फ़िक़्ह तथा उसूल-ए-फ़िक़्ह - الصفحة 3

फ़िक़्ह तथा उसूल-ए-फ़िक़्ह - الصفحة 3

10- जो मुअज़्ज़िन को अज़ान देते हुए सुनकर कहता है : أشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له وأنَّ محمداً عبده ورسولُه، رضيتُ بالله رباً وبمحمدٍ رسولاً وبالإسلام دِينا, (अर्थात मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और इस बात की भी गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके बंदे और रसूल हैं। मैं अल्लाह को अपना रब मानकर, मुहम्मद को रसूल मानकर और इस्लाम को अपने धर्म के तौर पर स्वीकार कर खुश और संतुष्ट हूँ), उसके सारे गुनाह क्षमा कर दिए जाते हैं।

56- जिसने अज़ान सुनने के बाद यह दुआ पढ़ी : اللهم رب هذه الدعوة التامة، والصلاة القائمة، آت محمدا الوسيلة والفضيلة، وابعثه مقاما محمودا الذي وعدته अर्थात "ऐ अल्लाह! इस संपूर्ण आह्वान तथा खड़ी होने वाली नमाज़ के रब! मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को वसीला (जन्नत का सबसे ऊँचा स्थान) और श्रेष्ठतम दर्जा प्रदान कर और उन्हें वह प्रशंसनीय स्थान प्रदान कर, जिसका तूने उन्हें वचन दिया है।" उसके लिए क़यामत के दिन मेरी सिफ़ारिश अनिवार्य हो जाएगी।

77- जिसने प्रत्येक नमाज़ के पश्चात तैंतीस बार सुब्हान अल्लाह, तैंतीस बार अल-हम्दु लिल्लाह और तैंतीस बार अल्लाहु अकबर कहा, जो कि कुल निन्यानवे बार हुए, और सौ पूरा करने के लिए ''لا إله إلا الله وحده لا شريك له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيء قدير'' (अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, उसी के लिए बादशाहत है, उसी के लिए सब प्रशंसाएँ हैं, और उसको हर चीज़ पर सामर्थ्य प्राप्त है) कहा, उसके समस्त पाप माफ़ कर दिए जाते हैं, यद्यपि वे समुद्र के झाग के बराबर ही क्यों न हों।