अक़ीदा

अक़ीदा

25- निःसंदेह अल्लाह ने नेकियों और गुनाहों को लिख लिया है। फिर उसका विस्तार करते हुए फ़रमाया : जिसने किसी सत्कर्म का इरादा किया और उसे कर नहीं सका, अल्लाह उसके बदले अपने यहाँ एक पूरी नेकी लिख लेता है और अगर इरादे के अनुसार उसे कर भी लिया, तो उसके बदले में अपने पास दस से सात सौ, बल्कि उससे भी अधिक नेकियाँ लिख देता है। और अगर किसी बुरे काम का इरादा किया, लेकिन उसे किया नहीं, तो अल्लाह उसके बदले में भी एक पूरी नेकी लिख देता है और अगर इरादे के अनुसार उसे कर लिया, तो उसके बदले में केवल एक ही गुनाह लिखता है।

279- जब सदक़े का महत्व बयान करने वाली आयत उतरी तो हम अपनी पीठ पर बोझ उठाते (और उससे प्राप्त मज़दूरी को दान करते थे)। फिर एक व्यक्ति आया और बहुत-सा धन दान किया तो मुनाफ़िकों ने कहाः यह रियाकार है तथा एक अन्य व्यक्ति आया और एक साअ दान किया तो कहने लगे कि अल्लाह को इसके एक साअ की ज़रूरत नहीं है। ऐसी परिस्थिति में यह आयत उतरीः "الذين يلمزون المطوعين من المؤمنين في الصدقات والذين لا يجدون إلا جهدهم" (अर्थात, जो लोग स्वेच्छा से देने वाले मोमिनों पर उनके दान के विषय में चोटें करते हैं और उन लोगों का उपहास करते हैं, जिनके पास उसके सिवा कुछ नहीं, जो वे मशक्कत उठाकर देते हैं, उनका उपहास अल्लाह ने किया और उनके लिए दुखदायी यातना है।)