आह्वान एवं भलाई का आदेश देने तथा बुराई से रोकने का प्रबंध करना

आह्वान एवं भलाई का आदेश देने तथा बुराई से रोकने का प्रबंध करना

1- हमने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कठिनाई और आसानी में, चुस्ती और सुस्ती में और हमारे ऊपर तरजीह दिए जाने की अवस्था में भी सुनेंगे और अनुसरण करेंगे*। और इस बात पर बैअत की कि हम शासकों से शासन के मामले में नहीं झगड़ेंगे और जहाँ कहीं भी होंगे, हक़ बात कहेंगे और इस विषय में किसी निंदा करने वाले की निंदा की परवाह नहीं करेंगे।

2- "तुमपर ऐसे शासक नियुक्त हो जाएँगे, जिनके कुछ काम तुम्हें अच्छे लगेंगे और कुछ बुरे। ऐसे में जो (उनके बुरे कामों को) बुरा जानेंगे, वह बरी हो जाएँगे और जो खंडन करेंगे, वह सुरक्षित रहेंगे। परन्तु जो उनको ठीक जानेंगे और शासकों की हाँ में हाँ मिलाएँगे (वह विनाश के शिकार होंगे)।*" सहाबा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हम उनसे युद्ध न करें? फ़रमाया : "नहीं! जब तक वे नमाज़ पढ़ते रहें।"

8- “जो मुसलिम शासक के आज्ञापालन से इनकार करे और (मुसलमानों की) जमात से निकल जाए, फिर उसकी मृत्यु हो जाए तो ऐसी मृत्यु जाहिलियत वाली मृत्यु है*। जो ऐसे झंडे के नीचे लड़ाई लड़े जिसका उद्देश्य स्पष्ट न हो, अपने गोत्र के अभिमान की रक्षा के लिए क्रोधित होता हो, अपने गोत्र के अभिमान की रक्षा के लिए युद्ध करने का आह्वान करता हो, या अपने गोत्र के अभिमान की रक्षा को समर्थन देता हो, फिर इसी अवस्था में मारा जाए, तो यह जाहिलियत वाली मृत्यु है। जो मेरी उम्मत के विरुद्ध लड़ाई के लिए निकले तथा उम्मत के नेक व बुरे लोग सभी को मारे, न मोमिन को छोड़े और न अह्द (संधि) वाले के अह्द (संधि) का ख़याल करे, ऐसा व्यक्ति मुझसे नहीं और न मैं उससे हूँ।”

11- एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे बीच खड़े हुए और ऐसा प्रभावशाली वक्तव्य रखा कि हमारे दिल दहल गए और आँखें बह पड़ीं। अतः किसी ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! आपने हमें एक विदाई के समय संबोधन करने वाले की तरह संबोधित किया है। अतः आप हमें कुछ वसीयत करें। तब आपने कहा : "@तुम अल्लाह से डरते रहना और अपने शासकों के आदेश सुनना तथा मानना। चाहे शासक एक हबशी ग़ुलाम ही क्यों न हो। तुम मेरे बाद बहुत ज़्यादा मतभेद देखोगे। अतः तुम मेरी सुन्नत तथा नेक और सत्य के मार्ग पर चलने वाले ख़लीफ़ागण की सुन्नत पर चलते रहना।* इसे दाढ़ों से पकड़े रहना। साथ ही तुम दीन के नाम पर सामने आने वाली नई-नई चीज़ों से भी बचे रहना। क्योंकि हर बिदअत (दीन के नाम पर सामने आने वाली नई चीज़) गुमराही है।

16- "अल्लाह की सीमाओं पर रुकने वाले तथा उनका उल्लंघन करने वाले का उदाहरण ऐसा है, जैसे कुछ लोगों ने एक कश्ती में बैठने के लिए कु़रआ निकाला और कुछ लोग ऊपरी मंज़िल में सवार हुए और कुछ लोग निचली मंज़िल में*। नीचे वालों को जब पानी की ज़रूरत पड़ती, तो ऊपर वालों के पास से गुज़रते। सो, उन लोगों ने सोचा कि यदि हम अपने भाग में छेद कर लें तथा अपने ऊपर वालों को तकलीफ न दें (तो बेहतर हो)। ऐसे में, यदि ऊपर वालों ने नीचे वालों को ऐसा करने दिया, तो सभी का विनाश हो जाएगा और यदि उनका हाथ पकड़कर उनको रोक दिया, तो यह भी और वह भी दोनों बच जाएँगे।"

18- जब अबू तालिब की मृत्यु का समय निकट आया, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके पास आए। उस समय आपने उनके पास अब्दुल्लाह बिन अबू उमय्या बिन मुग़ीरा और अबू जह्ल को पाया। आपने कहा : @"ऐ चचा जान, आप 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कह दें, मैं इस कलिमा को अल्लाह के पास प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत करूँगा।"* यह सुन अबू जह्ल और अब्दुल्लाह बिन अबू उमय्या ने कहा : क्या तुम अब्दुल मुत्तलिब का धर्म छोड़ दोगे? अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बार-बार निवेदन करते रहे और दोनों रोकने के प्रयास में लगे रहे। अंततः अबू तालिब ने यही कहा कि वह अब्दुल मुत्तलिब के धर्म पर कायम हैं। इस तरह 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहने से इनकार कर दिया। वर्णनकर्ता कहते हैं : परन्तु, अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "जब तक मुझे रोका न जाए, मैं आपके लिए क्षमा माँगता रहूँगा।" चुनांचे अल्लाह ने यह आयत उतारी : {مَا كَانَ لِلنَّبِيِّ وَالَّذِينَ آمَنُوا أَنْ يَسْتَغْفِرُوا لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُوا أُولِي قربى...} (नबी और ईमान लाने वालों के लिए उचित नहीं कि वे बहुदेववादियों के लिए क्षमा की प्रपर्थना करें, यद्यपि वे नातेदार ही क्यों न होंं) [अत-तौबा : 113] तथा अबू तालिब के बारे में यह आयत उतारी : {إِنَّكَ لا تَهْدِي مَنْ أَحْبَبْتَ وَلَكِنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ} (तुम जिसे चाहो सुपथ पर नहीं ला सकते, किंतु अल्लाह जिसे चाहता है राह दिखाता है, और वह राह पाने वालों को भली-भाँति जानता है।) [अल-क़सस : 56]

29- "तुम सब रक्षक हो और तुम सब से तुम्हारे मातहतों के बारे में पूछा जाएगा।* लोगों का शासक रक्षक है और उससे उसके अधीनस्थों के बारे में पूछा जाएगा। एक व्यक्ति अपने परिवार का रक्षक है और उससे उसके मातहतों के बारे में प्रश्न होगा और एक स्त्री अपने पति के घर और उसके बच्चों की रक्षक है और उससे उनके बारे में प्रश्न होगा। इस तरह, तुममें से हर व्यक्ति रक्षक है और तुममें से हर व्यक्ति से उसके मातहतों के बारे में पूछा जाएगा।" तथा एक दास अपने मालिक के धन का रक्षक है और उससे उसके बारे में पूछा जाएगा। सुन लोग, तुममें से हर व्यक्ति रक्षक है और उससे उसके अधीनस्थों के बारे में पूछा जाएगा।"

41- एक बार हम मस्जिद में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ बैठे हुए थे कि इतने में ऊँट पर सवार होकर एक व्यक्ति आया और अपने ऊँट को मस्जिद में बिठाकर बाँध दिया, फिर पूछने लगा कि तुममें से मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कौन हैं ? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस समय सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के बीच टेक लगाकर बैठे हुए थे । हमने कहा : यह सफ़ेद रंग वाले व्यक्ति जो टेक लगाकर बैठे हुए हैं, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। तब वह आपसे कहने लगा : ऐ अब्दुल मुत्तलिब के बेटे! इसपर आपने फ़रमाया : जो कहना है, कहो! मैं तुझे जवाब देता हूँ। फिर उस आदमी ने आपसे कहा कि मैं आपसे कुछ पूछने वाला हूँ और पूछने में सख़्ती से काम लूँगा। आप दिल में मुझपर नाराज़ ना हों। यह सुन आपने फ़रमाया : कोई बात नहीं जो पूछना है, पूछो।तो उसने कहा कि मैं आपको आपके रब और आपसे पहले वाले लोगों के रब की क़सम देकर पूछता हूँ, क्या अल्लाह ने आपको तमाम इन्सानों की तरफ़ नबी बनाकर भेजा है? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है। फिर उसने कहा : आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ क्या अल्लाह ने आपको दिन रात में पाँच नमाज़ें पढ़ने का आदेश दिया है? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है फिर उसने कहा : मैं आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ कि क्या अल्लाह ने साल भर में रमज़ान के रोज़े रखने का आदेश दिया है? आपने फ़रमाया : हाँ, अल्लाह गवाह है। फिर कहने लगा : मैं आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ कि क्या अल्लाह ने आपको आदेश दिया है कि आप हमारे मालदारों से सदक़ा लेकर हमारे निर्धनों में बांट दें? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है। उसके बाद वह आदमी कहने लगा : मैं उस (शरीयत) पर ईमान लाता हूँ, जो आप लाए हैं। मैं अपनी क़ौम का प्रतिनिधि बनकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ, मेरा नाम ज़िमाम बिन सालबा है@ और मैं साद बिन अबी बक्र नामी क़बीले से ताल्लुक़ रखता हूँ।

42- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का विजय के दिन लोगों को संबोधित करते हुए कहा : "@ऐ लोगो! अल्लाह ने तुमसे जाहिलीयत काल के अभिमान एवं बाप-दादाओं पर फ़ख़्र (घमंड) करने की प्रवृत्ति को दूर कर दिया है*। अतः अब लोग दो प्रकार के हैं। एक, नेक, परहेज़गार और अल्लाह के यहाँ सम्मानित एवं दूसरा दुष्ट, अभागा तथा अल्लाह की नज़र में महत्वहीन व्यक्ति। सारे लोग आदम की संतान हैं और आदम को अल्लाह ने मिट्टी से पैदा किया है। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है : "ऐ मनुष्यो! हमने तुम्हें एक नर और एक मादा से पैदा किया तथा हमने तुम्हें जातियों और क़बीलों में कर दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचान सको। निःसंदेह अल्लाह के निकट तुममें सबसे अधिक सम्मान वाला वह है, जो तुममें सबसे अधिक तक़्वा (धर्मप्रायणता) वाला है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूरी ख़बर रखने वाला है।" [सूरा अल-हुजुरात : 13]