फ़िक़्ह तथा उसूल-ए-फ़िक़्ह - الصفحة 2

फ़िक़्ह तथा उसूल-ए-फ़िक़्ह - الصفحة 2

12- (ऐ अल्लाह! तू पवित्र एवं प्रशंसनीय है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है)। तथा एक रिवायत में हैः मेरा हाथ आपके कदमों के भीतरी भाग पर पड़ा, जबकि आप मस्जिद में थे, दोनों क़दम खड़े थे और आप कह रहे थेः (ऐ अल्लाह! मैं तेरे क्रोध से तेरी प्रसन्नता की शरण माँगता हूँ, तेरी सज़ा से तेरे क्षमादान की शरण माँगता हूँ और तुझसे तेरी शरण में आता हूँ। मैं तेरी प्रशंसा अधिकार अनुसार नहीं कर सकता। तू वैसा ही है, जैसा तूने अपने बारे में कहा है)।

91- जो मुअज़्ज़िन को अज़ान देते हुए सुनकर कहता है : أشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له وأنَّ محمداً عبده ورسولُه، رضيتُ بالله رباً وبمحمدٍ رسولاً وبالإسلام دِينا, (अर्थात मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और इस बात की भी गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके बंदे और रसूल हैं। मैं अल्लाह को अपना रब मानकर, मुहम्मद को रसूल मानकर और इस्लाम को अपने धर्म के तौर पर स्वीकार कर खुश और संतुष्ट हूँ), उसके सारे गुनाह क्षमा कर दिए जाते हैं।