नमाज़ के अज़कार

नमाज़ के अज़कार

7- (ऐ अल्लाह! तू पवित्र एवं प्रशंसनीय है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है)। तथा एक रिवायत में हैः मेरा हाथ आपके कदमों के भीतरी भाग पर पड़ा, जबकि आप मस्जिद में थे, दोनों क़दम खड़े थे और आप कह रहे थेः (ऐ अल्लाह! मैं तेरे क्रोध से तेरी प्रसन्नता की शरण माँगता हूँ, तेरी सज़ा से तेरे क्षमादान की शरण माँगता हूँ और तुझसे तेरी शरण में आता हूँ। मैं तेरी प्रशंसा अधिकार अनुसार नहीं कर सकता। तू वैसा ही है, जैसा तूने अपने बारे में कहा है)।

11- जिसने प्रत्येक नमाज़ के पश्चात तैंतीस बार सुब्हान अल्लाह, तैंतीस बार अल-हम्दु लिल्लाह और तैंतीस बार अल्लाहु अकबर कहा, जो कि कुल निन्यानवे बार हुए, और सौ पूरा करने के लिए ''لا إله إلا الله وحده لا شريك له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيء قدير'' (अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, उसी के लिए बादशाहत है, उसी के लिए सब प्रशंसाएँ हैं, और उसको हर चीज़ पर सामर्थ्य प्राप्त है) कहा, उसके समस्त पाप माफ़ कर दिए जाते हैं, यद्यपि वे समुद्र के झाग के बराबर ही क्यों न हों।