अक़ीदा - الصفحة 2

अक़ीदा - الصفحة 2

1- नज्द का एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया। उसके बाल बिखरे हुए थे। हम उसकी आवाज़ का गुंजन तो सुन रहे थे, मगर यह नहीं समझ पा रहे थे कि वह कह क्या रहा है? यहाँ तक कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निकट आ गया। फिर हमने देखा कि वह इस्लाम के बारे में पूछ रहा है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “ दिन-रात में पाँच नमाज़ें पढ़ना।” उसने कहा : इनके अलावा भी मुझपर कोई नमाज़ फ़र्ज़ है? आपने फ़रमाया : “नहीं, मगर यह कि तू अपनी खु़शी से पढ़े।” फिर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “और रमज़ान के रोज़े रखना।” उसने कहा : और तो कोई रोज़ा मुझपर फ़र्ज़ नहीं है? आपने फ़रमाया : "नहीं, मगर यह कि तू अपनी ख़ुशी से रखे।" फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उससे ज़कात का भी ज़िक्र किया। उसने कहा : मुझपर इसके अलावा भी कुछ देना फ़र्ज़ है? आपने फ़रमाया : “ नहीं, मगर यह कि तू अपनी ख़ुशी से सद्क़ा दे।” फिर वह व्यक्ति यह कहता हुआ वापस चला गया कि अल्लाह की क़सम, न मैं इससे ज़्यादा करूँगा और न कम। अतः अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : @“अगर यह सच कह रहा है, तो कामयाब हो गया।”

13- एक यात्रा में मैं अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ था। चलते हुए एक दिन मैं आपसे निकट हो गया, तो मैंने कहा : हे अल्लाह के रसूल! मुझे ऐसा कार्य बताइए जो मुझे जन्नत में प्रवेश दिलाए तथा जहन्नम से दूर कर दे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : @“तुमने एक गंभीर प्रश्न पूछा है, परंतु यह उसके लिए आसान है, जिसके लिए अल्लाह आसान बना दे* : अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को साझी न बनाओ, नमाज़ स्थापित करो, ज़कात दो, रमज़ान के रोज़े रखो और अल्लाह के घर का हज करो।" फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : "क्या मैं तुम्हें भलाई के द्वारों के बारे में न बताऊँ? रोज़ा ढाल है, और दान पापों को बुझा देता है, जैसे पानी आग को बुझा देता है, तथा व्यक्ति की रात में अदा की गई नमाज़ (भी भलाई के द्वारों में से एक है)।" तत्पश्चात् आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह आयत पढ़ी : تَتجَافَى جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ, (उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते हैं, अपने रब को भय एवं आशा के साथ पुकारते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दे रखा है, वह खर्च करते हैं। कोई व्यक्ति नहीं जानता जो कुछ हमने आँखों की ठंडक उनके लिए छुपा रखी है। जो उसी का बदला है, जो किया करते थे।) फिर आप ने फ़रमाया : "क्या मैं तुम्हें दीन की बुनियाद, उसका स्तंभ और उसकी चोटी न बता दूँ? मैंने कहा : अवश्य, हे अल्लाह के रसूल! आपने फ़रमाया : दीन की बुनियाद इस्लाम है, इसका स्तंभ नमाज़ है और इसकी चोटी जिहाद है।" इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे कहा : "क्या मैं तुम्हें इसका सार न बताऊँ?" मैंने कहा : अवश्य, हे अल्लाह के रसूल। तो आपने अपनी जीभ पकड़ी और कहा : “इसे रोके रखो।" मैंने कहा : हे अल्लाह के नबी ! क्या हम जो बोलते हैं, उसपर भी हमारी पकड़ होगी? तो आपने फ़रमाया : "तुम्हारी माँ तुम्हें खो दे! लोगों को उनके चेहरों के बल या उनकी नाकों के बल (जहन्नम में) उनकी जीभों की कमाई के कारण ही तो गिराया जाएगा।”

14- “निस्संदेह, अल्लाह पवित्र है और केवल पवित्र चीज़ों को ही स्वीकार करता है। अल्लाह ने ईमान वालों को वही आदेश दिया है, जो उसने रसूलों को दिया था।* अल्लाह ने फ़रमाया है : يَا أَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوا مِنْ الطَّيِّبَاتِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا [सूरा अल-मोमिनून : 51] (हे रसूलो! पवित्र चीज़ें खाओ और अच्छे कर्म करो।) और फ़रमाया है : يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ, [सूरा अल-बक़रा : 172] (हे ईमान वालो! हमने तुम्हें जो पवित्र चीज़ें दी हैं, उनमें से खाओ।) फिर एक व्यक्ति का उल्लेख किया, जो लंबी यात्रा करता है, जिसके बाल बिखरे हुए तथा शरीर धूल-धूसरित है, वह अपने हाथ आकाश की ओर उठाता है और कहता है : ‘हे मेरे रब! हे मेरे रब!’ जबकि उसका भोजन हराम का है, उसका पेय हराम का है, उसका वस्त्र हराम का है और उसका पोषण हराम से हुआ है, ऐसे में उसकी दुआ कैसे स्वीकार की जाएगी?”

15- उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे बताइए कि अगर मेरा किसी काफ़िर से सामना हो जाए और हम एक-दूसरे से लड़ाई शुरू कर दें तथा वह मेरे एक हाथ पर तलवार मारकर उसे काट दे एवं उसके बाद मुझसे बचने के लिए एक पेड़ की आड़ में छुप जाए और कहने लगे कि मैंने अल्लाह के लिए इस्लाम क़बूल कर लिया, तो क्या मैं ऐसा कहने के बाद उसका क़ल्त कर दूँ? आपने फ़रमाया : "उसे क़त्म मत करो।" मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! उसने तो मेरा एक हाथ काट दिया और हाथ काटने के बाद ऐसा कहा? (क्या फिर भी उसे क़त्ल नहीं करना चाहिए?) आपने फ़रमाया : @"उसे क़त्ल न करो। अगर तुम उसे क़त्ल कर दोगे, तो वह उस स्थान पर आ जाएगा, जिसपर उसका क़त्ल करने से पहले तुम थे और तुम उस स्थान पर चले जाओगे, जिसपर वह इस वाक्य को कहने से पहले था।"

19- "मैं यह झंडा एक ऐसे व्यक्ति को दूँगा, जो अल्लाह और उसके रसूल से प्यार करता हो और अल्लाह उसके हाथों विजय प्रदान करेगा।"* उमर बिन ख़त्ताब (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि मुझे उस दिन के सिवा कभी अमीर बनने की इच्छा नहीं हुई। उनका कहना है कि मैं इस उम्मीद में अपने आप को ऊँचा का रहा था कि शायद बुला लिया जाऊँ। लेकिन, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अली बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अनहु को बुलाकर झंडा उनके हाथ में दिया और फ़रमायाः "चल पड़ो और उस समय तक न मुड़ो, जब तक अल्लाह तुम्हारे हाथों विजय प्रदान न कर दे।" चुनांचे, अली रज़ियल्लाहु अनहु थोड़ा-सा चले और उसके बाद रुक गए, लेकिन मुड़े नहीं, बल्कि ऊँची आवाज़ में बोले : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं किस बात पर लोगों से युद्ध करूँ? आपने फ़रमाया : "उनसे युद्ध करते रहो, यहाँ तक वे इस बात की गवाही दे दें अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं। यदि उन्होंने ऐसा किया, तो अपने रक्त तथा धन को तुमसे सुरक्षित कर लिया। यह और बात है कि उनपर इस गवाही का कोई अधिकार सिद्ध हो जाए। तथा उनका हिसाब अल्लाह के हवाले है।"

26- मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फ़रमाते हुए सुना : “उच्च एवं बरकत वाला अल्लाह फरमाता है : @हे आदम के पुत्र! जब तक तू मुझे पुकारता रहेगा तथा मुझसे आशा रखेगा, मैं तेरे पापों को क्षमा करता रहूँगा, चाहे वह जितने भी हों, मैं उसकी परवाह नहीं करूँगा।* हे आदम के पुत्र! यदि तेरे पाप आकाश की ऊँचाइयों के समान हो जाएँ, फिर तू मुझसे क्षमा याचना करे, तो मैं तुझे क्षमा कर दूँगा और मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है।* हे आदम के पुत्र! यदि तू मेरे पास धरती के समान पाप लेकर इस हाल में आए कि तुमने मेरे साथ किसी को साझी नहीं किया था, तो मैं तेरे पास धरती के समान क्षमा लेकर आउँगा।"

28- “शक्तिशाली मोमिन कमज़ोर मोमिन के मुकाबले में अल्लाह के समीप अधिक बेहतर तथा प्रिय है, किंतु प्रत्येक के अंदर भलाई है।* जो चीज तुम्हारे लिए लाभदायक हो, उसके लिए तत्पर रहो और अल्लाह की मदद मांगो तथा असमर्थता न दिखाओ। फिर यदि तुम्हें कोई विपत्ति पहुँचे, तो यह न कहो कि यदि मैंने ऐसा किया होता, तो ऐसा और ऐसा होता। बल्कि यह कहो कि "قدر الله وما شاء فعل" (अर्थात् अल्लाह तआला ने ऐसा ही भाग्य में लिख रखा था और वह जो चाहता है, करता है।) क्योंकि ‘अगर’ शब्द शैतान के कार्य का द्वार खोलता है।”

33- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब हुनैन युद्ध के लिए निकले, तो मुश्रिकों (बहुदेववादियों) की ओर से पूजे जाने वाले एक पेड़ के पास से गुज़रे, जिसे 'ज़ात-ए-अनवात' कहा जाता था। वे उसमें अपने हथियार लटकाया करते थे। चुनांचे लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! उनकी तरह हमारे लिए भी एक 'ज़ात-ए-अनवात' बना दीजिए। उनकी बात सुन अल्लाह के रसूलसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : सुबहानल्लाह (अल्लाह पवित्र है)! तुम लोग ठीक वैसा ही कह रहे हो, जैसा मूसा की क़ौम ने कहा था। उन्होंने मूसा (अलैहिस्सलाम) से कहा था : "اجْعَلْ لَنَا إِلَهًا كَمَا لَهُمْ آَلِهَةٌ" (हमारे लिए भी कोई पूज्य बना दीजिए, जैसा कि मुश्रिकों के बहुत-से पूज्य हैं।) [अल-आराफ़: 138] @सुन लो, तुम लोग भी पहले समुदायों के पदचिह्नों पर चल पड़ोगे।"

35- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मेरे यहाँ आए, तो देखा कि मैंने अपने एक ताक पर एक कपड़ा डाल रखा था, जिसपर तस्वीरें थीं, उसपर नज़र पड़ते ही उसे खींचकर हटा डाला और आपके चेहरे का रंग बदल गया तथा फ़रमाया : "ऐ आइशा! @क़यामत के दिन सबसे अधिक कठोर यातना उन लोगों को होगी, जो अल्लाह की सृष्टि की समानता प्रकट करते हैं।*" आइशा रज़ियल्लाहु अनहा कहती हैं : अतः हमने उसे फाड़कर उससे एक या दो तकिए बना लिए।

42- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "अल्लाह कहता है : @आदम की संतान ने मुझे झुठलाया, हालाँकि उसे ऐसा करने का हक नहीं था। मुझे गाली दी, हालाँकि ऐसा करने का उसे कोई अधिकार नहीं था*। उसका मुझे झुठलाना उसका यह कहना है कि उसने मुझे जिस प्रकार पहली बार पैदा किया है, उस प्रकार दोबारा पैदा नहीं करेगा, जबकि पहली बार पैदा करना मेरे लिए दूसरी बार पैदा करने से अधिक आसान नहीं था। उसका मुझे गाली देना,उसका यह कहना है कि अल्लाह ने पुत्र बना लिया है, हालाँकि मैं एक हुं तथा तमाम संपूर्ण गुणों में सम्पूर्णता से वेशेषित हूँ, न मैंने जना है और न ही जना गया हूँ और कोई मेरी बराबरी का नहीं है।"

46- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह कहता है : @जो मेरे किसी वली (मित्र) से शत्रुता का रास्ता अपनाएगा, मैं उसके साथ जंग का एलान करता हूँ। मेरा बंदा जिन कामों के द्वारा मेरी निकटता प्राप्त करना चाहता है, उनमें मेरे निकट सबसे प्यारी चीज़ मेरे फ़र्ज़ किए हुए काम हैं*। जबकि मेरा बंदा नफ़्लों के माध्यम से मुझसे निकटता प्राप्त करता जाता है, यहाँ तक कि मैं उससे मोहब्बत करने लगता हूँ और जब मैं उससे मोहब्बत करता हूँ, तो उसका कान बन जाता हूँ, जिससे वह सुनता है; उसकी आँख बन जाता हूँ, जिससे वह देखता है; उसका हाथ बन जाता हूँ, जिससे वह पकड़ता है और उसका पाँव बन जाता हूँ, जिससे वह चलता है। अब अगर वह मुझसे माँगता है, तो मैं उसे देता हूँ और अगर मुझसे पनाह माँगता है, तो मैं उसे पनाह देता हूँ। मुझे किसी काम में, जिसे मैं करना चाहता हूँ, उतना संकोच नहीं होता, जितना अपने मोमिन बंदे की जान निकालने में होता हैम, जब कि वह मौत को नापसंद करता हो और मुझे भी उसे तकलीफ देना अच्छा नहीं लगता।"

49- "क्या तुम जानते हो कि निर्धन कौन है?*" सहाबा ने कहा : हमारे यहाँ निर्धन वह है, जिसके पास न दिरहम हो न सामान। आपने कहा : "मेरी उम्मत का निर्धन वह व्यक्ति है, जो क़यामत के दिन नमाज़, रोज़ा और ज़कात के साथ आएगा, लेकिन इस अवस्था में उपस्थित होगा कि किसी को गाली दी होगी, किसी पर दुष्कर्म का आरोप लगा रखा होगा, किसी का रक्त बहा रखा होगा और किसी को मार रखा होगा। अतः उसकी कुछ नेकियाँ इसे दे दी जाएँगी और कुछ नेकियाँ उसे दे दी जाएँगी। फिर अगर उसके ऊपर जो अधिकार हैं, उनके भुगतान से पहले ही उसकी नेकियाँ समाप्त हो जाएँगी, तो हक़ वालों के गुनाह लेकर उसके ऊपर डाल दिए जाएँगे और फिर उसे आग में फेंक दिया जाएगा।"

52- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास दस लोगों का एक गिरूह आया, जिनमें से नौ लोगों से आपने बैअत ली, जबकि एक व्यक्ति से बैअत नहीं ली, अतः उन्होंने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! आपने नौ लोगों से बैअत ली और एक व्यक्ति से बैअत नहीं ली! आपने उत्तर दिया : "उसने तावीज़ बाँध रखा है।" अतः उस व्यक्ति ने अपना हाथ अंदर डाला और उसे काट दिया। तब जाकर आपने उससे बैअत ली और फ़रमाया : @ "जिसने तावीज़ लटकाया, उसने शिर्क किया।"

84- जिसने अज़ान सुनने के बाद यह दुआ पढ़ी : اللهم رب هذه الدعوة التامة، والصلاة القائمة، آت محمدا الوسيلة والفضيلة، وابعثه مقاما محمودا الذي وعدته अर्थात "ऐ अल्लाह! इस संपूर्ण आह्वान तथा खड़ी होने वाली नमाज़ के रब! मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को वसीला (जन्नत का सबसे ऊँचा स्थान) और श्रेष्ठतम दर्जा प्रदान कर और उन्हें वह प्रशंसनीय स्थान प्रदान कर, जिसका तूने उन्हें वचन दिया है।" उसके लिए क़यामत के दिन मेरी सिफ़ारिश अनिवार्य हो जाएगी।

100- "यह धर्म वहाँ तक ज़रूर पहुँचेगा, जहाँ दिन और रात पहुँचती है। अल्लाह किसी नगर तथा गाँव और देहात तथा रेगिस्तान का कोई घर नहीं छोड़ेगा, जहाँ इस धर्म को दाख़िल न कर दे। इस प्रकार, सम्मानित व्यक्ति को सम्मान मिलेगा और अपमानित व्यक्ति का अपमान होगा। ऐसा सम्मान, जो अल्लाह इस्लाम के आधार पर प्रदान करेगा तथा ऐसा अपमान जिससे अल्लाह कुफ़्र की बिना पर दोचार करेगा।"* तमीम दारी रज़ियल्लाहु अन्हु कहा करते थे : मैंने इसे ख़ुद अपने परिवार के सदस्यों में देखा है। उनमें से जो मुसलमान हुआ, उसे भलाई, ऊँचाई और सम्मान मिला और जो काफ़िर ही रहा, उसे अपमान तथा निरादर का सामना करना पड़ा और जिज़या देना पड़ा।