अक़ीदा - الصفحة 3

अक़ीदा - الصفحة 3

8- एकि व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आया और कहने लगा : ऐ अल्लाह के रसूल! हम में से एक व्यक्ति अपने दिल में ऐसी बातें पाता है (वह इशारे में बात कर रहा था) कि कोयला बन जाना उनको बोलने से अधिक प्रिय लगता है। यह सुन अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह सबसे बड़ा है। @सारी प्रशंसा अल्लाह की है, जिसने शैतान के फ़रेब को बुरे ख़याल की ओर फेर दिया।"

10- "अल्लाह किसी मोमिन के द्वारा किए गए किसी अच्छे काम के महत्व को घटाता नहीं है। मोमिन को उसके अच्छे काम के बदले में दुनिया में नेमतें प्रदान की जाती हैं और आख़िरत में प्रतिफल दिया जाता है*। जबकि काफ़िर को उसके द्वारा अल्लाह के लिए किए गए अच्छे कामों के बदले में दुनिया में आजीविका प्रदान कर दी जाती है, यहाँ तक कि जब वह आख़िरत की ओर प्रस्थान करता है, उसके पास कोई अच्छा काम नहीं होता, जिसका उसे बदला दिया जाए।"

18- "क़यामत उस समय तक नहीं आएगी, जब तक सूरज अपने डूबने के स्थान से न निकले। जब सूरज अपने डूबने के स्थान से निकलेगा और लोग देखेंगे, तो सब लोग ईमान ले आएँगे*। ऐसा उस समय होगा, जब : " किसी प्राणी को उसका ईमान लाभ नहीं देगा, जो पहले ईमान न लाया हो या अपने ईमान की हालत में कोई सत्कर्म न किया हो।" [सूरा अल-अनआम : 158] क़यामत इस तरह आएगी कि दो लोगों ने अपने बीच कपड़े फैला रखे होंगे, न उसकी खरीद-बिक्री कर सकेंगे और न उसे समेट सकेंगे। क़यामत इस तरह आएगी कि आदमी अपनी ऊँट को दूह चुका होगा, लेकिन दूध पी नहीं सकेगा। क़यामत इस तरह आएगी कि आदमी अपने हौज़ को ठीक कर रहा होगा, लेकिन उसका पानी पी नहीं सकेगा। क़यामत इस तरह आएगी कि आदमी निवाला मुँह तक उठा चुका होगा, लेकिन उसे खा नहीं सकेगा।"

22- "मैं हौज़ (तालाब) के पास ही रहूँगा, ताकि देख सकूँ कि तुममें से कौन-कौन मेरे पास पानी पीने आता है। कुछ लोगों को मेरे पास आने से रोक दिया जाएगा, तो मैं कहूँगा कि ऐ मेरे रब! ये मेरे तथा मेरी उम्मत के लोग हैं*।" चुनांचे कहा जाएगा : क्या तुम्हें मालूम है कि इन लोगों ने तुम्हारे बाद क्या अमल क्या है? अल्लाह की क़सम, ये लोग अपनी एड़ियों के बल (आपके दीन से) लौटते रहे।"

23- मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! हौज़ (तालाब) के बर्तनों के बारे में आप क्या कहेंगे? आपने कहा : "@उस हस्ती की क़सम, जिसके हाथ में मुहम्मद की जान है, उसके बर्तन आकाश के तारों एवं ग्रहों से अधिक होंगे*। सुन लो, मैं बात अंधेरे तथा साफ़ आकाश वाली रात की कर रहा हूँ। हौज़ के बर्तन ऐसे होंगे कि जो उनसे पानी पी लेगा, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी। उस में जन्नत के दो परनाले गिर रहे होंगे। जो इस हौज़ का पानी पी लेगा, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी। उसकी चौड़ाई उसकी लंबाई के समान होगी।(और यह उतना होगा जितना कि ) अम्मान और ऐला के बीच है। उसका पानी दूध से ज़्यादा सफ़ेद और शहद से ज़्यादा मीठा होगा।"

24- "क़यामत के दिन मौत को एक चितकबरे मेंढे* के रूप में लाया जाएगा। फिर एक आवाज़ देने वाला आवाज़ देगा : ऐ जन्नत वासियो! चुनांचे वे ऊपर नज़र उठाकर देखेंगे। आवाज़ देने वाला कहेगा : क्या तुम इसको पहचानते हो? वे कहेंगे: हाँ। यह मौत है और सब ने उसको देखा है। फिर वह आवाज़ देगा : ऐ जहन्नम वासियो! चुनांचे वह भी अपनी गर्दन उठाकर देखेंगे। फिर वह कहेगा : क्या तुम इसको पहचानते हो? वे कहेंगे : हाँ। सब ने उसे देखा है। फिर उस मेंढे को ज़बह कर दिया जाएगा और आवाज़ देने वाला कहेगा : ऐ जन्नत वासियो! तुम्हें हमेशा यहाँ रहना है, अब किसी को मौत नहीं आएगी । ऐ जहन्नम वासियो! तुम्हें भी यहाँ हमेशा रहना है, अब किसी को मौत नहीं आएगी। फिर आपने यह आयत तिलावत फरमाई : “और (ऐ नबी!) आप उन्हें पछतावे के दिन से डराएँ, जब हर काम का फैसला कर दिया जाएगा, और वे पूरी तरह से ग़फ़लत में हैं और वे ईमान नहीं लाते।" [सूरा मरयम : 39]

29- एक बार हम मस्जिद में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ बैठे हुए थे कि इतने में ऊँट पर सवार होकर एक व्यक्ति आया और अपने ऊँट को मस्जिद में बिठाकर बाँध दिया, फिर पूछने लगा कि तुममें से मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कौन हैं ? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस समय सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के बीच टेक लगाकर बैठे हुए थे । हमने कहा : यह सफ़ेद रंग वाले व्यक्ति जो टेक लगाकर बैठे हुए हैं, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। तब वह आपसे कहने लगा : ऐ अब्दुल मुत्तलिब के बेटे! इसपर आपने फ़रमाया : जो कहना है, कहो! मैं तुझे जवाब देता हूँ। फिर उस आदमी ने आपसे कहा कि मैं आपसे कुछ पूछने वाला हूँ और पूछने में सख़्ती से काम लूँगा। आप दिल में मुझपर नाराज़ ना हों। यह सुन आपने फ़रमाया : कोई बात नहीं जो पूछना है, पूछो।तो उसने कहा कि मैं आपको आपके रब और आपसे पहले वाले लोगों के रब की क़सम देकर पूछता हूँ, क्या अल्लाह ने आपको तमाम इन्सानों की तरफ़ नबी बनाकर भेजा है? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है। फिर उसने कहा : आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ क्या अल्लाह ने आपको दिन रात में पाँच नमाज़ें पढ़ने का आदेश दिया है? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है फिर उसने कहा : मैं आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ कि क्या अल्लाह ने साल भर में रमज़ान के रोज़े रखने का आदेश दिया है? आपने फ़रमाया : हाँ, अल्लाह गवाह है। फिर कहने लगा : मैं आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ कि क्या अल्लाह ने आपको आदेश दिया है कि आप हमारे मालदारों से सदक़ा लेकर हमारे निर्धनों में बांट दें? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है। उसके बाद वह आदमी कहने लगा : मैं उस (शरीयत) पर ईमान लाता हूँ, जो आप लाए हैं। मैं अपनी क़ौम का प्रतिनिधि बनकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ, मेरा नाम ज़िमाम बिन सालबा है@ और मैं साद बिन अबी बक्र नामी क़बीले से ताल्लुक़ रखता हूँ।

34- एक व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने बैठा और बोला : ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे कुछ ग़ुलाम हैं। वह मुझसे झूठ बोलते हैं, मेरे साथ विश्वासघात करते हैं और मेरी अवज्ञा करते हैं। जबकि मैं उनको गाली देता हूँ और मारता हूँ। उनके साथ मेरे इस बर्ताव के कारण मेरा हाल क्या होगा? आपने कहा : "@उनके द्वारा की गई तुम से विश्वासघात, अवज्ञा तथा तुमसे झूठ बोलने और तुम्हारे द्वारा उनको दी गई सज़ा का हिसाब होगा*। अगर तुम्हारे द्वारा उनको दी गई सज़ा उनके गुनाहों के बराबर होगी, तो काफ़ी होगी। न तुम्हारे हक़ में जाएगी और न तुम्हारे विरुद्ध। लेकिन अगर तुम्हारे द्वारा उनको दी गई सज़ा उनके गुनाहों से कम होगी, तो तुम्हारे हक़ में जाएगी। जबकि अगर तुम्हारे द्वारा उनको दी गई सज़ा उनके गुनाहों से अधिक होगी, तो उनको दी गई अधिक सज़ा का तुमसे क़िसास लिया जाएगा।" वर्णनकर्ता कहते हैं : इतना सुनने के बाद वह व्यक्ति ज़रा हट के ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। यह देख अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "क्या तुमने अल्लाह की किताब नहीं पढ़ी है, जिसमें लिखा है : "और हम क़यामत के दिन न्याय के तराज़ू रखेंगे। फिर किसी पर कुछ भी अन्याय नहीं किया जाएगा। और अगर किसी का कोइ कर्म राई के एक दाने के बराबर भी होगा, तो हम उसे ले आएँगे। और हम हिसाब लेने वाले काफ़ी हैं।" इसपर उस व्यक्ति ने कहा : अल्लाह की क़सम, ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपने और उनके हक़ में इससे बेहतर कुछ नहीं पाता कि उनको आज़ाद कर दूँ। मैं आपको ग़वाह बनाकर कहता हूँ कि वे सारे आज़ाद हैं।

35- अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अनहु ने हमें बताया कि एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के नबी! काफ़िर को चेहरे के बल कैसे एकत्र किया जाएगा? आपने उत्तर दिया : "@जिसने उसे दुनिया में पैरों पर चलाया, क्या वह क़यामत के दिन उसे चेहरे के बल चला नहीं सकता?*" क़तादा कहते हैं : अवश्य चला सकता है, हमारे रब की प्रतिष्ठा की क़सम।

36- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने चचा से कहा : "@आप ला इलाहा इल्लल्लाह कह दें, मैं क़यामत के दिन आपके लिए इसकी गवाही दूँगा*।"यह सुन उन्होंने कहा : अगर क़ुरैश के लोग मुझे यह कहकर शर्म न दिलाते कि मैंने घबराकर ऐसा किया है, तो मैं तुम्हारी बात मानकर तुम्हारी आँख ठंडी कर देता। इसी परिदृश्य में अल्लाह ने यह आयत उतारी : "निःसंदेह आप उसे हिदायत नहीं दे सकते जिसे आप चाहें, परंतु अल्लाह हिदायत देता है जिसे चाहता है।" [सूरा अल-क़सस : 56]

37- कुछ मुश्रिक, जिन्होंने बहुत ज़्यादा हत्याएँ की थीं और बहुत ज़्यादा व्यभिचार किया था, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और कहने लगे : @आप जो कुछ कह रहे हैं और जिस बात का आह्वान कर रहे हैं, वह अच्छी है। अगर आप हमें बता दें कि हमने जो पाप किए हैं, उनका कोई प्रायश्चित भी है, (तो बेहतर हो)।* चुनांचे इसी परिदृश्य में यह दो आयतें उतरीं : "और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को नहीं पुकारते, और न उस प्राण को क़त्ल करते हैं, जिसे अल्लाह ने ह़राम ठहराया है परंतु हक़ के साथ और न व्यभिचार करते हैं।" [सूरा अल-फ़ुरक़ान : 68] "(ऐ नबी!) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं कि तुम अल्लाह की दया से निराश न हो।" [सूरा अल-ज़ुमर : 53]

38- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन साबित बिन क़ैस को अनुपस्थित देखा और उनके बारे में पूछा, तो एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं आपके पास उनके बारे में जानकारी लेकर आऊँगा। चुनाँचे वह उनके पास गया तो देखा कि वह सर झुकाए अपने घर में बैठे हुए हैं। यह देख उनसे पूछा कि आप कैसे हैं? उन्होंने जवाब दिया कि उनका हाल बुरा है। उनकी आवाज़ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आवाज़ से ऊँची हो जाया करती थी, इसलिए उनके सत्कर्म नष्ट हो गए और अब वह जहन्नमी हैं। चुनांचे वह व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और उन्होंने जो कुछ कहा था, वह बता दिया। अतः वह दोबारा एक बहुत बड़ी खुशख़बरी के साथ लौटा। उसने आकर बताया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है : "@उसके पास जाओ और उसे बता दो कि वह जहन्नमी नहीं, बल्कि जन्नती है।"

41- मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुनी हुई हर बात को इस इरादे से लिख लिया करता था कि वह सुरक्षित रह जाए। लेकिन मुझे इससे क़ुरैश ने मना कर दिया और कहा कि क्या तुम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुनी हुई हर बात को लिख लिया करते हो, जबकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक इन्सान हैं, जो क्रोध तथा प्रसन्नता की अवस्था में बात करते हैं? अतः मैंने लिखना बंद कर दिया और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने इसका ज़िक्र किया तो आपने अपनी उंगली से अपने मुँह की ओर इशारा किया और फ़रमाया : "@तुम लिखा करो। उस हस्ती की क़सम, जिसके हाथ में मेरी जान है, इस (मुंह) से केवल सत्य ही निकलता है।"

42- "जब तुम मुअज़्ज़िन को अज़ान देते हुए सुनो, तो उसी तरह के शब्द कहो, जो मुअज़्ज़िन कहता है। फिर मुझपर दरूद भेजो*। क्योंकि जिसने मुझपर एक बार दरूद भेजा, अल्लाह फ़रिश्तों के सामने दस बार उसकी तारीफ़ करेगा। फिर मेरे लिए वसीला माँगो। दरअसल वसीला जन्नत का एक स्थान है, जो अल्लाह के बंदों में से केवल एक बंदे को शोभा देगा और मुझे आशा है कि वह बंदा मैं ही रहूँगा। अतः जिसने मेरे लिए वसीला माँगा, उसे मेरी सिफ़ारिश प्राप्त होगी।"

43- वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और कहने लगे : ऐ अल्लाह के रसूल! शैतान मेरे, मेरी नमाज़ तथा मेरी तिलावत के बीच रुकावट बनकर खड़ा हो जाता है। मुझे उलझाने के प्रयास करता है। यह सुन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "@यह एक शैतान है, जिसे ख़िंज़िब कहा जाता है। जब तुम्हें उसके व्यवधान डालने का आभास हो, तो उससे अल्लाह की शरण माँगो और तीन बार अपने बाएँ ओर थुत्कारो*।" उनका कहना है कि मैंने इसपर अमल करना शुरू किया, तो अल्लाह ने मेरी इस परेशानी को दूर कर दिया।

80- जब सदक़े का महत्व बयान करने वाली आयत उतरी तो हम अपनी पीठ पर बोझ उठाते (और उससे प्राप्त मज़दूरी को दान करते थे)। फिर एक व्यक्ति आया और बहुत-सा धन दान किया तो मुनाफ़िकों ने कहाः यह रियाकार है तथा एक अन्य व्यक्ति आया और एक साअ दान किया तो कहने लगे कि अल्लाह को इसके एक साअ की ज़रूरत नहीं है। ऐसी परिस्थिति में यह आयत उतरीः "الذين يلمزون المطوعين من المؤمنين في الصدقات والذين لا يجدون إلا جهدهم" (अर्थात, जो लोग स्वेच्छा से देने वाले मोमिनों पर उनके दान के विषय में चोटें करते हैं और उन लोगों का उपहास करते हैं, जिनके पास उसके सिवा कुछ नहीं, जो वे मशक्कत उठाकर देते हैं, उनका उपहास अल्लाह ने किया और उनके लिए दुखदायी यातना है।)