फ़ज़ीलतें

फ़ज़ीलतें

6- "निस्संदेह, हलाल स्पष्ट है और हराम भी स्पष्ट है* तथा दोनों के बीच कुछ चीज़ें अस्पष्ट हैं, जिन्हें बहुत से लोग नहीं जानते। अतः, जो अस्पष्ट चीज़ों से बचा, उसने अपने धर्म और प्रतिष्ठा की रक्षा कर ली तथा जो अस्पष्ट चीज़ों में पड़ गया, वह हराम में पड़ गया। जैसे एक चरवाहा सुरक्षित चरागाह (पशुओं के चरने का स्थान) के आस-पास जानवर चराए, तो संभावना रहती है कि जानवर उसके अंदर चले जाएँ। सुन लो, हर बादशाह की सुरक्षित चरागाह होती है। सुन लो, अल्लाह की सुरक्षित चरागाह उसकी हराम की हुई चीज़ें हैं। सुन लो, शरीर के अंदर मांस का एक टुकड़ा है, जब वह सही रहेगा, तो पूरा शरीर सही रहेगा और जब वह बिगड़ेगा तो पूरा शरीर बिगड़ेगा। सुन लो, मांस का वह टुकड़ा, दिल है।"

15- “जिसने दस बार 'ला इलाहा इल्लल्लाहु वह़दहु ला शरीका लहु, लहुल-मुल्कु व लहुल-हम्दु, व हुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर' (अर्थात, अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, पूरा राज्य उसी का है और सब प्रशंसा उसी की है और उसके पास हर चीज़ का सामर्थ्य है।) कहा*, वह उस व्यक्ति के समान है, जिसने इसमाईल (अलैहिस्सलाम) की संतान में से चार दासों को मुक्त किया।”

18- अल्लह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने, जबकि मुआज़ रज़ियल्लाहु अनहु सवारी पर आपके पीछे बैठे थे, फ़रमाया : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैंं उपस्थित हूँ। आपने फिर कहा : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" उन्होंने दोबारा कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं उपस्थि हूँ! आपने फिर कहा : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" तो उन्होंने तीसरी बार कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं उपस्थित हूँ! तीसरी बार के बाद आपने फ़रमाया : "@जिस बंदे ने सच्चे दिल से यह गवाही दी कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बंदे तथा उसके रसूल हैं, अल्लाह उसे जहन्नम पर हराम कर देगा*।" उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या मैं लोगों को आपकी यह बात बता न दूँ कि वे ख़ुश हो जाएँ? आपने फ़रमाया : "तब तो वे इसी पर भरोसा कर बैठेंगे।" चुनांचे मृत्यु के समय मुआज़ रज़ियल्लाहु अनहु ने गुनाह के भय से यह हदीस लोगों को बता दी।

19- मैं अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे एक गधे पर बैठा हुआ था, जिसका नाम उफ़ैर था। इसी दौरान आपने कहा : "ऐ मुआज़! क्या तुम जानते हो कि बंदों पर अल्लाह का अधिकार क्या है और अल्लाह पर बंदों का अधिकार क्या है?" मैंने कहा : अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं। आपने कहा : "@बंदों पर अल्लाह का अधिकार यह है कि बंदे उसकी इबादत करें और किसी को उसका साझी न बनाएँ। जबकि अल्लाह पर बंदों का अधिकार यह है कि अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को अज़ाब न दे, जो किसी को उसका साझी न ठहराता हो*।" मैंने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या मैं लोगों को यह सुसमाचार सुना न दूँ? आपने उत्तर दिया : "यह सुसमाचार लोगों को न सुनाओ, वरना लोग भरोसा करके बैठ जाएँगे।"

20- एक व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल! दो वाजिब करने वाली चीज़ें क्या हैं? आपने उत्तर दिया : "@जो इस हाल में मरा कि किसी को अल्लाह का साझी नहीं बनाया, वह जन्नत में प्रवेश करेगा और जो इस हाल में मरा कि किसी को अल्लाह का साझी बनाता रहा, वह जहन्नम में जाएगा।"

21- "अल्लाह क़यामत के दिन मेरी उम्मत से एक व्यक्ति को चुनकर सारी सृष्टियों के सामने उपस्थित करेगा* और उसके सामने निन्यानवे रजिस्टरों को खोलकर रख देगा। हर रजिस्टर वहाँ तक फैला होगा, जहाँ नज़र जाती हो। फिर कहेगा : क्या तुम इनके अंदर लिखी किसी बात से इनकार करते हो? क्या इनको तैयार करने पर नियुक्त मेरे फ़रिश्तों ने तुमपर कोई अत्याचार किया है? वह कहेगा : नहीं, ऐ मेरे रब! फिर अल्लाह कहेगा : क्या तुम्हारे पास प्रस्तुत करने के लिए कोई कारण है? वह कहेगा : नहीं, ऐ मेरे रब! यह सुन अल्लाह कहेगा : हमारे पास तुम्हारी एक नेकी रखी है। देखो, आज तुमपर कोई अत्याचार नहीं होगा। चुनांचे एक पर्ची निकाली जाएगी, जिसमें लिखा होगा : मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं। फिर अल्लाह उससे कहेगा : अपने कर्मों को तोले जाने का दृश्य देखो। यह सुन वह कहेगा : इन रजिस्टरों के सामने इस एक पर्ची की क्या हैसियत है? लेकिन अल्लाह कहेगा : तुमपर कोई अत्याचार नहीं होगा। आपने कहा : एक पलड़े में सारे रजिस्टर रखे जाएँगे और दूसरे पलड़े में उस पर्ची को रखा जाएगा। चुनांचे रजिस्टर हल्के साबित होंगे और परर्ची भारी सिद्ध होगी, क्योंकि अल्लाह के नाम से ज़्यादा भारी कोई चीज़ नहीं है।"

22- एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे बीच खड़े हुए और ऐसा प्रभावशाली वक्तव्य रखा कि हमारे दिल दहल गए और आँखें बह पड़ीं। अतः किसी ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! आपने हमें एक विदाई के समय संबोधन करने वाले की तरह संबोधित किया है। अतः आप हमें कुछ वसीयत करें। तब आपने कहा : "@तुम अल्लाह से डरते रहना और अपने शासकों के आदेश सुनना तथा मानना। चाहे शासक एक हबशी ग़ुलाम ही क्यों न हो। तुम मेरे बाद बहुत ज़्यादा मतभेद देखोगे। अतः तुम मेरी सुन्नत तथा नेक और सत्य के मार्ग पर चलने वाले ख़लीफ़ागण की सुन्नत पर चलते रहना।* इसे दाढ़ों से पकड़े रहना। साथ ही तुम दीन के नाम पर सामने आने वाली नई-नई चीज़ों से भी बचे रहना। क्योंकि हर बिदअत (दीन के नाम पर सामने आने वाली नई चीज़) गुमराही है।

25- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों की एक सभा में गए और फरमाया : "तुम लोग क्यों बैठे हुए हो?" उन लोगों ने कहा : हम लोग इसलिए बैठे हैं, ताकि अल्लाह को याद करें और इस बात पर उसकी प्रशंसा करें कि उसने हमें इस्लाम का रास्ता दिखाया और इस्लाम जैसा धर्म प्रदान किया। आपने कहा : "अल्लाह की क़सम तुम लोग इसी के लिए बैठे हो?" उन लोगों ने कहा : अल्लाह की क़सम हम इसी लिए बैठे हैं। आपने फरमाया: @"मैं तुमसे क़सम इसलिए नहीं ले रहा हूँ कि तुमपर कोई आरोप लगाना चाहता हूँ। दरअसल बात यह है कि जिबरील अलैहिस्सलाम मेरे पास आए और बताया कि सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह फ़रिश्तों के निकट तुम लोगों पर गर्व कर रहा है।"

30- "सबसे उत्तम दीनार जिसे इंसान ख़र्च करता है, वह दीनार है जिसे वह अपने परिवार पर ख़र्च करता है, फिर वह दीनार है जो वह अल्लाह की राह में जिहाद करने के लिए खास किए हुए जानवर पर ख़र्च करता है, और फिर वह दीनार है जिसे वह अल्लाह के रास्ते में अपने साथियों पर ख़र्च करता है।"* अबू क़िलाबा कहते हैं कि शुरूआत परिवार से की। फिर अबू क़िलाबा ने कहा कि भला कौन व्यक्ति, उस आदमी से पुण्य में बढ़ सकता है, जो अपने छोटे-छोटे बच्चों पर खर्च करता है, ताकि वे दूसरों के सामने हाथ फैलाने पर मजबूर न हों या अल्लाह तआला उन्हें उसके द्वारा लाभ पहुँचाए तथा उनको निस्पृह कर दे।

36- "कल मैं झंडा एक ऐसे आदमी को दूँगा, जिसके हाथ पर अल्लाह विजय प्रदान करेगा। उसे अल्लाह तथा उसके रसूल से प्रेम है तथा अल्लाह एवं उसके रसूल को भी उससे प्रेम है।" सहाबा रात भर यह अनुमान लगाते रहे कि झंड़ा किसे दिया जा सकता है? सुबह सब लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास पहुँचे। हर व्यक्ति आशान्वित था कि झंडा उसे ही दिया जाएगा। लेकिन आपके मुँह से निकला : "अली बिन अबू तालिब कहाँ हैं?" कहा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल! उनकी आँखें दुख रही हैं। आपने कहा : "उसे बुला भेजो।" उन्हें उपस्थित किया गया, तो आपने उनकी आँखों में अपना मुखस्राव डाल दिया और दुआ कर दी। नतीजे में वह ऐसे ठीक हो गए, जैसे उन्हें कोई परेशानी थी ही नहीं। आपने उन्हें झंडा थमा दिया। ऐसे में अली रज़ियल्लाहु अनहु ने कहा : क्या मैं उनसे उस समय तक लड़ूँ, जब तक वे हम जैसे न हो जाएँ? आपने कहा : "आराम से चल पड़ो। जब ख़ैबर के मैदान में पहुँच जाओ, तो उन्हें इस्लाम ग्रहण करने का आमंत्रण देना और उनपर अल्लाह के जो अधिकार हैं, उन्हें उनसे अवगत करना। @अल्लाह की क़सम, अल्लाह तुम्हारे द्वारा यदि एक भी व्यक्ति को हिदायत दे दे, तो यह तुम्हारे लिए लाल ऊँटों से उत्तम है।"

40- "क्या मैं तुम्हें तुम्हारा सबसे उत्तम कार्य न बताऊँ, जो तुम्हारे रब के निकट सबसे ज़्यादा सराहनीय, तुम्हारे दरजे को सबसे ऊँचा करने वाला*, तुम्हारे लिए सोना एवं चाँदी दान करने से बेहतर तथा इस बात से भी बेहतर है कि तुम अपने शत्रु से भिड़ जाओ और तुम उनकी गर्दन मार दो और वह तुम्हारी गर्दन मार दें?" सहाबा ने कहा : अवश्य ऐ अल्लाह के रसूल! तो फ़रमाया : "उच्च एवं महानअल्लाह का ज़िक्र करना।"

42- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का के रास्ते में चल रहे थे कि जुमदान नामी एक पर्वत के पास से गुज़रे। अतः फ़रमाया : "चलते रहो, यह जुमदान है। @अतुल्य विशेषता वाले लोग आगे हो गए।"* सहाबा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यह अतुल्य विशेषता वाले लोग कौन हैं? फ़रमाया : "अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करने वाले पुरुष और अल्लाह को बहुत-ज़्यादा याद करने वाली स्त्रियाँ।"

71- एक व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहने लगा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैंने हर छोटा-बड़ा गुनाह कर डाला है। आपने पूछा : "@क्या तुम इस बात की गवाही नहीं देते कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं?*" आपने इस प्रश्न को तीन बार दोहराया। उसने जवाब दिया : अवश्य देता हूँ। आपने कहा : "यह उसे मिटा देगा।"

72- "अमल छह प्रकार के हैं और लोग चार प्रकार के हैं। रही बात छह आमाल की, तो उनमें से दो प्रकार के अमल वाजिब करने वाले हैं, दो प्रकार के अमल बराबर-बराबर हैं, एक प्रकार का अमल ऐसा नेक अमल है कि उसका सवाब दस गुना मिलता है और एक प्रकार का अमल ऐसा नेक अमल है कि उसका सवाब सात सौ गुना मिलता है*। जहाँ तक दो वाजिब करने वाले अमल की बात है, तो जो व्यक्ति इस अवस्था में दुनिया से मृत्यु को प्राप्त हुआ कि किसी को अल्लाह का साझी नहीं ठहराया, वह जन्नत में जाएगा और जो इस अवस्था में दुनिया से मृत्यु पाया कि किसी को अल्लाह का साझी ठहराया, वह जहन्नम में जाएगा। जहाँ तक बराबर-बराबर वाले दो अमल की बात है, तो ध्यान में रहे कि जिसने किसी नेकी के काम की इस तरह नीयत कर ली कि उसके दिल ने उसे महसूस किया और अल्लाह ने उसकी नीयत को जाना, तो उसके लिए एक नेकी लिखी जाएगी। इसी तरह जिसने कोई बुरा काम किया, उसके लिए एक गुनाह लिखा जाएगा। पाँचवें प्रकार का अमल यह है कि जिसने कोई नेकी का काम कर लिया, उसे उस नेकी के काम का सवाब दस गुना दिया जाएगा। और छठे प्रकार का अमल यह है कि जिसने अल्लाह के रास्ते में कोई चीज़ खर्च की, उसे इस एक अच्छे काम का सवाब सात सौ गुना मिलेगा। जहाँ तक चार प्रकार के लोगों की बात है, तो कुछ लोग दुनिया में खुशहाल हैं और आख़िरत में कंगाल होंगे, कुछ लोग दुनिया में कंगाल हैं और आख़िरत में खुशहाल होंगे, कुछ लोग दुनिया में भी कंगाल हैं और आख़िरत में भी कंगाल होंगे, जबकि कुछ लोग दुनिया में भी खुशहाल हैं और आख़िरत में भी खुशहाल होंगे।

76- "अल्लाह ने एक उदाहरण दिया है। एक सीधा रास्ता है*। रास्ते के दोनों ओर दो दीवारें हैं। दोनों दीवारों में कुछ द्वार खुले हैं। उन द्वारों पर पर्दे लटके हुए हैं। रास्ते के द्वार पर पुकारने वाला कह रहा है : ऐ लोगो! सब के सब इस राह में दाख़िल जाओ और इधर-उधर न भठको। जबकि एक और पुकारने वाला रास्ते के ऊपर से पुकार रहा है। जब कोई बंदा उन द्वारों में से किसी द्वार को खोलना चाहता है, तो कहता है : तेरा बुरा हो, इसे मत खोल। अगर तू इसे खोलेगा, तो इसमें घुस जाएगा। वह रास्त इस्लाम है, दोनों दीवारें अल्लाह की सीमाएँ हैं, खुले हुए द्वार अल्लाह की हराम की हुई चीज़ें हैं, रास्ते के एक सिरे पर उपस्थित पुकारने वाले अल्लाह की किताब है और रास्ते के ऊपर से पुकारने वाला हर मुसलमान के दिल में मौजूद अल्लाह का नसीहत करने वाला है।"

80- हमें अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उन सहाबा ने बताया, जो हमें पढ़ाया करते थे कि वे@ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दस आयतें पढ़ते और दूसरी दस आयतों को पढ़ना उस समय तक शुरू नहीं करते, जब तक उन दस आयतों के ज्ञान एवं अमल को सीख न लेते*। सहाबा ने कहा : हमने ज्ञान और अमल दोनों सीखा।

81- "ऐ अबुल मुंज़िर! क्या तुम जानतो हो कि तुम्हारे पास मौजूद अल्लाह की किताब की कौन-सी आयत सबसे महान है?" वह कहते हैं कि मैंने कहा : अल्लाह और उसके रसूल बेहतर जानते हैं। आपने कहा : "@ऐ अबुल मुंज़िर! क्या तुम जानतो हो कि तुम्हारे पास मौजूद अल्लाह की किताब की कौन-सी आयत सबसे महान है?" वह कहते हैं कि मैंने कहा : {اللهُ لا إِلَهَ إِلا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ} [सूरा अल-बक़रा : 255] वह कहते हैं : यह सुन आप ने मेरे सीने पर मारा और फ़रमाया : "@अल्लाह की क़सम! ऐ अबुल मुंज़िर! तुमको यह ज्ञान मुबारक हो।"

82- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने चचा से कहा : "@आप ला इलाहा इल्लल्लाह कह दें, मैं क़यामत के दिन आपके लिए इसकी गवाही दूँगा*।"यह सुन उन्होंने कहा : अगर क़ुरैश के लोग मुझे यह कहकर शर्म न दिलाते कि मैंने घबराकर ऐसा किया है, तो मैं तुम्हारी बात मानकर तुम्हारी आँख ठंडी कर देता। इसी परिदृश्य में अल्लाह ने यह आयत उतारी : "निःसंदेह आप उसे हिदायत नहीं दे सकते जिसे आप चाहें, परंतु अल्लाह हिदायत देता है जिसे चाहता है।" [सूरा अल-क़सस : 56]

83- "जब तुम मुअज़्ज़िन को अज़ान देते हुए सुनो, तो उसी तरह के शब्द कहो, जो मुअज़्ज़िन कहता है। फिर मुझपर दरूद भेजो*। क्योंकि जिसने मुझपर एक बार दरूद भेजा, अल्लाह फ़रिश्तों के सामने दस बार उसकी तारीफ़ करेगा। फिर मेरे लिए वसीला माँगो। दरअसल वसीला जन्नत का एक स्थान है, जो अल्लाह के बंदों में से केवल एक बंदे को शोभा देगा और मुझे आशा है कि वह बंदा मैं ही रहूँगा। अतः जिसने मेरे लिए वसीला माँगा, उसे मेरी सिफ़ारिश प्राप्त होगी।"

84- वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और कहने लगे : ऐ अल्लाह के रसूल! शैतान मेरे, मेरी नमाज़ तथा मेरी तिलावत के बीच रुकावट बनकर खड़ा हो जाता है। मुझे उलझाने के प्रयास करता है। यह सुन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "@यह एक शैतान है, जिसे ख़िंज़िब कहा जाता है। जब तुम्हें उसके व्यवधान डालने का आभास हो, तो उससे अल्लाह की शरण माँगो और तीन बार अपने बाएँ ओर थुत्कारो*।" उनका कहना है कि मैंने इसपर अमल करना शुरू किया, तो अल्लाह ने मेरी इस परेशानी को दूर कर दिया।