नमाज़

नमाज़

8- वह प्रत्येक नमाज़ के सलाम फेरने के बाद कहा करते थे : " لا إله إلا الله وحده لا شريكَ له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيءٍ قديرٌ، لا حولَ ولا قوةَ إلا بالله، لا إله إلا الله، ولا نعبد إلا إيَّاه، له النِّعمة وله الفضل، وله الثَّناء الحَسَن، لا إله إلا الله مخلصين له الدِّين ولو كَرِه الكافرون" (अल्लाह के सिवा कोई सच्चा उपास्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, उसी की बादशाहत है और उसी के लिए सभी प्रकार की उच्च कोटी की प्रशंसा है और वह हर काम में सक्षम है। उसके सिवा और किसी में कुछ भी सामर्थ्य नहीं है। अल्लाह के सिवा कोई सच्चा उपास्य नहीं, हम केवल उसी की उपासना करते हैं, उसी की सब नेमतें हैं और उसी का सब पर उपकार है, उसी के लिए समस्त अच्छी प्रशंसाएँ हैं। अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, हम उसी के लिए धर्म को खालिस व शुद्ध करते हैं, चाहे ये बात काफिरों को नागवार लगती हो।)

16- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास एक अंधा व्यक्ति आया, तथा कहा : ऐ अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ! मेरे पास कोई आदमी नहीं है जो मुझे मस्जिद तक लेकर आए । अतः उन्होंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से इजाज़त चाही कि आप उन्हें घर पर ही नमाज़ पढ़ने की इजाज़त दे दें, तो आप ने उन्हें इजाज़त दे दी, लेकिन जब वह जाने लगे तो उन्हें बुलाया और फ़रमाया : “क्या तुम नमाज़ के लिए पुकारी जाने वाली अज़ान को सुनते हो? ” उन्होंने कहा : हाँ, तो आप ने फ़रमाया : “फिर तो तुम अवश्य उसका जवाब दो (नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद आओ)।”

60- हमें अल्लाह ने सिखा दिया है कि हम आपपर सलाम कैसे भेजें, लेकिन हम आपपर दरूद कैसे भेजें? तो आपने फ़रमायाः "कहोः "اللَّهُمَّ صَلِّ على محمد وعلى آل محمد؛ كما صَلَّيْتَ على إبراهيم، إنَّك حميد مجيد، وبَارِكْ على محمد وعلى آل محمد؛ كما باركت على إبراهيم، إنَّك حميد مجيد" (अर्थात ऐ अल्लाह! मुहम्मद और मुहम्मद की संतान पर रहमत नाज़िल फरमा, जैसे तूने इबराहीम पर रहमत नाज़िल की थी। बेशक तू प्रशंसा के योग्य और महिमावान है। ऐ अल्लाह! मुहम्मद और मुहम्मद की संतान पर बरकत नाज़िल फरमा, जैसे तूने इबराहीम पर बरकत नाज़िल की थी। बेशक तू प्रशंसा के योग्य और महिमावान है।)

103- जिसने प्रत्येक नमाज़ के पश्चात तैंतीस बार सुब्हानल्लाह, तैंतीस बार अल्ह़म्दुलिल्लाह और तैंतीस बार अल्लाहु अकबर कहा, तो इस प्रकार कुल निन्यानवे हुए, और सौ पूरा करने के लिए ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीका लहु, लहुल्मुल्कु, व लहुल्हम्दु, व हुवा अला कुल्ले शैइन क़दीर, कहा (अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है उस का कोई साझी नहीं, उसी के लिए बादशाहत है, उसी के लिए सब प्रशंसा है और उस को हर चीज़ पर सामर्थ्य प्राप्त है), तो उस के समस्त पाप माफ कर दिए जाते हैं यद्दपि वह समुद्र के झाग के बराबर ही क्यों न हों।