इबादतों पर आधारित फ़िक़्ह

इबादतों पर आधारित फ़िक़्ह

6- उसमान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अनहु के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम हुमरान से रिवायत है, उन्होंने देखा कि उसमान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अनहु ने वज़ू का पानी मँगवाया, दोनों हाथों पर बर्तन से तीन बार पानी उंडेला, उनको तीन बार धोया, फिर वज़ू के पानी में दायाँ हाथ दाख़िल किया, फिर कुल्ली की, नाक में पानी चढ़ाया और नाक झाड़ा, फिर चेहरे को तीन बार और दोनों हाथों को तीन बार कोहनियों समेत धोया, फिर सर का मसह किया, फिर दोनों पैरों को तीन-तीन बार धोया और उसके बाद फ़रमाया : मैंने देखा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मेरे इस वज़ू की तरह वज़ू किया और उसके बाद फ़रमाया : "@जिसने मेरे इस वज़ू की तरह वज़ू किया और उसके बाद दो रकात नमाज़ पढ़ी, जिसमें उसने अपने जी में कोई बात न की, अल्लाह उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर देता है।*"

8- "मुनाफ़िक़ों पर सबसे भारी नमाज़ इशा और फ़ज्र की नमाज़ है और अगर उन्हें इन नमाज़ों के सवाब का अंदाज़ा हो जाए, तो घुटनों को बल चलकर आएँ*। मैंने तो (एक बार) इरादा कर लिया था कि किसी को नमाज़ पढ़ाने का आदेश दूँ और वह नमाज़ पढ़ाए, फिर कुछ लोगों को साथ लेकर, जो लकड़ी गट्ठर लिए हुए हों, ऐसे लोगों के यहाँ जाऊँ, जो नमाज़ के लिए नहीं आते और उनको उनके घरों के साथ जला डालूँ।"

18- अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अनहुमा प्रत्येक नमाज़ का सलाम फेरने के बाद कहा करते थे : " لا إله إلا الله وحده لا شريكَ له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيءٍ قديرٌ، لا حولَ ولا قوةَ إلا بالله، لا إله إلا الله، ولا نعبد إلا إيَّاه، له النِّعمة وله الفضل، وله الثَّناء الحَسَن، لا إله إلا الله مخلصين له الدِّين ولو كَرِه الكافرون" (अल्लाह के अतिरिक्ति कोई सच्चा पूज्य नहीं है। वह अकेला है। उसका कोई साझी नहीं है। उसी की बादशाहत है और उसी की सभी प्रकार की उच्च कोटी की प्रशंसा है और वह हर चीज़ में सक्षम है। अल्लाह के प्रदान किए हुए सुयोग के बिना न किसी के पास गुनाह से बचने की क्षमता है और न नेकी का काम करने का सामर्थ्य। अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा उपास्य नहीं है। हम केवल उसी की उपासना करते हैं। उसी की सब नेमतें हैं और उसी का सब पर उपकार है। उसी की समस्त अच्छी प्रशंसाएं हैं। अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं है। हम उसी के लिए धर्म को खालिस व शुद्ध करते हैं, चाहे यह बात काफिरों को नागवार लगती हो।) उन्होंने आगे कहा : @अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रत्येक नमाज़ के बाद इन्हीं शब्दों के द्वारा तहलील (अल्लाह का गुणगान) करते थे।

19- "ऐसे कोई दिन नहीं हैं, जिनमें नेकी के काम करना अल्लाह के निकट इन (दस) दिनों में नेकी के काम करने से अधिक प्रिय हों।" आपकी मुराद ज़ुल-हिज्जा महीने के शुरू के दस दिन हैं*। सहाबा ने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! अल्लाह के मार्ग में जिहाद करना भी नहीं? आपने उत्तर दिया : "नहीं, अल्लाह के रास्ते में जिहाद भी नहीं, सिवाय उस व्यक्ति के, जो जान तथा माल के साथ निकलता हो और फिर उनमें से कुछ भी लेकर वापस न आता हो।"

24- उम्म-ए-सलमा रज़ियल्लाहु अनहा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास हबशा (इथियोपिया) में देखे हुए मारिया नामी एक गिरजाघर और उसके चित्रों का वर्णन किया, तो आपने कहा : "@वे ऐसे लोग हैं कि उन लोगों के अंदर जब कोई सदाचारी बंदा अथवा सदाचारी व्यक्ति मर जाता, तो उसकी कब्र के ऊपर मस्जिद बना लेते* और उसमें वो चित्र बना देते। वे अल्लाह के निकट सबसे बुरे लोग हैं।"

27- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब नमाज़ समाप्त करते, तो तीन बार अल्लाह से क्षमा माँगते और यह दुआ पढ़ते : "@ऐ अल्लाह! तू ही शांति वाला है और तेरी ओर से ही शांति है। तू बरकत वाला है ऐ महानता और सम्मान वाले*!" वलीद कहते हैं : मैंने औज़ाई से कहा : क्षमा कैसे माँगी जाए? उन्होंने उत्तर दिया : तुम बस इतना कहो : मैं अल्लाह से क्षमा माँगता हूँ, मैं अल्लाह से क्षमा माँगता हूँ।

33- एक व्यक्ति ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न करते हुए कहा : @इस बारे में आपका क्या कहना है कि अगर मैं पाँच वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ें पढ़ूँ, रमज़ान महीने के रोज़े रखूँ तथा हलाल को हलाल एवं हराम को हराम* मानकर चलूँ और इससे अधिक कुछ न करूँ, तो क्या मैं जन्नत में प्रवेश कर सकूँगा? आपने उत्तर दिया : "हाँ।" इसपर उसने कहा : अल्लाह की क़सम, मैं इससे ज़्यादा कुछ नहीं करूँगा।

34- "पवित्रता आधा ईमान है, अल-हम्दु लिल्लाह तराज़ू को भर देता है, सुबहानल्लाह और अल-हम्दु लिल्लाह दोनों मिलकर आकाश एवं धरती के बीच के खाली स्थान को भर देते हैं*, नमाज़ नूर है, सदक़ा प्रमाण है, धैर्य प्रकाश है और क़ुरआन तुम्हारे लिए या तुम्हारे विरुद्ध प्रमाण है। प्रत्येक व्यक्ति जब रोज़ी की खोज में सुबह निकलता है, तो अपने नफ़्स को बेचता है। चुनांचे वह उसे आज़ाद करता है या उसका विनाश करता है।"

42- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से उस व्यक्ति के बारे में पूछा गया, जो बहादुरी दिखाने के लिए लड़ता हो, तथा उस व्यक्ति के बारे में पूछा गया जो अपनी क़ौम या देश के बचाव के लिए लड़ता हो एवं उस व्यक्ति के बारे में पूछा गया जो दिखावे के लिए लड़ता हो, इनमें से किसकी लड़ाई अल्लाह की राह में है? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उत्तर दिया : @"जिसने युद्ध अल्लाह के शब्द को ऊँचा करने के लिए किया, उसका युद्ध अल्लाह की राह में है।"

47- "जब तुममें से कोई वज़ू करे, तो अपनी नाक में पानी डालकर नाक झाड़े, और जो ढेलों से इस्तिंजा (शौच या मूत्र से पवित्रता अर्जन) करे, वह बेजोड़ (विषम) संख्या प्रयोग करे*, और जब तुममें से कोई नींद से जागे, तो अपने हाथों को बरतन में डालने से पहले धो ले, क्योंकि तुममें से किसी को नहीं पता कि रात के समय उसका हाथ कहाँ-कहाँ गया है।" सहीह मुस्लिम के शब्द हैं : "जब तुममें से कोई नींद से जागे, तो अपने हाथ को बरतन में उस समय तक न डुबोए, जब तक उसे तीन बार न धो ले। क्योंकि उसे नहीं पता कि रात के समय उसका हाथ कहाँ-कहाँ गया है।"

48- मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दस रकात सीखी हैं*। ज़ोहर से पहले दो रकात, उसके बाद दो रकात, मग्रिब के बाद घर में दो रकात, इशा के बाद घर में दो रकात और सुबह की नमाज़ से पहले दो रकात। दरअसल यह ऐसा समय था, जब अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के यहाँ कोई जाता नहीं था। मुझे हफ़सा ने बताया कि जब मुअज़्ज़िन अज़ान देता और फ़ज्र नमूदार हो जाता, तो आप दो रकात पढ़ते। जबकि एक स्थान में है : अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जुमा के बाद दो रकात पढ़ते थे।

56- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब नमाज़ शुरू करते और जब रुकू के लिए "अल्लाहु अकबर" कहते, तो अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधो के बरारब उठाते।* रूकू से सिर उठाते समय भी इसी तरह दोनों हाथों को उठाते और कहते : "سَمِعَ الله لمن حَمِدَهُ رَبَّنَا ولك الحمد" (अल्लाह ने उसकी सुन ली, जिसने उसकी प्रशंसा की। ऐ हमारे रब, तेरी ही प्रशंसा है।) लेकिन सजदे में दोनों हाथों को उठाते नहीं थे।

57- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे उसी तरह तशह्हुद सिखाया, जैसे क़ुरआन की सूरा सिखाते थे। उस समय मेरी हथेली आपकी दोनों हथेलियों के बीच में थी*। (तशह्हुद के शब्द कुछ इस तरह थे :) التَّحِيَّاتُ للَّه, وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ، السلام عليك أيها النبي ورحمة الله وبركاته، السلام علينا وعلى عباد الله الصالحين، أشهد أن لا إله إلا الله وأشهد أن محمدا عبده ورسوله (सारे सम्मान सूचक कथन एवं कार्य, नमाज़ें और सारे पवित्र कथन, कार्य एवं गुण अल्लाह के लिए हैं। ऐ नबी! आपके लिए शांति तथा सुरक्षा हो, अल्लाह की कृपा हो और उसकी बरकतें हों। हमारे तथा अल्लाह के सदाचारी बंदों के लिए भी शांति तथा सुरक्षा हो। मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है, और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं।) बुख़ारी एवं मुस्लिम की एक अन्य रिवायत में है : "बेशक अल्लाह ही शांति का स्रोत है। जब तुममें से कोई नमाज़ में बैठे, तो कहे : " التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ السَّلَامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ، السَّلَامُ عَلَيْنَا وَعَلَى عِبَادِ اللهِ الصَّالِحِينَ" (सारे सम्मान सूचक कथन एवं कार्य, नमाज़ें और सारे पवित्र कथन, कार्य एवं गुण अल्लाह के लिए हैं। ऐ नबी! आपके लिए शांति तथा सुरक्षा हो, अल्लाह की कृपा हो और उसकी बरकतें हों। हमारे तथा अल्लाह के सदाचारी बंदों के लिए भी शांति तथा सुरक्षा हो।) "जब किसी ने इस वाक्य को कहा, तो आकाश और धरती का हर सदाचारी बंदा इसमें शामिल हो गया।" "أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ" (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है, और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं।) फिर जो दुआ चाहे करे।

58- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इन शब्दों द्वारा दुआ करते थे : "@ऐ अल्लाह! मैं तेरी शरण माँगता हूँ क़ब्र की यातना से, जहन्नम की यातना से, जीवन और मृत्यु के फ़ितने से और मसीह-ए-दज्जाल के फ़ितने से*।" और मुस्लिम की एक रिवायत में है : "जब तुममें से कोई तशह्हुद पढ़ चुके, तो चार चीज़ों से अल्लाह की शरण माँगे : जहन्नम की यातना से, क़ब्र की यातना से, जीवन और मृत्यु के फ़ितने से और मसीह-ए-दज्जाल के फ़ितने से।"

67- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब जनाबत का स्नान करते, तो अपने दोनों हाथों को धोते, फिर नमाज़ के वज़ू की तरह वज़ू करते, फिर स्नान करते*, फिर अपने हाथ से बालों का ख़िलाल करते, यहाँ तक कि जब निश्चित हो जाते कि त्वचा भीग गई है, तो अपने ऊपर तीन बार पानी बहाते, फिर पूरे शरीर को धोते। वह कहती हैं : मैं और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक ही बरतन से एक साथ हाथ डालकर पानी लेकर स्नान कर लिया करते थे।

74- मैंने अम्र बिन अबू हसन को देखा कि उन्होंने अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अनहु से अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वज़ू के बारे में पूछा, तो उन्होंने एक बरतन पानी मँगवाया और @उन्हें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरह वज़ू करके दिखाया*। चुनांचे सबसे पहले दोनों हथेलियों पर बरतन से पानी उंडेला और उन्हें तीन बार धोया। फिर बरतन में हाथ डालकर पानी लिया और कुल्ली की, नाक में पानी डाला और नाक झाड़ा। तीन चुल्लू पानी से तीन बार ऐसा किया। फिर बरतन में हाथ डालकर पानी लिया और तीन बार अपने चेहरे को धोया। फिर बरतन में हाथ डालकर पानी लिया और अपने दोनों हाथों को कोहनियों समेत दो बार धोया। फिर बरतन में हाथ डालकर पानी लिया और अपने सर का मसह किया; पहले दोनों हाथों को आगे से पीछे ले गए, फिर पीछे से आगे ले आए। ऐसा एक ही बार किया। फिर अपने दोनों पैरों को टखनों समेत धोया।

77- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे किसी काम से भेजा, तो मैं जुंबी हो गया और पानी न मिल सका, इसलिए मैं ज़मीन पर लोटने लगा, जिस तरह जानवर लोटता है। फिर मैं अल्लाह के नबी ल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और यह कहानी बताई, तो फ़रमाया : @"तुम्हारे लिए काफ़ी था कि तुम अपने हाथों से इस तरह कर लेते।" फिर आपने अपने दोनों हाथों को ज़मीन पर एक बार मारा, उसके बाद बाएँ हाथ को दाएँ हाथ पर फेरा तथा दोनों हथेलियों के बाहरी भाग एवं चेहरे का मसह किया।

92- मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आज़ाद किए हुए दास स़ौबान से मुलाक़ात की और कहा : मुझे किसी ऐसे कार्य के बारे में बताइए, जिसे करूँ, तो अल्लाह मुझे जन्नत में प्रवेश करा दे। उनका कहना है कि या मैंने यह कहा था : मुझे कोई ऐसा काम बताइए, जो अल्लाह के निकट सबसे महबूब हो। मेरी बात सुनकर वह चुप रहे। मैंने फिर प्रश्न किया, तो वह चुप रहे। मैंने तीसरी बार प्रश्न दोहराया, तो उन्होंने कहा : मैंने इसके बारे में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा, तो आपने कहा : @''अधिक से अधिक अल्लाह के लिए सजदा करो, इसलिए कि तुम्हारे हर एक सजदे के बदले अल्लाह तुम्हारा एक दर्जा ऊँचा करता है और तुम्हारे एक गुनाह को मिटा देता है।''* मअदान कहते हैं : फिर मैं अबू दरदा से मिला और उनसे पूछा, तो उन्होंने भी उसी तरह कहा, जिस तरह सौबान ने कहा था।