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1- सबसे सम्पूर्ण ईमान वाला व्यक्ति वह है, जो सबसे अच्छे आचरण वाला हो और तुम्हारे अंदर सबसे उत्तम व्यक्ति वह है, जो अपनी पत्नियों के हक़ में सबसे अच्छा हो।
2- वह शर्त, जो इस बात की सबसे ज़्यादा हक़दार है कि उसे पूरा किया जाए, यह वह शर्त है, जिसके द्वारा तुम गुप्तांग को हलाल करते हो।
3- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हमें ख़ुत्बा -ए- हाजा (आवश्यकता वाला भाषण) सिखाया था (जो यह है) : إن الحمد لله، نستعينه ونستغفره، ونعوذ به من شرور أنفسناसमस्त प्रकार की उत्तम प्रशंसा केवल अल्लाह ही के लिए है, हम उसी से सहायता चाहते हैं तथा उसी से मग़फ़िरत (क्षमा) चाहते हैं और हम अपने नफ़्स की बुराईयों से अल्लाह की पनाह चाहते हैं।
4- वली के बिना कोई निकाह नहीं।
5- कोई मोमिन पुरुष किसी मोमिन स्त्री से नफ़रत न करे। यदि वह उसके किसी काम को नापसंद करता है, तो किसी दूसरे (अथवा अन्य) काम को पसंद करेगा।
6- जब पति अपनी पत्नी को सहवास के लिए बुलाए, तो वह अवश्य आए, यद्यपि वह चूल्हे के पास ही क्यों न हो।
7- तुम सब रक्षक हो और तुम सब से तुम्हारे मातहतों के बारे में पूछा जाएगा। एक रहनुमा रक्षक है और उससे उसके अधीनस्थों के बारे में पूछा जाएगा। एक व्यक्ति अपने परिवार का रक्षक है और उससे उसके मातहतों के बारे में प्रश्न होगा और एक स्त्री अपने पति के घर और उसके बच्चों की रक्षक है। इस तरह, तुममें से हर व्यक्ति रक्षक है और तुममें से हर व्यक्ति से उसके मातहतों के बारे में पूछा जाएगा।
8- ऐ युवकों के समूह! तुममें से जो शादी की शक्ति रखता है, वह शादी कर ले। क्योंकि शादी निगाहों को नीचा रखने तथा शर्मगाह की सुरक्षा का एक प्रमुख कारण है। और जो शादी न कर सके, वह रोज़ा रखे। क्योंकि रोज़ा उसके लिए ढाल है।
9- विधवा स्त्री की शादी नहीं हो सकती, जब तक उससे मशविरा न कर लिया जाए तथा कुँवारी स्त्री की शादी नहीं हो सकती, जब तक उसकी अनुमति न ले ली जाए। सहाबा ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! उसकी अनुमति कैसे ली जाए? तो फ़रमायाः उसकी अनुमति यह है कि वह ख़ामोश रहे।
10- निकाह का ऐलान करो।
11- जो महिला बिना वली की इजाजत के स्वयं निकाह कर ले उसका निकाह बातिल व अवैध है।
12- कोई महिला किसी महिला का विवाह सम्पन्न न कराए, न कोई महिला स्वयं अपना विवाह कर ले, ऐसी महिला जो स्वयं अपना विवाह कर लेती है वह ज़ानिया (दुराचारी) है।
13- वह व्यक्ति लानती है, जो अपनी स्त्री से, उसकी पिछली शर्मगाह (गुदाद्वार) में संभोग करे।
14- जब तुम खाओ, तो उसे खिलाओ, जब तुम पहनो (या कमाओ) तो उसे पहनाओ, चेहरे पर न मारो, बुरा-भला न कहो और घर के सिवा कहीं और अलग न रहो।
15- जिसकी दो पत्नियाँ हों और वह एक की ओर झुक गया, तो वह क़यामत के दिन इस हाल में आएगा कि उसका एक भाग झुका हुआ होगा।
16- स्त्रियों के साथ अच्छा व्यवहार करो, क्योंकि स्त्री पसली से पैदा की गई है और पसली का सबसे टेढ़ा भाग उसका ऊपरी भाग है। यदि तुम उसे सीधा करने जाओगे, तो उसे तोड़ दोगे और यदि उसे छोड़ दोगे, तो हमेशा टेढ़ी ही रहेगी। अतः, स्त्रियों के साथ अच्छा व्यवहार करो।
17- तुममें से कोई उठता है और अपनी पत्नी को दास की तरह मारता है। जबकि हो सकता है कि वह उसी दिन के अंतिम भाग में उससे संभोग भी करे।
18- क़यामत के दिन अल्लाह के निकट सबसे बुरे लोगों में वह पुरुष भी शामिल होगा, जो अपनी पत्नी के पास जाए और उसकी पत्नी उसके पास आए, फिर वह अंदर की बातों को बाहर फैलाता फिरे।
19- यह व्यक्ति हमारे पीछे-पीछे आ गया है। तुम उसे अनुमति दो तो ठीक है, वरना वापस हो जाएगा। उसने कहाः अल्लाह के रसूल! बल्कि मैं उसे अनुमति देता हूँ।
20- मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को देखा कि तीन उँगलियों से खाना खा रहे थे। जब खाना खा चुके तो उँगलियों को चाट लिया।
21- मुहम्मद की पत्नियों के पास बहुत-सी महिलाएँ आकर अपने पतियों की शिकायत कर गई हैं। दरअसल वे तुम्हारे अच्छे लोग नहीं हैं।
22- जो स्त्री अपने पति को दुनिया में कष्ट देती है, तो जन्नत में उसकी पत्नी उससे कहती है कि अल्लाह तेरा नाश करे, उसे कष्ट मत दे, क्योंकि वह तेरे पास एक मेहमान है, शीघ्र ही वह तुम्हें छोड़कर हमारे पास आने वाले हैं।
23- यदि मैं किसी को इस बात का आदेश दे सकता कि किसी को सजदा करे, तो स्त्री को आदेश देता कि अपने पति को सजदा करे।
24- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने शिग़ार विवाह से मना किया है। (शिग़ार विवाह यह है कि आदमी अपनी बेटी का विवाह इस शर्त पर कराए कि दूसरा भी अपनी बेटी का निकाह उससे कराएगा और दोनों में से किसी को भी महर नहीं देना होगा।)
25- ऐ अल्लाह के रसूल! मैं ने शादी कर ली है। फ़रमायाः उसका महर क्या है?, कहाः गिठली समान सोना। फ़रमायाः अल्लाह बरकत दे, वलीमा करो, चाहे एक बकरी ही क्यों न हो।
26- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अज़्ल (संभोग के समय वीर्य-स्खलन से पहले लिंग को बाहर निकाल लेना ताकि अंदर स्खलन न हो) के बारे में बताया गया तो फ़रमायाः तुममें से कोई ऐसा क्यों करता है? क्योंकि, जो भी जान पैदा होने वाली है, अल्लाह उसे पैदा करके रहेगा।
27- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उसमान बिन मज़ऊन के विवाहित जीवन से अलग होकर इबादत में लगे रहने के इरादे को नकार दिया था। यदि उन्हें अनुमति दे देते तो हम पूरे तौर पर विवाहित जीवन से अलग होकर इबादत में लग जाते।
28- तुम्हें क़ुरआन का जो कुछ याद है, उसके बदले में मैंने उससे तुम्हारा विवाह कर दिया।
29- हम अज़्ल (संभोग के दौरान वीर्यस्खलन से पहले लिंग को बाहर निकाल लेना, ताकि अंदर वीर्यस्खलन न हो) करते थे, जबकि क़ुरआन उतर रहा था। सुफ़यान कहते हैं कि यदि यह कोई मना करने योग्य काम होता तो क़ुरआन हमें इससे रोक देता।
30- किसी स्त्री तथा उसकी फूफी को विवाह के बंधन में एक साथ नहीं रखा जा सकता और न किसी स्त्री तथा उसकी ख़ाला को।
31- सुन्नत यह है कि जब आदमी पत्नी रहते हुए किसी कुँवारी लड़की से विवाह करे तो उसके पास सात दिन रहे और उसके बाद बारी लगाए तथा जब किसी राँड स्त्री से विवाह करे तो उसके पास तीन दिन रहे और उसके बाद बारी लगाए।
32- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हमज़ा (रज़ियल्लाहु अनहु) की बेटी के बारे में फ़रमायाः वह मेरे लिए हलाल नहीं है। स्तनपान से भी वह रिश्ते हराम हो जाते हैं, जो नसब (वंश) से हराम होते हैं। वह मेरे दूध शरीक- भाई की बेटी है।
33- जब तुममें से कोई किसी महिला को निकाह के लिए पैग़ाम दे तो यदि उसके बस में हो कि (उस में) उस चीज़ को देख सके जो उसको उस से विवाह के ओर आकर्षण करे, तो उसे चाहिए कि वह देख ले।
34- जाओ तथा उसको देख लो, यह तुम दोनों के बीच प्रेम को बढ़ाने के लिए बहुत ही उपयुक्त है।
35- जब अल्लाह तआला किसी पुरुष के हृदय में किसी महिला से विवाह करने का संदेशा भेजने की बात डाल दे तो कोई हर्ज नहीं है कि वह उस महिला को देख ले।
36- वह महिला जिसका विवाह हो चुका हो, तो वह (दूसरे विवाह के समय) अपने बारे में फैसला करने में अपने वली से अधिक अधिकार रखती है और कुँवारी से आज्ञा मांगी जाएगी, तथा उसका चुप रहना उसकी स्वीकृति समझी जाएगी।
37- एक कुँवारी युवती नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आई तथा उसने आप से कहा कि उसके पिता ने उसका विवाह करा दिया है जिसे वह नापसंद करती है, तो नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उसे (विवाह बाकी रखने अथवा तोड़ देने का) इख्तियार दिया।
38- अल्लाह तआला ने ह़लाला करने वाले और ह़लाला करवाने वाले पर लानत भेजी है।
39- यहूदी कहा करते थे किः जब कोई व्यक्ति अपनी पत्नी से पीछे की ओर से (किंतु योनि में ही) संभोग करेगा, तो बच्चा भेंगा पैदा होगा। इसपर यह आयत उतरीः {نساؤكم حرث لكم فأتوا حرثكم أنى شئتم} {तुम्हारी स्त्रियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं। तुम्हें अनुमति है कि अपनी खेतियों में जिधर से चाहो, जाओ।} [सूरा अल-बक़राः 223]
40- मैंने बच्चे को दूध पिलाने के दिनों में, पत्नी से संभोग करने से, मना करने का इरादा कर लिया था, लेकिन रूम तथा फ़ारस वालों को देखा कि वे ऐसा करते हैं और इससे उनके बच्चों को कुछ नुक़सान नहीं होता।
41- यहूदी कहते हैं कि अज़्ल जीवित दफ़न करने की एक छोटी शक्ल है। आपने कहाः "यहूदी झूठ बोलते हैं। यदि अल्लाह पैदा करना चाहे, तो तुम उसे रोक नहीं सकते।"
42- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी एक पत्नी का वलीमा दो मुद्द जौ से किया था।
43- तुम्हारे पति के निकट तुम्हारे मान-सम्मान में कोई कमी नहीं है। यदि तुम चाहो, तो मैं तुम्हारे पास सात दिन रहूँगा। और अगर तुम्हारे पास सात दिन रहूँगा, तो शेष स्त्रियों के पास भी सात दिन रहूँगा।
44- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बारी का दिन बाँटते समय आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) को दो दिन दिया करते थे। उनका दिन और सौदा (रज़ियल्लाहु अंहा) का दिन।
45- जब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) किसी यात्रा में निकलने का इरादा करते, तो अपनी पत्नियों के बीच क़ुरआ अंदाज़ी करते और जिसका नाम निकलता उसे साथ लेकर यात्रा में निकलते।
46- तीन काम ऐसे हैं कि उन्हें संजीदगी से किया जाए या मज़ाक़ से, उनका एतबार होगा; निकाह, तलाक़ और तलाक़शुदा स्त्री को इद्दत के अंदर लौटाना।
47- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ख़ैबर के दिन निकाहे-मुताह (अस्थायी निकाह) तथा घरेलू गधे का मांस खाने से मना किया था।
48- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सफ़िय्या (रज़ियल्लाहु अंहा) को गुलामी से मुक्त किया और उनकी मुक्ति को उनका महर बनाया।
49- यदि वह मेरी गोद में परवरिश न भी पाई होती, तो भी मेरे लिए हलाल न होती। इसलिए कि वह मेरे दूध-शरीक भाई की बेटी है। मुझे और अबू सलमा को सुवैबा ने स्तनपान कराया है। अतः अपनी बेटियों और बहनों को मुझपर पेश न करो।
50- जो दास अपने मालिक की अनुमति के बिना निकाह कर ले, वह व्यभिचारी है।
51- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मैमूना (रज़ियल्लाहु अंहा) से निकाह किया, तो आप एहराम की अवस्था में थे, जब उनसे आपका मिलन हुआ, तो आप एहराम खोल कर हलाल हो चुके थे और उनकी मृत्यु सरिफ़ नामी स्थान में हुई।
52- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने औतास युद्ध के साल तीन दिनों के लिए मुतआ़ की अनुमति दी और फिर उससे मना कर दिया।)
53- ऐ बनू बयाज़ा, अबू हिंद से अपनी बेटियों का निकाह करो और उसके यहाँ अपने पुरूषों के लिए निकाह का संदेश भेजो।
54- दोनों में से जिसे चाहो, तलाक़ दे दो।
55- ग़ैलान बिन सलमा सक़फ़ी मुसलमान हो गए और उनके पास जाहिलियत काल में दस स्त्रियाँ थीं, जो उनके साथ मुसलमान हो गईं, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन्हें आदेश दिया कि उनमें से चार को चुन लें (तथा बाकी को तलाक दे दें)।
56- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी बेटी ज़ैनब (रज़ियल्लाहु अंहा) को अबुल आस बिन रबी (रज़ियल्लाहु अंहु) के घर छह साल बाद पहले निकाह के आधार पर ही भेज दिया था और नए सिरे से निकाह नहीं कराया था।
57- आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) से पूछा गया कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों) का महर कितना होता था? उन्होंने कहाः आपकी पत्नियों के लिए आपका महर बारह ऊक़िया और एक नश्श (आधा ऊक़िया) था।
58- अली (रज़ियललाहु अंहु) ने कहाः मैंने फ़ातिमा (रज़ियल्लाहु अंहा) से शादी की और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल, मुझे उनके साथ शादीशुदा जीवन आरंभ करने दें। तो आपने कहाः "उसे कुछ दो।" मैंने कहाः मेरे पास कुछ नहीं है। आपने कहाः "तुम्हारा वह हुतमी कवच कहाँ है?"
59- अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अंहु) के पास एक व्यक्ति का मामला आया, जिसने एक औरत से शादी की, किन्तु उसका महर निर्धारित नहीं किया और उससे संभोग करने से पहले ही मर गया। इसपर अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अंहु) ने कहाः लोगों से पूछो कि क्या उनके पास इस संबंध में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की कोई हदीस है? लोगों ने कहाः ऐ अबू अब्दुर रहमान, हमें इसके बारे में कोई हदीस नहीं मिलती। यह सुन उन्होंने कहाः मैं अपनी राय से कहूँगा। यदि सही हुआ तो अल्लाह की ओर से उसकी तौफीक़ के कारण है।
60- सबसे अच्छा निकाह वह है, जो सबसे आसान हो।
61- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मदीने और ख़ैबर के बीच तीन दिन रुके और वहीं सफ़िया (रज़ियल्लाहु अंहा) से (शादी के बाद) वैवाहिक संबंध स्थापित किया।
62- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हमारे यहाँ ठहरने के दिन बाँटते समय हमें एक-दूसरे पर तरजीह नहीं देते थे। अकसर ऐसा होता कि आप हम सभों के पास आते और अपनी हर पत्नी के निकट बैठते। हाँ, मगर संभोग न करते। यहाँ तक कि अपनी उस पत्नी के पास पहुँच जाते, जिसकी बारी का दिन होता और उसके पास रात गुज़ारते।
63- हमारे पास उमर बिन ख़त्ताब की मृत्यु से एक साल पहले उनका पत्र आया कि उन मजूसी विवाहों को निरस्त कर दो जो ऐसे संबंधियों के बीच हुए हैं, जिनके बीच विवाह उचित नहीं है।
64- सुन्नत यह है कि जब आदमी पत्नी रहते हुए किसी कुँवारी से विवाह करे, तो उसके पास सात दिन रहे और उसके बाद बारी लगाए तथा जब किसी ग़ैरकुँवारी से विवाह करे, तो उसके पास तीन दिन रहे और उसके बाद बारी लगाए।