सीरत एवं इतिहास

सीरत एवं इतिहास

5- ऐ मोमिनों की माता! आप मुझे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चरित्र के बारे में बताइए। यह सुन उन्होंने पूछा : क्या तुम क़ुरआन नहीं पढ़ते? उनका कहना है कि मैंने उत्तर दिया : पढ़ता तो अवश्य हूँ। उत्तर सुनने के बाद आइशा रज़ियल्लाहु अनहा ने कहा : @अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का चरित्र क़ुरआन था।

8- मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दस रकात सीखी हैं*। ज़ोहर से पहले दो रकात, उसके बाद दो रकात, मग्रिब के बाद घर में दो रकात, इशा के बाद घर में दो रकात और सुबह की नमाज़ से पहले दो रकात। दरअसल यह ऐसा समय था, जब अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के यहाँ कोई जाता नहीं था। मुझे हफ़सा ने बताया कि जब मुअज़्ज़िन अज़ान देता और फ़ज्र नमूदार हो जाता, तो आप दो रकात पढ़ते। जबकि एक स्थान में है : अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जुमा के बाद दो रकात पढ़ते थे।

20- "कल मैं झंडा एक ऐसे आदमी को दूँगा, जिसके हाथ पर अल्लाह विजय प्रदान करेगा। उसे अल्लाह तथा उसके रसूल से प्रेम है तथा अल्लाह एवं उसके रसूल को भी उससे प्रेम है।" सहाबा रात भर यह अनुमान लगाते रहे कि झंड़ा किसे दिया जा सकता है? सुबह सब लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास पहुँचे। हर व्यक्ति आशान्वित था कि झंडा उसे ही दिया जाएगा। लेकिन आपके मुँह से निकला : "अली बिन अबू तालिब कहाँ हैं?" कहा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल! उनकी आँखें दुख रही हैं। आपने कहा : "उसे बुला भेजो।" उन्हें उपस्थित किया गया, तो आपने उनकी आँखों में अपना मुखस्राव डाल दिया और दुआ कर दी। नतीजे में वह ऐसे ठीक हो गए, जैसे उन्हें कोई परेशानी थी ही नहीं। आपने उन्हें झंडा थमा दिया। ऐसे में अली रज़ियल्लाहु अनहु ने कहा : क्या मैं उनसे उस समय तक लड़ूँ, जब तक वे हम जैसे न हो जाएँ? आपने कहा : "आराम से चल पड़ो। जब ख़ैबर के मैदान में पहुँच जाओ, तो उन्हें इस्लाम ग्रहण करने का आमंत्रण देना और उनपर अल्लाह के जो अधिकार हैं, उन्हें उनसे अवगत करना। @अल्लाह की क़सम, अल्लाह तुम्हारे द्वारा यदि एक भी व्यक्ति को हिदायत दे दे, तो यह तुम्हारे लिए लाल ऊँटों से उत्तम है।"

40- "कोई स्त्री दो दिन की दूरी के सफर पर उस समय तक न निकले, जब तक उसके साथ उसका पति या कोई महरम (ऐसा रिश्तेदार जिसके साथ कभी शादी न हो सकती हो) न हो*, दो दिनों में रोज़ा रखना जायज़ नहीं है ; ईद-अल-फ़ित्र के दिन और ईद अल-अज़हा के दिन, सुबह की नमाज़ के बाद सूरज निकलने तक तथा अस्र की नमाज़ के बाद सूरज डूबने तक कोई नमाज़ नहीं है और इबादत की नीयत से सफ़र करके केवल तीन मस्जिदों की ओर जाना जायज़ है ; मस्जिद-ए-हराम, मस्जिद-ए-अक़सा और मेरी यह मस्जिद।"