नमाज़

नमाज़

74- जो मुअज़्ज़िन को अज़ान देते हुए सुनकर कहता है : أشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له وأنَّ محمداً عبده ورسولُه، رضيتُ بالله رباً وبمحمدٍ رسولاً وبالإسلام دِينا, (अर्थात मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और इस बात की भी गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके बंदे और रसूल हैं। मैं अल्लाह को अपना रब मानकर, मुहम्मद को रसूल मानकर और इस्लाम को अपने धर्म के तौर पर स्वीकार कर खुश और संतुष्ट हूँ), उसके सारे गुनाह क्षमा कर दिए जाते हैं।

103- जिसने प्रत्येक नमाज़ के पश्चात तैंतीस बार सुब्हानल्लाह, तैंतीस बार अल्ह़म्दुलिल्लाह और तैंतीस बार अल्लाहु अकबर कहा, तो इस प्रकार कुल निन्यानवे हुए, और सौ पूरा करने के लिए ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीका लहु, लहुल्मुल्कु, व लहुल्हम्दु, व हुवा अला कुल्ले शैइन क़दीर, कहा (अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है उस का कोई साझी नहीं, उसी के लिए बादशाहत है, उसी के लिए सब प्रशंसा है और उस को हर चीज़ पर सामर्थ्य प्राप्त है), तो उस के समस्त पाप माफ कर दिए जाते हैं यद्दपि वह समुद्र के झाग के बराबर ही क्यों न हों।