।
33- ऐ अल्लाह, मैं इससे मुहब्बत करता हूँ, तू भी इससे मुहब्बत कर और हर उस व्यक्ति से मुहब्बत कर, जो इससे मुहब्बत करे।
34- जब तक ख़दीजा -रज़ियल्लाहु अन्हा- जीवित रहीं, नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने दूसरा निकाह नहीं किया।
35- "ऐ आइश! यह जिबरील हैं, जो तुम्हें सलाम कहते हैं।" तो मैंने यूँ जवाब दियाः "व अलैहिस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु। आप वह देखते हैं, जो मैं नहीं देखती।"
36- पुरुषों में से बहुत-से लोग संपूर्ण हुए, लेकिन स्त्रियों में से संपूर्ण केवल फ़िरऔन की पत्नी आसिया और मरयम बिंत इमरान हुईं। हाँ, सारी स्त्रियों में आइशा का वही स्थान है, जो सारे खानों में सरीद का है।
37- मैं निश्चित रूप से जानता हूँ कि कब तुम मुझ से ख़ुश रहती हो और कब मुझ से नाराज़ रहती हो।
38- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कोई अमल पसंद होता, इसके बावजूद उसे इस डर से छोड़ देते कि कहीं लोग उसपर अमल करने लगें और उनपर फ़र्ज़ कर दिया जाए।
39- क्या आप मुझ से अल्लाह के -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के रोग के संबंध में नहीं बताएंगीं? उन्होंने कहाः क्यों नहीं, जब आप बीमार थे तो आप ने पूछाः क्या लोगों ने नमाज़ पढ़ लिया? हम ने कहाः नहीं, (बल्कि) लोग आप की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
40- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी एक पत्नी का वलीमा दो मुद्द जौ से किया था।
41- तुम्हारे पति के निकट तुम्हारे मान-सम्मान में कोई कमी नहीं है। यदि तुम चाहो, तो मैं तुम्हारे पास सात दिन रहूँगा। और अगर तुम्हारे पास सात दिन रहूँगा, तो शेष स्त्रियों के पास भी सात दिन रहूँगा।
42- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मीठी चीज़ें और मधु पसंद करते थे। सामान्यतः जब अस्र की नमाज़ पढ़ लेते, तो एक-एक कर अपनी पत्नियों के पास जाते और उनके पास बैठते। (एक दिन) आप हफ़सा (रज़ियल्लाहु अंहा) के पास गए और उनके यहाँ सामान्य से अधिक रुक गए।
43- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपनी उस बीमारी के दिनों में, जिसमें आपकी मृत्यु हुई, पूछते थेः "मैं कल कहाँ रहूँगा? मैं कल कहाँ रहूँगा?" दरअसल, आप आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) के यहाँ ठहरना चाहते थे। अतः, आपकी पत्नियों ने आपको जहाँ चाहें, वहाँ ठहरने की अनुमति दे दी।
44- जब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) किसी यात्रा में निकलने का इरादा करते, तो अपनी पत्नियों के बीच क़ुरआ अंदाज़ी करते और जिसका नाम निकलता उसे साथ लेकर यात्रा में निकलते।
45- अली बिन अबू तालिब (रज़ियल्लाहु अंहु) का यह फ़रमान कि मैं पहला व्यक्ति हूँ, जो अत्यंत कृपाशील अल्लाह के सामने झगड़ने के लिए क़यामत के दिन अपने घुटनों के बल बैठेगा।
46- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने नज्द की ओर एक सैन्यदल भेजा। उसमें अब्दुल्लाह बिन उमर भी शामिल थे।
47- मुझे उहुद युद्ध के अवसर पर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सामने लाया गया। उस समय मेरी आयु चौदह साल थी। अतः, आपने मुझे अनुमति नहीं दी।
48- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का में कदा की ओर से, बतहा की ऊँची घाटी से होते हुए दाखिल हुए और नीची घाटी से निकले
49- अगर बहरैन का धन आया, तो मैं तुम्हें इस तरह, इस तरह और इस तरह दूँगा।
50- दरअसल, हमसे पहले किसी समुदाय के लिए ग़नीमत का धन हलाल नहीं किया गया था। फिर अल्लाह ने जब हमारी दुर्बलता तथा असमर्थता देखी, तो उसे हमारे लिए हलाल कर दिया।
51- लेकिन मैं अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के भेद को सामने लाना नहीं चाहता था। यदि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उसे छोड़ देते, तो मैं स्वीकार कर लेता।
52- ऐ अल्लाह के रसूल, ऐसा लग रहा था कि मैं अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ा सकूँगा, यहाँ तक सूरज डूबने लगा, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः अल्लाह की क़समः मैंने तो अभी तक अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी है। वर्णनकर्ता कहते हैं कि फिर हम लोग बुतहान की ओर निकले, आपने नमाज़ के वज़ू किया, हमने भी वज़ू किया, फिर सूरज डूबने के बाद अस्र की नमाज़ पढ़ी और उसके बाद मग़रिब की नमाज़ पढ़ी।
53- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब तबूक युद्ध से वापस आए, तो लोगों ने आपकी अगवानी की और मैंने बच्चों के साथ सनीयतुल वदा पर आपकी अगवानी की
54- हम अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ एक युद्ध में निकले। हम छह लोगों को सामूहिक रूप से एक ऊँट दिया गया था, जिसपर हम बारी-बारी सवार होते थे। पैदल चलने से हमारे पाँव ज़ख़्मी हो गए थे। स्वयं मेरे पाँव भी ज़ख़्मी हो गए थे
55- ऐ साद बिन मुआज़! काबा के रब की क़सम, मुझे उहुद पर्वत के निकट से जन्नत की सुगंध आ रही है।
56- अगर मैं अपने इन खुजूरों को खाने तक जीवित रहा तो यह बड़ा लंबा जीवन होगा। अतः, अपने पास मौजूद खुजूरों को फेंक दिया और मुश्रिकों से लड़ने लगे, यहाँ तक कि मारे गए।
57- मैंने एक रात अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ तहज्जुद की नमाज़ पढ़ी। आप इतनी देर तक खड़े रहे कि मेरी नीयत बिगड़ गई। उनसे पूछा गया कि आपने क्या इरादा किया था? तो बोलेः सोचने लगा था कि आपको छोड़कर बैठ जाऊँ।
58- अगर तेरे पास मश्क में रखा हुआ रात का पानी है तो ठीक है, वरना हम मुँह लगाकर पी लेंगे।
59- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मक्का विजय के वर्ष मक्का में दाखिल हुए तो आपके सिर पर लोहे की टोपी थी। जब उसे उतारा तो एक व्यक्ति ने आपके पास आकर कहा कि ख़तल का बेटा काबा के पर्दों से चिमटा हुआ है। सो, आपने फ़रमायाः उसका वध कर दो।
60- निश्चय अल्लाह ने मुझे एक शरीफ़ बंदा बनाया है। मुझे अभिमानी और विद्वेषी नहीं बनाया है।
61- तबूक युद्ध के समय जब लोगों को अकाल का सामना करना पड़ा, तो वे कहने लगेः ऐ अल्लाह के रसूल, यदि आप अनुमति दें, तो हम अपने ऊँटों को ज़बह करके उनका मांस खाएँ और उनकी चरबी को तेल के रूप में इस्तेमाल करें।
62- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दस लोगों का के एक सैन्य दल जसूसी के लिए भेजा और आसिम बिन साबित अंसारी (रज़ियल्लाहु अंहु) को उसका प्रमुख बनाया।
63- ऐ अल्लाह, तू मुझे माफ कर दे और मुझपर दया कर तथा मुझे रफ़ीक़-ए- आला (नबियों, शहीदों, सिद्दीक़ों तथा नेक लोगों) से मिला दे।
64- एक महिला अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास एक बुनी हुई धारीदार चादर लेकर आईं
65- इन लोगों ने मुझे दो ही विकल्प दिए : या तो वे ज़िद और हठ के साथ माँगते रहें या फिर मुझे कंजूस कहें। जबकि मैं कंजूस नहीं हूँ।
66- हम लोग खंदक़ के दिन गड्ढा खोद रहे थे कि एक मज़बूत चट्टान निकल आई। सारे लोग नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आए और कहने लगे कि खंदक़ में एक चट्टान सामने आ गई है। आपने फ़रमाया : "मैं उतरता हूँ।"
67- ज़ुबैर बिन अव्वाम -रज़ियल्लाहु अन्हु- की मृत्यु और उनका क़र्ज़ अदा करने का क़िस्सा।
68- बनी इसराईल में तीन व्यक्ति थे; एक सफ़ेद दाग वाला, दूसरा गंजा और तीसरा अंधा। अल्लाह ने उनकी परीक्षा के उद्देश्य से उनके पास एक फ़रिश्ता भेजा।
69- हम रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की अगवानी के लिए बच्चों के साथ सनिय्यतुल वदा तक गए।
70- फ़रिश्ते अभी तक उनपर अपने परों से छाया किए हुए हैं।
71- अम्र बिन अबसा के इस्लाम लाने की घटना और नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का उन्हें नमाज़ और वज़ू सिखाने का वर्णन।
72- मैं सोया हुआ था कि इसने मेरी तलवार मुझपर उठा ली। मेरी आँख खुली, तो तलवार उसके हाथ में चमक रही थी। उसने मुझसे कहा : तुम्हें मुझेस कौन बचाएगा? मैंने कहा : अल्लाह –तीन बार-!
73- गोद में केवल तीन लोगों ने ही बात की है।
74- मैं अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ हुनैन के दिन उपस्थित था। मैं और अबु सुफ़यान बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ रहे और आपसे अलग नहीं हुए।
75- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के ज़माने में चाँद के दो टुकड़े हुए, तो पहाड़ ने एक टुकड़े को परदे में कर दिया और दूसरा टुकड़ा पहा़ड़ के ऊपर था। इसपर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : “ऐ अल्लाह! तू गवाह रह!”
76- अल्लाह से भय करो और अपनी पत्नी को अपने पास रोके रखो।
77- इबराहीम -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अपने दूध पीते बच्चे इसमाईल –अलैहिस्सलाम- तथा उनकी माता को साथ लेकर आए और काबा के पास, एक बहुत बड़े पेड़ के निकट एक स्थान में छोड़ गए, जो ज़मज़म के ऊपर और मस्जिद के सबसे ऊँचे भाग में था। उस समय मक्का में कोई नहीं रहता था तथा पानी की व्यवस्था भी नहीं थी।
78- हम लोग एक सफर में नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ थे। हम रात भर चलते रहे, यहाँ तक कि रात का अंतिम पहर हुआ, तो कुछ देर के लिए सो गए। वैसे भी, मुसाफिर के लिए सोने से उत्तम कोई वस्तु नहीं होती। हम सोए रहे, यहाँ तक कि सूरज की गरमी से ही जागे। सबसे पहले जागने वाले व्यक्ति अमुक, फिर अमुक, फिर अमुक, फिर उमर बन खत्ताब थे।
79- एक व्यक्ति ने कहा कि मैं सद्क़ा करूंगा, अतः वह सद्का लेकर निकला और उसे एक चोर को थमा दिया, तो लोग कहने लगे: चोर को सद्क़ा दिया गया है
80- तीन व्यक्ति कहीं जा रहे थे कि अचानक बारिश आ गई, वे पहाड़ की एक गुफा में जा छिपे, इतने में एक चट्टान लुढ़क कर आई
81- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब ख़नदक़ युद्ध से लौटे और हथियार उतारने के बाद स्नान कर लिया, तो जिबरील (अलैहिस्सलाम) आपके पास आए और बोले: आपने हथियार उतार दिया है? अल्लाह की क़सम! हमने अभी तक नहीं उतारा है! आप उनकी ओर चलें
82- ऐसा लगता है कि आज भी मैं बनी ग़नम की गली में वह उड़ती हुई धूल देख रहा हूँ, जो जिबरील (सलवातुल्लाहि अलैहि) के क़ाफ़िले से उठी थी, जब वह अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ बनू क़ुरैज़ा की ओर चले थे
83- अगर वह मेरे निकट आता, तो फ़रिश्ते उसकी बोटी- बोटी उचक लेते
84- उसकी क़सम, जिसके हाथ में मेरी जान है, जब भी शैतान तुम्हें (ऐ उमर!) किसी रास्ते पर चलता हुआ देखता है, तो तुम्हारा रास्ता छोड़ कर कोई और रास्ता अपना लेता है
85- ज़ैद बिन साबित अंसारी (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं, जो वह्य लिखने वालों में शामिल थे: जब यमामा युद्ध में बहुत- से सहाबा शहीद हो गए, तो अबू बक्र ने मुझे बुला भेजा, (मैं पहुँचा तो) उमर उनके पास मौजूद थे (रज़ियल्लाहु अनहुमा)
86- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का में तेरह वर्षों तक रहे, आपपर क़ुरआन उतरता रहा, तथा मदीने में दस वर्ष।
87- “ऐ अंसारियो!” उन्होंने उत्तर दियाः हम उपस्थित हैं ऐ अल्लाह के रसूल! आपने कहाः “तुम लोग कहते हो कि इस व्यक्ति पर अपने वतन का प्रेम हावी हो गया है?” उन्होंने उत्तर दियाः हाँ हमने ऐसा कहा है। आपने कहाः “कतई नहीं! मैं अल्लाह का बंदा तथा उसका रसूल हूँ। मैंने अल्लाह की ओर तथा तुम्हारी ओर हिजरत की है। अब हमारा जीना भी तुम्हारे साथ है और हमारा मरना भी तुम्हारे साथ है।“
88- ख़ंदक़ के दिन साद (रज़ियल्लाहु अंहु) जख़्मी हो गए थे। उनको क़ुरैश की बनू मईस बिन आमिर बिन लुऐ शाखा के हिब्बान बिन क़ैस नामी एक व्यक्ति ने, जिसे हिब्बान बिन अरिक़ा कहा जाता था, उनके बाज़ू की रग में तीर मार दिया था। चुनांचे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनके लिए मस्जिद में एक ख़ेम लगा दिया था, ताकि निकट से उनकी देखभाल कर सकें।
89- हुनैन में हमने अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के संग ग़ज़वा (युद्ध) किया, जब शत्रु से हमारी मुठभेड़ हुई तो मैं एक टीले पर चढ़ गया, शत्रुओं में से एक आदमी मेरे सामने आया, तो मैंने उसको तीर मारा किंतु वह मुझ से छुप गया, फिर मुझे पता नहीं उस का क्या हुआ।
90- मुझे कभी आँख आई (नेत्र-शोथ हुई) और न ही कभी सिर में दर्द हुआ जब से अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मेरे चेहरे को पोंछा था, और मेरी आँखों में थुका था (और ऐसा) ख़ैबर के दिन (हुआ था) जब आप ने मुझे झंडा दिया था।
91- मैं क़तादा बिन मिलह़ान के पास उनकी मृत्यु के समय था उसी समय उनके घर के काफी दूर से एक व्यक्ति गुजरा, तो मैंने उस व्यक्ति के गुजरने को क़तादा के चेहरे में देखा,जब मैंने उनको देखा तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उन के मुख पर तेल मल दिया गया हो।
92- जब उन्होंने नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को स्नान कराया तो उस चीज की खोज शुरू की जो आम तौर से मृत व्यक्ति के शरीर से निकलती है (अर्थात पैशाब पैखाना इत्यादि) पर उन्होंने कुछ भी नहीं पाया तो बोलेः आप पर मेरे बाप कुर्बान जाएं, आप जीवित थे तब भी पाक थे और मृत्युप्राप्त हुए तब भी पाक हैं।
93- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- मेरी देखभाल के लिए तशरीफ लाये । न ख़च्चर पर सवार थे, और न घोड़े पर (बल्कि पैदल तशरीफ लाये) ।
94- यूसुफ बिन अब्दुल्लाह बिन सलाम- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- का कथन कि अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मेरा नाम यूसुफ रखा तथा मुझे अपनी गोद में बिठाया।
95- मुझे नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की पत्नियों में से केवेल ख़दीजा पर ग़ैरत आती थी। हालाँकि मेरे विवाह से पहले ही उनका निधन हो चुका था। वह कहती हैंः अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब बकरी ज़बह करते, तो कहतेः "इस में से ख़दीजा की सहेलियों को भेजो।"
96- इबराहीम मेरा बेटा है। उसकी मृत्यु दूध पीने की अवस्था में हुई है। उसे दो दूध पिलाने वाली दाईयां प्राप्त होंगी, जो जन्नत में उसे दूध पिलाने का कार्य संपन्न करेंगी।
97- जब इबराहीम -रज़ियल्लाहु अन्हु- की मृत्यु हुई, तो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फरमायाः "जन्नत में उसके लिए एक दूध पिलाने वाली निर्धारित कर दी गई है।"
98- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) (कभी-कभी) सारी स्त्रियों के पास जाने के पश्चात एक ही दफा अंत में ग़ुस्ल (स्नान) करते थे।
99- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मदीने और ख़ैबर के बीच तीन दिन रुके और वहीं सफ़िया (रज़ियल्लाहु अंहा) से (शादी के बाद) वैवाहिक संबंध स्थापित किया।
100- हम अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ ख़ैबर युद्ध में शरीक हुए, जहाँ हमें बकरियाँ मिलीं, तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उसका कुछ भाग हमारे बीच बाँट दिया और शेष को माल-ए-ग़नीमत में जमा कर दिया।