मामलात पर आधारित फ़िक़्ह

मामलात पर आधारित फ़िक़्ह

3- मैं अल्लाह के रसूल सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास अशअर क़बीले के कुछ लोगों के साथ पहुँचा। मैंने आपसे सवारी माँगी, तो आपने कहा : "अल्लाह की क़सम, मैं तुम्हें सवारी नहीं दे सकता और न मेरे पास कोई सवारी है, जो तुम्हें दे सकूँ।" फिर हम वहाँ जितनी देर अल्लाह ने चाहा, उतनी देर रुके। इसी बीच आपके पास कुछ ऊँट आ गए, तो आपने हमें तीन ऊँट देने का आदेश दिया। जब हम चल पड़े, तो हमारे बीच के कुछ लोगों ने अन्य लोगों से कहा : अल्लाह हमारे लिए बरकत न दे। हमने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आकर सवारी माँगी और आपने क़सम खाकर बताया कि हमें सवारी दे नहीं सकेंगे और फिर दे दी। अबू मूसा कहते हैं : चुनांचे हम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और आपके सामने इसका ज़िक्र किया, तो आपने कहा : "सवारी मैंने तुम्हें नहीं दी है। सवारी तो तुम्हें अल्लाह ने दी है। @जहाँ तक मेरी बात है, तो अल्लाह की क़सम, अगर अल्लाह ने चाहा, तो जब भी मैं किसी बात की क़सम खाऊँगा और दूसरी बात को उससे बेहतर देखूँगा, तो अपनी क़सम का कफ़्फ़ारा अदा कर दूँगा और वही करूँगा, जो बेहतर हो।"