अक़ीदा

अक़ीदा

2- जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु का समय आया, तो आप अपनी एक चादर अपने चेहरे पर डालने लगे और जब उससे मुँह ढक जाने की वजह से दम घुटने लगता, तो उसे अपने चेहरे से हटा देते। इसी (बेचैनी की) हालत में आपने फ़रमाया : "@यहूदियों और ईसाइयों पर अल्लाह की लानत हो, उन्होंने अपने नबियों की क़ब्रों को मस्जिद बना लिया।*" (वर्णनकर्ता कहते हैं कि) आप अपनी उम्मत को यहूदियों और ईसाइयों के अमल से सावधान कर रहे थे।

6- मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मृत्यु से पाँच दिन पहले कहते सुना है : "@मैं अल्लाह के निकट इस बात से बरी होने का एलान करता हूँ कि तुममें से कोई मेरा 'ख़लील' (अनन्य मित्र) हो। क्योंकि अल्लाह ने जैसे इबराहीम को 'ख़लील' बनाया था, वैसे मुझे भी 'ख़लील' बना लिया है*। हाँ, अगर मैं अपनी उम्मत के किसी व्यक्ति को 'ख़लील' बनाता, तो अबू बक्र को बनाता। सुन लो, तुमसे पहले के लोग अपने नबियों की कब्रों को मस्जिद बना लिया करते थे। सुन लो, तुम कब्रों को मस्जिद न बनाना। मैं तुम्हें इससे मना करता हूँ।"

9- "मुनाफ़िक़ों पर सबसे भारी नमाज़ इशा और फ़ज्र की नमाज़ है और अगर उन्हें इन नमाज़ों के सवाब का अंदाज़ा हो जाए, तो घुटनों को बल चलकर आएँ*। मैंने तो (एक बार) इरादा कर लिया था कि किसी को नमाज़ पढ़ाने का आदेश दूँ और वह नमाज़ पढ़ाए, फिर कुछ लोगों को साथ लेकर, जो लकड़ी गट्ठर लिए हुए हों, ऐसे लोगों के यहाँ जाऊँ, जो नमाज़ के लिए नहीं आते और उनको उनके घरों के साथ जला डालूँ।"

13- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अनहु को यमन की ओर भेजा, तो उनसे फ़रमाया : "@तुम एक ऐसे समुदाय के पास जा रहे हो, जिसे इससे पहले किताब दी जा चुकी है। अतः, पहुँचने के बाद सबसे पहेल उन्हें इस बात की गवाही देने की ओर बुलाना कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं*। अगर वे तुम्हारी बात मान लें, तो उन्हें बताना कि अल्लाह ने उनपर प्रत्येक दिन एवं रात में पाँच वक़्त की नमाजें फ़र्ज़ की हैं। अगर वे तुम्हारी यह बात मान लें, तो बताना कि अल्लाह ने उनपर ज़कात फ़र्ज़ की है, जो उनके धनी लोगों से ली जाएगी और उनके निर्धनों को लौटा दी जाएगी। अगर वे तुम्हारी इस बात को भी मान लें, तो उनके उत्कृष्ट धनों से बचे रहना। तथा मज़लूम की बददुआ से बचना। क्योंकि उसके तथा अल्लाह के बीच कोई आड़ नहीं होती।"

16- कहा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल! क़यामत के दिन आपकी सिफ़ारिश से कौन ज़्यादा हिस्सा पायेगा, तो आपने फ़रमाया : "अबू हुरैरा! मेरा ख़्याल था कि तुमसे पहले कोई मुझसे यह बात नहीं पूछेगा, क्योंकि मैं देखता हूँ कि तुम्हें हदीस से बहुत लगाव है। @क़यामत के दिन मेरी सिफ़ारिश प्राप्त करने की सबसे बड़ी ख़ुश नसीबी उस व्यक्ति को हासिल होगी, जिसने अपने दिल या साफ़ नीयत से “ला इलाहा इल्लल्लाह” कहा हो।"

18- "जिसने इस बात की गवाही दी कि केवल अल्लाह ही सत्य पूज्य है, उसका कोई साझी नहीं है, एवं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं, और ईसा भी अल्लाह के बंदे, उसके रसूल तथा उसका शब्द हैं, जिसे उसने मरयम की ओर डाला था और उसकी ओर से भेजी हुई आत्मा हैं, तथा जन्नत और जहन्नम सत्य हैं@, ऐसे व्यक्ति को अल्लाह जन्नत में दाख़िल करेगा, चाहे उसका अमल जैसा भी रहा हो।"

20- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक बात कही है और मैंने एक बात कही है। अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है : "@जिस व्यक्ति की मृत्यु इस अवस्था में हुई कि वह किसी को अल्लाह का समकक्ष बनाकर पुकार रहा था, वह जहन्नम में प्रवेश करेगा।*" जबकि मैंने कहा है : जिस व्यक्ति की मृत्यु इस अवस्था में हुई कि उसने किसी को अल्लाह का समकक्ष बनाकर नहीं पुकारा, वह जन्नत में प्रवेश करेगा।

28- एक दिन हम लोग अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम के पास बैठे हुए थे कि अचानक एक व्यक्ति प्रकट हुआ। उसके वस्त्र अति सफ़ेद एवं बाल बहुत काले थे। उसके शरीर में यात्रा का कोई प्रभाव भी नहीं दिख रहा था और हममें से कोई उसे पहचान भी नहीं रहा था l वह अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने बैठ गया और अपने दोनों घुटने आपके घुटनों से मिला लिए और दोनों हथेलियाँ अपने दोनों रानों पर रख लीं। फिर बोला : ऐ मुहम्मद! मुझे बताइए कि इस्लाम क्या है? आपने उत्तर दिया : "@इस्लाम यह है कि तुम इस बात की गवाही दो कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है तथा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं, नमाज़ स्थापित करो, ज़कात दो, रमजान के रोज़े रखो तथा यदि सामर्थ्य हो (अर्थात् सवारी और रास्ते का ख़र्च उपलब्ध हो) तो अल्लाह के घर काबा का हज करो*।" उसने कहा : आपने सही बताया। उमर रज़ियल्लाहु अनहु कहते हैं कि हमें आश्चर्य हुआ कि यह कैसा व्यक्ति है, जो पूछ भी रहा है और फिर स्वयं उसकी पुष्टि भी कर रहा है?! उसने फिर कहा : मुझे बताइए कि ईमान क्या क्या है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "ईमान यह है कि तुम विश्वास रखो अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी पुस्तकों, उसके रसूलों, अंतिम दिन तथा विश्वास रखो भाग्य पर अच्छी हो या बुरी।" उस व्यक्ति ने कहा : आपने सही फ़रमाया। इसके बाद उसने कहा कि मुझे बताइए कि एहसान क्या है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उत्तर दिया : "अल्लाह की इबादत इस तरह करो, जैसे तुम उसे देख रहे हो। यदि अल्लाह को देखने की कल्पना उत्पन्न न हो सके तो (कम-से-कम यह ध्यान रहे) कि वह तुम्हें देख रहा हैl" उसने फिर पूछा : मुझे बताइए कि क़यामत कब आएगी? आपने फ़रमाया : "जिससे प्रश्न किया गया है वह (इस विषय में) प्रश्न करने वाले से अधिक नहीं जानता।" उसने कहा : तो फिर मुझे क़यामत की निशानियाँ ही बता दीजिए? आपने कहा : "क़यामत की निशानी यह है कि दासियां अपने मालिक को जन्म देने लगें और नंगे पैर, नंगे बदन, निर्धन और बकरियों के चरवाहे, अपने ऊँचे-ऊँचे महलों पर गर्व करने लगें।" (उमर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैंं कि) फिर वह व्यक्ति चला गया। जब कुछ क्षण बीत गए तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूछा : "ऐ उमर! क्या तुम जानते हो कि यह सवाल करने वाला व्यक्ति कौन था?" मैंने कहा : अल्लाह और उसके रसूल ही भली-भाँति जानते हैं। तो आपने फरमाया : "यह जिबरील (अलैहिस्सलाम) थे, जो तुम्हें तुम्हारा धर्म सिखाने आए थे।"

30- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने बरकत वाले और महान रब से रिवायत करते हैं कि उसने कहा है : "@ऐ मेरे बंदो! मैंने अत्याचार को अपने ऊपर हराम कर लिया है और उसे तुम्हारे बीच हराम किया है, अतः तुम एक-दूसरे पर अत्याचार न करो*। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग पथभ्रष्ट हो, सिवाय उसके जिसे में मार्ग दिखा दूँ, अतः मुझसे मार्गदर्शन मांगो करो, मैं तुम्हें सीधी राह दिखाऊँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग भूखे हो, सिवाय उसके जिसे मैं खाना खिलाऊँ, अतः मुझसे भोजन माँगो, मैं तुम्हें खाने को दूँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग नंगे हो, सिवाय उसके जिसे मैं कपड़ा पहनाऊँ, अतः मुझसे पहनने को कपड़े माँगो, मैं तुम्हें पहनाऊँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम रात-दिन त्रुटियाँ करते हो और मैं तमाम गुनाहों को माफ़ करता हूँ, अतः मुझसे क्षमा माँगो, मैं तुम्हें क्षमा करूँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम मुझे नुक़सान पहुँचाने के पात्र नहीं हो सकते कि मुझे नुक़सान पहुँचाओ और मुझे नफ़ा पहुँचाने के पात्र भी नहीं हो सकते कि मुझे नफ़ा पहुँचाओ। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा इनसान और जिन्न तुम्हारे अंदर मौजूद सबसे आज्ञाकारी इनसान के दिल पर जमा हो जाएँ, तो इससे मेरी बादशाहत में तनिक भी वृद्धि नहीं होगी। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा तुम्हारे इनसान और जिन्न तुम्हारे अंदर मौजूद सबसे पापी इंसान के दिल पर जमा हो जाएँ, तो भी इससे मेरी बादशाहत में कोई कमी नहीं आएगी। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा इनसान और जिन्न एक ही मैदान में खड़े होकर मुझसे माँगें और मैं प्रत्येक को उसकी माँगी हुई वस्तु दे दूँ, तो ऐसा करने से मेरे ख़ज़ाने में उससे अधिक कमी नहीं होगी, जितना समुद्र में सूई डालकर निकालने से होती है। ऐ मेरे बंदो! यह तुम्हारे कर्म ही हैं, जिन्हें मैं गिनकर रखता हूँ और फिर तुम्हें उनका बदला भी देता हूँ। अतः, जो अच्छा पाए, वह अल्लाह की प्रशंसा करे और जो कुछ और पाए, वह केवल अपने आपको कोसे।"

31- मैं एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे सवार था कि इसी बीच आपने कहा : "@ऐ बच्चे! मैं तुम्हें कुछ बातें सिखाना चाहता हूँ। अल्लाह (के आदेशों और निषेधों) की रक्षा करो, अल्लाह तुम्हारी रक्षा करेगा। अल्लाह (के आदेशों और निषेधों) की रक्षा करो, तुम उसे अपने सामने पाओगे। जब माँगो, तो अल्लाह से माँगो और जब मदद तलब करो, तो अल्लाह से तलब करो*। तथा जान लो, यदि पूरी उम्मत तुम्हें कुछ लाभ पहुँचाने के लिए एकत्र हो जाए, तो तुम्हें उससे अधिक लाभ नहीं पहुँचा सकती, जितना अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है। तथा यदि सब लोग तुम्हारी कुछ हानि करने के लिए एकत्र हो जाएँ, तो उससे अधिक हानि नहीं कर सकते, जितनी अल्लाह ने तुम्हारे भाग्य में लिखा है। क़लम उठा ली गई है और पुस्तकें सूख चुकी हैं।"

37- हम अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास थे कि आपने एक रात -चौदहवीं की रात- चाँद की तरफ़ देखकर फ़रमाया : "@बेशक तुम अपने रब को उसी तरह देखोगे, जैसे इस चाँद को देख रहे हो। उसे देखने में तुम्हें कोई दिक़्क़त नहीं होगी*। अतः यदि तुमसे हो सके कि सूरज निकलने और डूबने से पहले की नमाज़ों पर किसी चीज़ को हावी (प्रभावित) न होने दो, तो ऐसा ज़रूर करो।" फिर आपने यह आयत पढ़ी : {وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الْغُرُوبِ} (तथा सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त से पहले अपने रब की प्रशंसा के साथ पवित्रता बयान कर।)

40- "वह व्यक्ति हममें से नहीं, जिसने अपशगुन लिया अथवा जिसके लिए अपशगुन लिया गया, जिसने ओझा वाला कार्य किया अथवा ओझा वाला कार्य किसी से करवाया, जिसने जादू किया या जादू करवाया*। तथा जिसने कोई गिरह लाई और जो किसी ओझा के पास गया और उसकी बात को सच माना, उसने उस शरीयत का इनकार किया, जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतारी गई है।"

50- कुछ लोगों ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से काहिनों (ओझों) के बारे में पूछा तो आपने फ़रमाया : "इन लोगों की बातों में कोई सच्चाई नहीं होती।" लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यह लोग कभी-कभी ऐसी बात बताते हैं, जो सच हो जाया करती है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "@यह सच्ची बात वह होती है, जिसे जिन्न उचक लेता है और उसे अपने इंसान दोस्त के कान में ऐसी आवाज़ में डाल देता है, जो मुर्गी के कुड़कुड़ाने जैसी होती है, फिर यह लोग उसके साथ अपनी तरफ से सौ से अधिक झूठ मिला देते हैं।"

51- अल्लह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने, जबकि मुआज़ रज़ियल्लाहु अनहु सवारी पर आपके पीछे बैठे थे, फ़रमाया : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैंं उपस्थित हूँ। आपने फिर कहा : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" उन्होंने दोबारा कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं उपस्थि हूँ! आपने फिर कहा : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" तो उन्होंने तीसरी बार कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं उपस्थित हूँ! तीसरी बार के बाद आपने फ़रमाया : "@जिस बंदे ने सच्चे दिल से यह गवाही दी कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बंदे तथा उसके रसूल हैं, अल्लाह उसे जहन्नम पर हराम कर देगा*।" उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या मैं लोगों को आपकी यह बात बता न दूँ कि वे ख़ुश हो जाएँ? आपने फ़रमाया : "तब तो वे इसी पर भरोसा कर बैठेंगे।" चुनांचे मृत्यु के समय मुआज़ रज़ियल्लाहु अनहु ने गुनाह के भय से यह हदीस लोगों को बता दी।

54- उम्म-ए-सलमा रज़ियल्लाहु अनहा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास हबशा (इथियोपिया) में देखे हुए मारिया नामी एक गिरजाघर और उसके चित्रों का वर्णन किया, तो आपने कहा : "@वे ऐसे लोग हैं कि उन लोगों के अंदर जब कोई सदाचारी बंदा अथवा सदाचारी व्यक्ति मर जाता, तो उसकी कब्र के ऊपर मस्जिद बना लेते* और उसमें वो चित्र बना देते। वे अल्लाह के निकट सबसे बुरे लोग हैं।"

57- एक आदमी ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! हमने जो गुनाह जाहिलियत के ज़माने में किए हैं, क्या उनपर हमारी पकड़ होगी? आपने फरमाया : "@जिसने इस्लाम की हालत में अच्छे काम किए हैं, जाहिलियत के गुनाहों पर उसकी पकड़ नहीं होगी और जो आदमी इसलाम को त्याग कर दोबारा काफिर हो गया, तो पहले और बाद के सभी गुनाहों की पकड़ होगी।"

58- एक व्यक्ति ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न करते हुए कहा : @इस बारे में आपका क्या कहना है कि अगर मैं पाँच वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ें पढ़ूँ, रमज़ान महीने के रोज़े रखूँ तथा हलाल को हलाल एवं हराम को हराम* मानकर चलूँ और इससे अधिक कुछ न करूँ, तो क्या मैं जन्नत में प्रवेश कर सकूँगा? आपने उत्तर दिया : "हाँ।" इसपर उसने कहा : अल्लाह की क़सम, मैं इससे ज़्यादा कुछ नहीं करूँगा।

59- "पवित्रता आधा ईमान है, अल-हम्दु लिल्लाह तराज़ू को भर देता है, सुबहानल्लाह और अल-हम्दु लिल्लाह दोनों मिलकर आकाश एवं धरती के बीच के खाली स्थान को भर देते हैं*, नमाज़ नूर है, सदक़ा प्रमाण है, धैर्य प्रकाश है और क़ुरआन तुम्हारे लिए या तुम्हारे विरुद्ध प्रमाण है। प्रत्येक व्यक्ति जब रोज़ी की खोज में सुबह निकलता है, तो अपने नफ़्स को बेचता है। चुनांचे वह उसे आज़ाद करता है या उसका विनाश करता है।"

61- मैं अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे एक गधे पर बैठा हुआ था, जिसका नाम उफ़ैर था। इसी दौरान आपने कहा : "ऐ मुआज़! क्या तुम जानते हो कि बंदों पर अल्लाह का अधिकार क्या है और अल्लाह पर बंदों का अधिकार क्या है?" मैंने कहा : अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं। आपने कहा : "@बंदों पर अल्लाह का अधिकार यह है कि बंदे उसकी इबादत करें और किसी को उसका साझी न बनाएँ। जबकि अल्लाह पर बंदों का अधिकार यह है कि अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को अज़ाब न दे, जो किसी को उसका साझी न ठहराता हो*।" मैंने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या मैं लोगों को यह सुसमाचार सुना न दूँ? आपने उत्तर दिया : "यह सुसमाचार लोगों को न सुनाओ, वरना लोग भरोसा करके बैठ जाएँगे।"

62- एक व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल! दो वाजिब करने वाली चीज़ें क्या हैं? आपने उत्तर दिया : "@जो इस हाल में मरा कि किसी को अल्लाह का साझी नहीं बनाया, वह जन्नत में प्रवेश करेगा और जो इस हाल में मरा कि किसी को अल्लाह का साझी बनाता रहा, वह जहन्नम में जाएगा।"

64- "अल्लाह क़यामत के दिन मेरी उम्मत से एक व्यक्ति को चुनकर सारी सृष्टियों के सामने उपस्थित करेगा* और उसके सामने निन्यानवे रजिस्टरों को खोलकर रख देगा। हर रजिस्टर वहाँ तक फैला होगा, जहाँ नज़र जाती हो। फिर कहेगा : क्या तुम इनके अंदर लिखी किसी बात से इनकार करते हो? क्या इनको तैयार करने पर नियुक्त मेरे फ़रिश्तों ने तुमपर कोई अत्याचार किया है? वह कहेगा : नहीं, ऐ मेरे रब! फिर अल्लाह कहेगा : क्या तुम्हारे पास प्रस्तुत करने के लिए कोई कारण है? वह कहेगा : नहीं, ऐ मेरे रब! यह सुन अल्लाह कहेगा : हमारे पास तुम्हारी एक नेकी रखी है। देखो, आज तुमपर कोई अत्याचार नहीं होगा। चुनांचे एक पर्ची निकाली जाएगी, जिसमें लिखा होगा : मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं। फिर अल्लाह उससे कहेगा : अपने कर्मों को तोले जाने का दृश्य देखो। यह सुन वह कहेगा : इन रजिस्टरों के सामने इस एक पर्ची की क्या हैसियत है? लेकिन अल्लाह कहेगा : तुमपर कोई अत्याचार नहीं होगा। आपने कहा : एक पलड़े में सारे रजिस्टर रखे जाएँगे और दूसरे पलड़े में उस पर्ची को रखा जाएगा। चुनांचे रजिस्टर हल्के साबित होंगे और परर्ची भारी सिद्ध होगी, क्योंकि अल्लाह के नाम से ज़्यादा भारी कोई चीज़ नहीं है।"

65- जब अल्लाह ने जन्नत एवं जहन्नम को पैदा किया, तो जिबरील अलैहिस्सलाम* को जन्नत की ओर भेजा और फ़रमाया : जन्नत को और जन्नत के अंदर जन्नत वासियों के लिए मैंने जो कुछ तैयार किया है, उसे देख आओ। चुनांचे जिबरील ने जन्नत को देखा, वापस आए और कहा : तेरी प्रतिष्ठा की क़सम, जन्नत के बारे में जो भी सुनेगा, वह उसमें दाखिल हो ही जाएगा। चुनांचे अल्लाह ने आदेश दिया और उसे अप्रिय वस्तुओं से घेर दिया गया। इसके बाद फिर जिबरील से कहा : जन्नत की ओर जाओ और उसे तथा उसके अंदर जन्नत वासियों के लिए मैंने जो कुछ तैयार किया है, उसे देख आओ। इस बार देखा तो पाया कि उसे अप्रिय वस्तुओं से घेर दिया गया है। अतः उन्होंने कहा : तेरी प्रतिष्ठा की क़सम, मुझे इस बात का डर लग रहा है कि इसमें कोई दाख़िल ही नहीं हो सकेगा। इसके बाद अल्लाह ने उनसे कहा : जाओ और जहन्नम को तथा उसके अंदर मैंने जहन्नम वासियों के लिए जो कुछ तैयार किया है, उसे देख आओ। चुनांचे उन्होंने देखा तो पाया कि जहन्नम का एक भाग दूसरे भाग पर चढ़े जा रहा है। अतः वह लौट आए और बोले : तेरी प्रतिष्ठा की क़सम, उसमें कोई दाख़िल ही नहीं होगा। चुनांचे अल्लाह ने आदेश दिया और उसे आकांक्षाओं से घेर दिया गया। इसके बाद अल्लाह ने कहा : दोबारा जाओ और उसे देख लो। उन्होंने इस बार देखा तो पाया कि उसे आकांक्षाओं से भर दिया गया है। अतः वापस हुए और बोले : तेरी प्रतिष्ठा की क़सम, मुझे इस बात का डर है कि उसमें कोई दाखिल होने से बच ही नहीं सकेगा।"

67- एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे बीच खड़े हुए और ऐसा प्रभावशाली वक्तव्य रखा कि हमारे दिल दहल गए और आँखें बह पड़ीं। अतः किसी ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! आपने हमें एक विदाई के समय संबोधन करने वाले की तरह संबोधित किया है। अतः आप हमें कुछ वसीयत करें। तब आपने कहा : "@तुम अल्लाह से डरते रहना और अपने शासकों के आदेश सुनना तथा मानना। चाहे शासक एक हबशी ग़ुलाम ही क्यों न हो। तुम मेरे बाद बहुत ज़्यादा मतभेद देखोगे। अतः तुम मेरी सुन्नत तथा नेक और सत्य के मार्ग पर चलने वाले ख़लीफ़ागण की सुन्नत पर चलते रहना।* इसे दाढ़ों से पकड़े रहना। साथ ही तुम दीन के नाम पर सामने आने वाली नई-नई चीज़ों से भी बचे रहना। क्योंकि हर बिदअत (दीन के नाम पर सामने आने वाली नई चीज़) गुमराही है।

72- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो क़ब्रों के पास से गुज़रे, तो फ़रमाया : "@इन दोनों को यातना दी जा रही है, और वह भी यातना किसी बड़े पाप के कारण नहीं दी जा रही है। दोनों में से एक पेशाब से नहीं बचता था, और दूसरा लगाई- बुझाई करता फिरता था।*" फिर आपने एक ताज़ा शाखा ली, उसे आधा-आधा फाड़ा और हर एक क़ब्र में एक-एक भाग को गाड़ दिया। सहाबा ने पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल! आपने ऐसा क्यों किया? तो आपने जवाब दिया : "शायद इन दोनों की यातना को उस समय तक के लिए हल्का कर दिया जाए, जब तक यह दोनों शाखाएँ सूख न जाएँ।"

88- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अक़बा की सुबह, जबकि आप अपनी ऊँटनी पर सवार थे, फ़रमाया : "मेरे लिए कुछ कंकड़ी चुनो।" चुनांचे मैंने आपके लिए सात कंकड़ी चुने, जो चने के दाने के बराबर थे। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें अपनी हथेली में रखकर झाड़ने लगे और कहने लगे : "इसी तरह के कंकड़ी मारा करो।" फिर फ़रमाया : @ "लोगो, दीन में अतिशयोक्ति से बचो। क्योंकि दीन में इसी अतिशयोक्ति ने तुमसे पहले लोगों का विनाश किया है।"

97- "मुझे पाँच चीज़ें ऐसी दी गई हैं, जो मुझसे पहले किसी नबी को दी नहीं गई थीं।* एक महीने की मसाफ़त तक जाने वाले प्रताप द्वारा मेरा सहयोग किया गया है। मेरे लिए धरती को नमाज़ पढ़ने का स्थान एवं पवित्रता प्राप्त करने का साधन बनाया गया है। लिहाज़ा मेरी उम्मत का जो व्यक्ति जहाँ नमाज़ का समय पाए, वह वहीं नमाज़ अदा कर ले। मेरे लिए ग़नीमत का धन हलाल किया गया है। मुझसे पहले किसी के लिए ग़नीमत का धन हलाल न था। मुझे सिफ़ारिश करने का अधिकार दिया गया है। दूसरे नबी अपने-अपने समुदायों की ओर नबी बनाकर भेजे जाते थे। लेकिन मुझे तमाम इन्सानों की ओर नबी बनाकर भेजा गया है।"